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________________ कटेरी १९५२ कटेरी वृत और पुष्प दंड इन सभी पर सर्वत्र तीक्ष्णाग्र | प्रचुर कंटक होते हैं । अस्तु, इसको "दुःस्पर्शा" संज्ञा यथार्थ में अन्वर्थ है । पुष्प दल मिलित होता है और अशाख पुष्प दण्ड पर स्थित होता है । दलान पाँच भाग में चिरित होता है। पराग कोष स्थूल पीतवर्ण का होता है। फल वत्तु लाकार बड़ी रसभरी की प्राकृति का, अति मसूण, नीचे की ओरझुका हुभा होता है । अपक्कावस्था में यह हरा वा सफेद वा चितले रंग का होता है। फल के गात्र पर सफेद धारियाँ पड़ी होती है। पकने पर यह पीला पड़ जाता है। बीज भंटे के बीज की तरह होते हैं । सफेद कटाई के फूल सफेद रंग के होते हैं । इस जाति की कटाई सुलभ नहीं होती। खोजने पर कहीं कहीं मिल जाती है। सफेद कटाई के केशर प्रायः पीले होते हैं, पर किसी-किसी सफेद कटेरी के पुष्प और केशर दोनों ही सफेद होते हैं और समग्र पत्तों और शाखाओं पर सफेद रोना सा होता है। देखने से समग्र क्षप एक श्वेत वस्त्र खण्ड की तरह जान पड़ता है है। इसकी यह जाति दुर्लभ होती है और प्रायः रसायन के काम आती है। पर्याय-कण्टकारी, दुःस्पर्शा, बुद्रा, व्याघ्री, निदिग्धिंका, कण्टालिका, कण्टकिनी, धावनी, दुष्प्रधर्षिणी (ध० नि०), कण्टकारी, कण्टकिनी, दुःस्पर्शा, दुष्प्रधर्षिणी, चद्रा, व्याघ्री, निदिग्धा, धावनी, ( धाविनी), सुद्र-कण्टिका, बहुकण्टा, क्षुद्रकण्टा, खुद्रफला, कण्टारिका, चित्रफला (रा. नि०) कण्कारी, दुःस्पर्शा, नद्रा, व्याघ्रो,निदिग्धिका, कण्टालिका, कण्टकिनी, धावनी, बृहती(भा०) धावनी (के. दे.), प्रचोदनी, बहुगूढाकुली, वार्ताकी, स्पृशी, राष्ट्रिका, कुली, (म०), अनाक्रान्ता, भंटाकी, सिंही, धावनिका (२०) कुलिः (शब्द र०) कासघ्नः (वै० निघ०) कासनी (प.मु०) कण्टोणी, कण्टकफलः, कण्टकफला कण्टकोणी, कण्टका, कण्टकारिः, कण्टकारिका, कण्टकााः , कण्टकालिका, कण्टारिका, कण्टाली, कस्टानिका-सं०। परिचयज्ञापिका संज्ञा-रुद्रा' "बहुफण्टा" "तुद्रकण्टा" "क्षुद्रफला" "चित्रफला" । कटेरी, छोटी कटेरी, कटाई, छोटी कटाई, लघु कटाई, कटेरी, कटाली, कटेली, कटियाली, कटैया, कटखुरी, कांडयारी, भटकटाई, भटकटैया, महूकड़ी, रूपाखुरी, रेंगनी, बहुपत्र डोरला-हिं० । द.। मरा० । कण्टिकारी जंगली बैगुन, काँटाकरी-बं. वादंजान बरीं । वादंजानदश्ती। शौकतुल प्रकरब हदक, इसिम्-भ। बादंगानबरी, कटाई खुर्द-का० । सोलेनम जन्थोकार्पम् Solanum xanthocarpum,Schrad, & Wendi. सोलेनम जैकीनाई Solanum Jacquini, Willd ( Frint or berry of.) ले० । वाइल्ड एग्स प्लांट Wild Eggs plant; Bitter. sweet Woody night shade,-अं० ।Jacquin's night-shade | कण्डङ् कत्तिरि,चंदन घतृक-ता। वाकुडु, नेलमुलक, पिनमुलक, श्वटीमुलंजा, वेरटी मुलगा, वाकुडिचेह-ते. । कण्टम् कत्तिरि, वेलवो वालुटिना-मल । तेलगुला-कना०, का०।चिन्चा:कों० । दोरली, डोरली, रिंगणी, लघुरिंगणी, भुइरिंगणी, भूरिंगणी, काँठेरिंगनी-मरा०, बम्ब० । रिंगनी, बैंगनी, पाथ रिंगनी, बेठी भोरिंगनी-गु० । कटु वल्बटु, कटुवेल-वाटु-सिंहली । ख़यान कज़ोब्रह्मी । कण्टमारिष-उत्, उड़ि• वरूबा,महोड़ी ममोलो-पं० । कंटाली-मार० । कटाली, कट्याली राजपु०। वृहती वा वृन्ताकी वर्ग (N. 0. Solanacece ) उत्पत्ति स्थान-इसके क्षुप भारतवर्ष में सर्वत्र पाये जाते हैं । भारतवर्ष के पूर्वीय और पश्चिमी घाटों पर ये विशेष रूप से होते हैं । हिंदुस्तान में पंजाब से आसान और लंका तक इसकी पैदा यश होती है। ___ रासायनिक संघट्टन-इसके फल में वसाम्ल ( Fatly acids), मोम (Wax ) और एक क्षारोद-ये द्रव्य पाये जाते हैं। सूखी पत्ती में एक क्षारोद और एक सेंन्द्रियाम्ल (Organic acid होता है। मेटीरिया मेडिका श्राफ इंडिया पार० एन० खोरी, खं० २, पृ० ४५०; ई० मे० मे० पृ.८०५)
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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