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________________ कटी कटिकाविग्रह १९४२ औषधियों के विविध अंगो, जैसे, जड़, छाल आदि | टिल्ल-संज्ञा पुं० [सं० क्ली०] (१) करेला । को बारीक कूटने और भिगोने से पूर्व टुकड़े टुकड़े कारवेल्स फल । भा० पू० १ भ० । (२) हड़जोर करते हैं । जैसे-जेंशन रूट (जितियाना मूल) अस्थिसंघार । रा०नि० । निशिः । मेजन (माजरियून त्वक् ) सासानरास रूट | कटिल्ल क-संज्ञा पुं॰ [सं० पु.] (1) करेखा। (सासारास की जड़ ) इत्यादिकत्तंन । काटना । कारवेलक। १० मु०। (२) लाल पुनर्नवा । स्लाइसिंग (Slicing)(अं०)। गदह पूरना । साँठ । मे कचतुष्क । रकपुनणवा । कटिकाविग्रह-संज्ञा पु० [सं० पु.] (Carpus | कदिल्लिपि-[ ता०] महुअा । मधूक । callo sum) अ. शा० । कटिबंध-दे. "कटिबंध" । कटिगुहा-संज्ञा स्त्री० [सं० श्री.] ( Pelvic कटिवात-संज्ञा पुं० [सं० पु.] एक प्रकार का वास ___cavity) कटीगुहा | प्र० शा० । रोग । इसे किक्सिवात भी कहते हैं । कटिज-संज्ञा पु[सं०] मकाई । लक्षणकटितट-संज्ञा पुं० [सं० वी० ] (१) नितम्ब । कटीभङ्गो विकारश्च महाशूलं च क्रोध कृत् । __ चूतड़ । कटि देश | कमर । अपस्मारीच दुर्भावी कटिवातस्य लक्षणम् ।। कटि तरुण संधि-संज्ञा स्त्री० [सं०] ( Sacro चिकित्साieiac articulation) संधि विशेष । श्र० शा। हिंगुलं वत्सनाभं च चक्राङ्गी त्रिकटु वचाम् । कटिव-संज्ञा पुं॰ [सं० वी० ] (१) रसना । जिह्वा चित्रमूल कषायेण समभागं विमर्दयेत् ॥ जीभ । मे रविकं । (२) कटि वस्त्र । (३)| दोलायन्त्रेपचेद्यामं कटिवातं निहन्ति वै । घुघुरु। बुद्र घंटिका । के०(४ परिधेय वस्त्र । धोती। कटिशीर्षक-संज्ञा पुं० [सं० पु.] कमर। कूला । कटिदेश-संज्ञा पुं० [सं० पु.] कटि । कमर । कटिदेश । हला० । पुट्ठा। श्रोणी । जघन । ( Loin, Lumber | कटिशूल-संज्ञा पुं० [सं० पु.] कमर का दर्द। region 1 कटिदेशस्थ शूल-रोग। कुमरी । (Lumbago) कटिनङ्गों-ता०] पियार । अचार । पियाल । कफ और वायु से कटिदेश में शूलरोग उत्पन्न होता कटिनाड़ी जाल-संज्ञा पुं॰ [सं०] एक नाड़ी जाल | है। एक भाग कुष्ठ और दो भाग हरीतकी का " जो कमर में स्थित है। षट्चक्रों में से एक।) चर्ण उष्ण जल के साथ सेवन करने से काटशूल (Lumber plexus) कटिप्लवक । । मिट जाता है। दे० “शूलं"। कटिपार्श्वच्छापेशी-संज्ञा स्त्री॰ [सं, स्त्री.] एक | कटिशृङ्खला-संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ स्त्री.] कटिकिङ्किणी । पेशी विशेष । कटिपार्श्वप्रच्छदा । ( Lattissi | कमर में पहनने का एक प्राभूषण । करधनी । musdorsi)प्र० शा०। हारा०। कटि प्रदेश-संज्ञा पुं० [सं० पुं०] कटिदेश । कमर । कटिसूत्र-संज्ञा [सं० ली.] (1) कमर में कटिप्रोथ, कटीप्रोथ-संज्ञा पुं० [सं० पुं०] (१) पहनने का डोरा । मेखला। सूत की करधनी। चतड़। स्फिच । नितम्ब । रा० निव०१८।। करगता। कमरबंद । स्मृति शास्त्र के मत से केवल संपर्या-स्फिक्, पूलक, कटीप्रोथ, कटिग्रोथ, कार्पास का सूत्र बांधना निषिद्ध है। (२) चन्द्र__पूल । (२) कमर का मांस पण्ड । श्रम । हार । करधनी। कटिबंध-संज्ञा पुं॰ [सं० पु.] कमरबंद । कटी-संज्ञा स्त्री० [ कटिन् सं० पुं०] (१) हाथी । कटिरोहक-संज्ञा पु[सं० पु.] जो हाथी के पीछे इस्ती । (२) खैर का पेड । रा०नि००। बैठता हो । हस्ती के पश्चाद् भाग पर आरोहण संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] (१)श्रोणिपालका करनेवाला। . अम० । (२) पीपल । पिप्पली । मे. टहिक । कदियाली-संज्ञा स्त्री॰ [सं० कंटकारि ] भटकटैया।। (३) स्फिक प्रदेश । चूतक । रत्ना.। ()
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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