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________________ जमाव कजीतन- [तु० ] अंजुरह। पन । दुर्बलता । क्षीणता । (२) कृश होने का खुनासा । भाव वा क्रिया । दुबला पतला होना । | कंजूर-[बं०, हिं०] खजूर । खजूर । कजाब-[ मिश्र०] अज़ानुल् अङ्ग का एक भेद । कज..र-[फा०] कचूर । जरंवाद। क जाबः-अ.] वाग़ । साम अबर्स। कजरु-[गोत्रा ] दमनपापड़ा । खेतपापड़ा। क्र(क).जाम- ३०] चने का पौधा । चणक । कजूली-[बं०] लाल गन्ना । रक्तु । नजार-अ.] शीशा। क जायन-[ अन्दलु०] एक प्रकार का पौधा । कज़ारत-[१०]क ज़र। कज.गा, कजगाव, कजगा, कजगाव-[ १०, क़ज़ाल-अ.](8) सिर का पीछे का भाग। क्रा० । सुरा गाय। शिर पश्चात् भाग। (२) कान को लो के पास कम्ज-[फा० का, कज से मु१०] रेशम की एक का वह स्थान जहाँ ब ल नहीं उगते। तरि नयः जाति।। क जालान । अरु जलः, कज़ल (बहु.)। क्र.ज.त-[अ०] (१) नाक बींधना । (२) छेद कजि नील-मल० ] सरफोंका। करना । छिद्रीकरण । (३) कुमारित्व हरण । काज निला-[ मज० ] सरफोंका। सतीत्व हरण । कजी-(प्रा०] एक नमकीन बीज । कज कानुल उज.नान-[१०] पिस्सू । तु.] जंगलो राई। क(कि)..ज.जबः-[१०] छोटी सी पथरी । (२) कजी-पंहा स्त्री०१ बलती। खजूर बूटी। चूना । (३) सिकता । रेत । (४) गच का कज़ाज-[१] संगमरमर । पत्थर । हसीन । कजीत- तु.] उटंजन । अंजुरह । कजल-संज्ञा पुं॰ [सं० की. ] (8) नील कमल । निलोफर । (२) अंजन | काजल । हे० च०। त्रिका०सि० यो० कामला-चि०। इसका अपर क जानून,क जनयून-[यू०] कटाई । जंगली बैंगन । संस्कृत नाम लोचक है। क़जीक-[अ०] [बहु० क ज़ान, क जनान] प्रतिकृया संज्ञा पुं० [सं० पु.] (१) कजली । अत्यन्त क्षीण । बहुत दुबला पतला। कजली । अत्रि० । (२) मेघ । बादल । क जीब-[१०] [ ? ) उ.ननेंद्रिय । शिस्न । लिंग । शब्दमा० । (३) कालिख । स्याही। (४) ज़कर । उज वुलज़क्रा । क्रुजुब (बहु०) सुमा । (५) कजली । एक मछलो । (६) Fenis (२) पेड़ की डाली। वृक्ष की शाखा | काजल. अंजन आँजन । जब अंजन लगाना कज बान (बहु.)। (३) अंगूर की बेल । हो तो प्रथम अंगुली को जमीनमें विसकर फिर कजीम-[१] ग़ोरह । अंजन करने से तिमिर काँच, अर्श और धूमिका का क जीम क़रीश-[१०] ख़ब नय्ती। नाश होता है। कजलि-[?] वार । तुमुश | Common (१) सोसा को पिघला कर त्रिफला, black berry भांगरा, सोंठ, शहद, घृत, बकरी का दूध और कजु-सिं०] काजू । गोमूत्र में बुझाकर इसकी सलाई तैयार करें। फिर कज- लेप०] बिछुवा । श्रवा | अन्न । इस सलाई को घिसकर आँजन करने से गरुड़ की कजुअट्ट-सिं०] क.जू । सी दृष्टि होती है। कज. तप्पाल-[ मल• गदही का दूध ।गर्दभी दुग्ध। (२) सीसा को पिघलाकर त्रिफला जल, ___ शीर स्वर। भांगरा रस, घृत, अफीम का घोल, बकरी का दूध कज...त्थई थुम्बई-ता०] कोटा कुलफा (हिं०,०)। और मुलहठी का रस इनमें सात-सात बार बुझा ___ काटमण्डू (पं )। गावजबान (सिं०)। और सलाई तैयार कर प्रति दिन प्रातःकाल अंजन कज देपाल-ता०] गदही का दूध । करने से स्वर्ण तुल्य पीला दिखाई देना तथा धर्म कजक-का•] एक प्रकार का गोबरैला । सानाक्रस । पैचिव्य रोग और नेत्र के श्वेत, कृष्ण भाग और
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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