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________________ कछुआ १६१६ पीसकर आँख में लगाने से दृष्टि शक्ति नष्टप्राय हो हो जाती है । इसकी हड्डी की राख काँच निकलने को गुणकारी है । इसकी हड्डी को पीसकर इसकी वर्त्तका योनि में धारण करने से योनि से तरह २ के स्त्राव और क्षत नष्ट होते हैं । एक मित्र इसकी अत्यन्त प्रशंसा करते थे। उनके कथनानुसार कैसा ही पुराना रोग हो और स्त्री को किसी प्रकार आराम न होता हो, इसकी हड्डी पीसकर रूई में रखकर योनि में रखने से कल्याण होता है। बवासीर के मस्सों को तीन दिन तक निरन्तर इसकी अस्थि की धूनी देने से वे बिल्कुल गिर पड़ते हैं । अस्थि को तेल में जलाकर और उसके अन्दर पीसकर पीठ और हाथ-पैर के दाद पर लगायें तो कई दिन पीला पानी निःसृत होकर उसकी जड़ जाती रहती है । परीक्षित हैं । हरीरे में कालीमिर्च के बराबर कछुए का अंडा मिलाकर खिलाने से बच्चों की पुरानी खाँसी जाती रहती है। इसमें दसवाँ हिस्सा सौंफ का चूर्ण मिलाकर प्रण्ड-शो पर लेप करने से लाभ होता है । इसकी चर्बी आक्षेप तथा धनुष्टंकार ( कुज़ाज़ ) के लिये गुणकारी है । दरियाई कछुए की चर्बी, जावशीर और कुदुश समभाग लेकर पीसकर गद के पेशाब में गूंध कर छाया में सुखालें । जिस स्थान में पक्षीगण एकत्रित हों, वहाँ इसे जलावें और स्वयं नाक-कान पर कपड़ा बाँधलें, जिसमें घुश्रा न लगे, जिस जानवर को धुं श्रा लगेगा वह मूच्छित होकर गिर जायगा । उसका पकड़कर जब गरम पानी में उसके बाल धोए जायेंगे, वह होश में आ जायगा । इसके पत्ते से नये कागज पर लिखने से रात में अक्षर ऐसे प्रतीत होते हैं, मानो सोने से लिखे हों । वैद्यों के कथनानुसार कछुए का मांस वल्य एवं कामोद्दीपक है । यह वायु तथा पित्त के विकारों को उपशमित करता है। | कछुए को 'खुनाक रोगी के पास इस प्रकार रखें कि उसके मुँह की हवा नाक को पहुँचे । इससे वह बहुत जल्द श्रीराम हो जायगा । हकीम शरीफ ख़ाँ महाशय नाक में इसी प्रकार चिकित्सा करते थे। घाव कछुआ पर प्रथम तेल लगाकर उसे चिकना करदें । पुनः कछुए की जलाई हुई अस्थि को पीसकर उस पर छिड़कें । तीन दिन में श्राराम हो जायगा | कर्कट ( सतन ) पर छिड़कने से भी उपकार होता है । यदि कोई ऐंद्रजालिक पुरुष को इस प्रकार बाँध दें, कि वह स्त्री से समागम नं कर सके, तो इसकी अस्थि में जो प्यालानुमा होती है, पानी कर सिर पर डालने से खुल जाता है । ( ख़० अ० ) - इसकी खोपड़ी के खिलौने बनते हैं । नव्यमत आर० एन० चोपरा - कछुए की चर्बी, कण्ठमाला ( Scrofula ), अस्थिवक्रता वा शोषरो' (Rickets), रक्ताल्पता (Anemia) श्रौर फुफ्फुस विकारों में प्रयुक्त होती है । (इं० डू० इं० पृ० ५४६ ) । नादकर्णी - कछुए से एक प्रकार का तेल प्राप्त होता है जो पांडु-पीतवर्णीय द्रव है। इससे मत्स्यवत् गंध श्राती है और इसका स्वाद अप्रिय होता है | औषध में यह परिवर्तक, पोषणकर्त्ता और स्निग्धता संपादक रूप से व्यवहार में श्राता है । यह विशेषत: कंठमाला, अस्थिवक्रता (Rickets) रक्ताल्पता ( Anæmia ) और फुफ्फुसविकारों, में प्रयोगित होता है । मात्रा -१ से २ ड्राम तक । कच्छपी वैक्सिन ( Vaccine of tortoise) यमोपचारार्थ डाक्टर फ्रेंडस वैक्सिन ( Dr. Friendmau's vaccine ) के गुणों की परीक्षा के लिये जर्मनी द्वारा नियोजित कमीशन की रिपोर्ट इस प्रकार है - " यच्म प्रति धनीय संघर्ष में यह वैक्सिन मूल्यवान् है । जैसा कि इसके १ या २ इंजैक्शन से ही श्राश्वयंजनक फल हुआ। यह वैक्सिन कच्छप के यक्ष्मकीट के शुद्ध कल्चर से प्रस्तुत होता है ।" (Indian Materia Medica) कछुए के अंडे की जर्दी का पापड़ बनाकर शिशुओं को खिलाने से उनका शोष रोग श्राराम होता है । कछुए के एक अंडे की जर्दी ब्रांडी २० - बूँद, १॥ तोले गोदुग्ध और मात्रानुसार मिश्री
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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