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________________ एड़क (काख्य ) १७४६ एडिकोल छातिम । एडाकुल-पोन्न- कड़ाखनी के पीछे पैर की गद्दी का निकला हुआ उपलब्ध होती है । यह पदार्थ उपवृक्त के अंतःस्थ भाग । एड़ी। पार्णि। भाग में बनता है। यह अत्यन्त उपयोगी वस्तु है संज्ञा पुं॰ [पं०] भूटिया बादाम । लदाखी जो पिंगलनाडीमंडल का उत्तेजक है। वि० दे० बादाम (अल्मो०)। मे० मो० । "ग्रन्थि सत्व"। एड़क ( काख्य)-संज्ञा पु० [सं० पु.] [स्त्री० एडर्स-टङ्ग, पिंडिंग-[अं० Adder's tongue, एड़का] (१) पृथु शृङ्ग मेष । winding ] भूतराज। (Ophiogloss"एडकः पृथुशृङ्गः स्यान्मेदः-पुच्छस्तु दुम्बकः । __um Flexuosum.) एड़कस्य पलं ज्ञेयं मेषामिष समं गुणैः ।। एडहस्ती-संज्ञा पु [सं० पु.] चकवड । चक्रमई । मेदः पुच्छोद्भवं मांसं हृद्यं वृष्यं श्रमापहम् । एडाकुल-अरिटि-) पित्तश्लेष्मका किञ्चिद्वातव्याधि विनाशनम्" ॥ एडाकुल-पाल- ( [ते.] सतिवन । ससपर्ण । (भा० पू० १ भ० मांस व० । (२) बनेला बकरा । जंगलो बकरा । त्रिका०। (३) एक प्रकार का तृण । होगला । एडाकुलपुन्ना-[ते. ] विवरणस.चि०७ अ. । (४) मजीठ । मंजिष्ठा। सेमल के वृक्ष की तरह का एक पेड़ एडकघृत-संज्ञा पु[सं० क्लो] भेंड़ का घो। जिसको प्रत्येक टहनी पर ७-७ पत्तियाँ होती हैं। गुण-अत्यन्त भारी होने के कारण कोमल पत्तियों के दो-दो जोड़े होते हैं। हरएक के सात प्रकृति के लोगों के लिये वर्जित है । यह बुद्धि को कंगूर होते हैं। सात शाखाओं से अधिक नहीं परिपक्क करनेवाला और वलकारक है । रा. नि. होती । पुष्प तुर्रे को भाँति और उससे बड़े होते व०१५। हैं। इसमें से सुगंधि पाती है। इसकी पत्तियाँ एड़कनवनीत-संज्ञा पु० [सं० वी० ] भेंड़ का प्रशस्त पीले रंग की एवं मनोहर होती हैं। मक्खन । सप्तपर्ण । छातिम । गुण-शीतल, लवु, कषाय, हृद्य, गुरुपाकी, प्रकृति-उष्ण । पुष्ट, स्थूलताकारक एवं मंदाग्नि दीपन है । रा. गुण, कर्म, प्रयोग-यह कफनाशक एवं नि० व. १५ वमन-प्रशामक है। खाज, फोड़े-फुन्सी एवं एड़का-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री ] भेंड़ । मेषी। श्र० पैत्तिक रक-दोष में लाभकारी है। तजकिरतुल्हिन्द टी०रा०। के लेखक के वचनानुसार इसमें युग्म पत्र नहीं एडकुल-पाल-[ते. ] सप्तपर्ण । सतिवन । छातिम । होते । वे इसे अम्ज कषाय एवं तीक्ष्ण बतलाते एडग-संज्ञा पु० [सं० स्त्री० ] भेंड़ । मेष । हैं यह वात विकार एवं कफनाशक है । यह खुनाक एडगज (जा)-संज्ञा पु०, स्त्री० [संज्ञा पु०, स्त्री.] एवं खनाजीर (कंठमाला) प्रभृति कंठरोगों में (१) चकवड । चक्रमई तुप | पमाड़ । रा०नि० लाभकारी है। इसका फल ग्राही एवं गुरुपाकी व०५ । भा० पू० १ भ० सोमराज तैल । च. है। यह कफ दोष को भी निवारण करता है। सू० ३ अ०। धन्व० निघः । (२) वन्य एला। ख० अ०। जङ्गली इलायची। च० द. कुष्ठ-चि०। नोट-एडाकुलपुन्ना "एडाकुलपोन" तैलंगी एडग-मांस-संज्ञा पुं॰ [सं० पु.] भेंड़ का मांस । शब्द का अपभ्रंश है जो सप्तपणं का तैलंगी एइमू-वि० [सं. वि.] (१) वधिर । बहरा। पर्याय है। (२) गूंगा और बहिरा (पुरुष)। वाक् श्रुति एडापण्ड-[ते. ] सदाफल । चकोतरा नीबू । वर्जित । मे० कचतुष्क । एडिएण्टम्-[ ले० Adiantum ] हंसराज । एडरीनलीन-संज्ञा स्त्री॰ [अं० Adrena. in ] | दे० "अडिएण्टम्"। एक प्राणिज औषधि जो उपवृक्क नामक प्रन्थि से एडिक्कोल-ते. ] चाकसू । चश्मीज़ज । .
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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