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________________ ककुत्सल १८८१ द्राक्ष ( ऋषभ ) । (६) पहाड़ी की चोटी । ( ७ ) एक प्रकार का दवकर सर्प । ककुत्सल - संज्ञा पु ं० [सं० (वै०) क्री० ] ककुर नामक वृषावयव । डील | ककुद्मती - संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] ( १ ) कटि | कमर । म० । ( २ ) नितम्ब । चूतड़ । बि० [सं०] जिसे डिल्ला हो । ककुद्वाला | ककुद् विशिष्ट । ककुद्मत्-संज्ञा पु ं० [सं० पु ं० ] ( १ ) वृष । बैल | (२) पर्वत | पहाड़ । ( ३ ) ऋषभक नाम की श्रोषधी । वैद्यको द्रव्य विशेष । ककुद्मान् -संज्ञा पु ं० [सं० पु० ] ( १ ) ऋषभ नाम को एक श्रोषधि । ऋषभक । रा० नि० व० ५। (२) वृक्ष । पेड़ । हे०च० । ( ३ ) बैल | वृष । ककुद्मिन-संज्ञा पु ं० [सं० पु ं० ] ( १ ) वृषभ । बैल । ( २ ) पर्वत | पहाड़ । ककुद्वत्-संज्ञा पु ं० [सं० पु० ] ( १ ) वृषभ । बैल | (२) नितम्ब स्थल के उभय पाश्वस्थ गर्तद्वय । कूल्हे के गड्ढे | चूतड़ के दोनों ओर का गड्ढा । ककुनक- संज्ञा पु ं० [सं० पु०, क्ली० ] दे० "ककु क" । ककुनी - संज्ञा स्त्री० [सं० कंगुनी ] कंगु । काँक | कँगनी | ककुभ शाखा - संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] भारंगी । भार्गी । रत्ना० । 1 ककुभा - संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] भूर्जपत्र । भोजपत्र | ककुभाण्डा-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] मीठा कद्द । मिष्ठलाबू । ककुभादनी - संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] गंध द्रव्य । नलिका । श० च० । ककुभा दि(द्य) चूर्ण-संज्ञा पुं० [सं० नी० ] उक्त नाम का एक योग । नला नामक निर्माण-विधि - ( १ ) अर्जुन की छाल. वच, रास्ना, बला, नामबला, हड़, कचूर, पुष्करमूल, पीपर, सोंठ प्रत्येक समानभाग - इनको बारीक चूर्ण कर रखले । मात्रा - १ शाख । १८ फा० ककूल, ककूलक गुण- इसे घृत के साथ सेवन करने से हृद्रोग का नाश होता है । ( २ ) अर्जुन की छाल, गंगेरन, श्रामला, एरण्डबीज और सुहागे की खील । प्रत्येक समानभाग लेकर चूर्ण करके रखलें । गुण तथा प्रयोग विधि - ३-४ माशे की मात्रा में लेकर शहद घृत मिलाकर सेवन करने से यक्ष्मा और कासादि रोगों का नाश होता है । वृ० नि० २० क्षय चि० । ( ३ ) अर्जुन वृक्ष की छाल लेकर उचित मात्रा में घृत, दूध अथवा गुड़ के साथ सेवन करने से हृद्रोग, जीर्णज्वर, रक्त पित्तका नाश होता है एवं दीर्घायु प्राप्त होती है । यो०२० हृदय रो० चि० । ककुम्बर - संज्ञा पुं० [ श्रं० cucumber ] दे० " कुकुम्बर" । ककुरवँदा - [ मरा० ] कुकरौंधा । ककुरवदा क. कुरौदा ककुरौंधाककुरौन्हा संज्ञा पु ं० [सं० ककुन्दरः ] कुकरौधा | ककुलक - [ ० ] गंडुम दीवाना | मूछनी । (Lolium temulentum, Linn.) ( फा० ई० ३ भ० ) ककुवल्ली -संज्ञा स्त्री० [ मल० ] कंकेई । काखर । लङ्गर । ककुवाक - संज्ञा पु ं० [सं० पु० ] मृग । मृगा । हिरन । ककूक - दे० " ककूल” | ककूटिया - संज्ञा स्त्री० [देश०] कुरर पक्षी । कर्केटिया । an osprey ककूणक संज्ञा पुं० [सं० पु०, ली० ] कुथुना । कुरू | रोहा | कुकूणक । मा० वाल रो० नि० । भा० म० ४ भ० । ककूल, ककूलक-संज्ञा पुं० [सं० नी०, पुं० ] ( १ ) गाय के गोबर आदि के चूर्ण की गरमी । करी की च । वा० टी० अरुण । ( २ ) पुत्र बनाने का मिट्टी का पात्र । पूरी पकाने का मिट्टी का बरतन । “ककूलं शङ्कुभिः कीर्णे स्वभ्रे ना तु तुषा
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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