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________________ १८७६ की अभिवृद्धि होती है। यह पित्त के विकार को शमन करती; पर पित्त की वृद्धि भी करती है। यह मूत्रकृच्छ रोग में लाभकारी है। कच्ची ककड़ी को पकाकर खाने से पित्त शमन होता है, शीत उत्पन्न होता और तृषा शान्त होती है। यह मूत्र प्रवर्तनकारी है। इससे वस्ति एवं वृक्वजात पथरियाँ टूट जाती हैं। इससे मूत्रजात माधुर्य एवं सांद्रता का निवारण होता है। इसके नित्यसेवन से कफ एवं पित्त उत्पन्न होता है। शुष्कककड़ी की तरकारी सेवन करने से खुलकर साफ पाखाना होता है । इससे क्षुधा की वृद्धि होती एवं श्लेष्मा का उत्सर्ग होता है, जो प्रायः मल के साथ निकलती है। यह गुरुत्व तथा वात एवं पित्तका नाश करती है । तर ककड़ी शरीर को वृंहित एवं स्थूल करती है। कतिपय यूनानी वैद्यकीय ग्रन्थों में लिखा है कि ककड़ी ठंडी है, भूख बढ़ाती है, कफ, पित्त एवं रुधिर तीनों के दोष नष्ट करती, पित्तज वमन को दूर करती, दाह-सोनिश शान्त करती और मूत्र प्रवर्तन करती एवं पाचन करती है। पकी ककड़ी पित्त .' एवं जठराग्नि की बृद्धि करती है। (ख० अ०) नव्यमत कविराज नगेन्द्रनाथ सेन गुप्त-फूट ककड़ी . एवं उसकी कोमल पत्तियाँ खाद्यपदार्थ हैं। फल स्वाद में मधुर और शीतल है तथा यह मूर्छा एवं त्वग्दाह रोग में लाभकारी है। इसका कोमलकच्चा फल, मधुर, लघु, शीतल तथा (Antiarthic) है और यह मूत्रकृच्छ एवं रक्रवमन में उपकारी है। Indian Indigenous Drugs & Plants, pp-58-9, pt. iii ककड़ी का बीज _____ एर्वारुबीज, कर्कटीबीज-सं०। ककड़ी का बीज, ककड़ी का बीया-हिं० कँकड़ी के बीज-द० काँकड़ बीज-बं०। तिवसोचबीज-प्राव ढल किस स.sअ० रुमेखियाजः, तुह्मे लियारे दराज़-फा०। Seeds of Cucumis Utilissimus -ले । ककुबर सीड्स Cucumbr seeds -अं० । कक्करिक्काय-विरै, मुल्-वेल्लिरिक्काय-विरे -ता० । मुल्लु-दोसकाय-वित्तुलु-२० । कक्करिक्तवित्त-मल । मुल्लु-सवते-बीजा-कना० | तख्वासी-बर० । टिप्पणी-वह बीज जो सफेद और भारी हो और पकी हुई ककड़ी में से निकाला गया हो, उत्कृष्ट है, पुराना और खराब अच्छा नहीं होता है ककड़ी का बीज खीरे के बीज से उत्कृष्टतर है। अस्तु, शेख ने किस्साऽ-ककड़ो के वर्णन में लिखा है, "ककड़ी का बीज खीरे के बीज से अधिक उत्तम है" । कानून नामक अरबी ग्रन्थ के भाष्यकार गाज़ रूनी ने इस पर यह आपत्ति की है। उक महानुभाव का यह कथन है कि शेख को वैसा नहीं प्रत्युत यह कहना चाहिये था कि किस्सा का बीज खियारे तवील के बीज से उत्कृष्टतर है कारण यह है कि किस्साऽऔर खियार दोनों समानार्थी शब्द हैं । परन्तु उसका उत्तर यह है कि किस्साऽ का प्रयोग जिस प्रकार खियार अर्थात् खोरे के लिये होता है, उसी भाँति ककड़ी के अर्थ में भी इसका प्रयोग करते हैं। क्योंकि खियार शब्द का प्रयोग उक्त वस्तुद्वय अर्थात् खीरा और ककड़ी दोनों के लिये होता है। अस्तु, दोनों के बीज तुह्म खियारैन कहलाते हैं। अतः शेख के वचनानुसार किस्साऽ से स्पष्टतया ककड़ी अभिप्रेत है और खिायार से खीरा । यही कारण है कि साहब मिन्हाज ने खियार को किस्साऽ की प्रतिनिधि लिखा है। यह स्मरण रहे कि शीराज़ में खीरे को खियार दराज़ कहते हैं, और गाज़रून प्रदेश शीराज़ से दो-तीन ही मंजिल की दूरी पर है। इसी कारण भाष्यकार गाज़रूनी के वचन में खीरे के स्थान में खियार तवील शब्द दृष्टिगत होता है। वरन् खियार दराज़ एवं तवील से प्रायः ककड़ी ही अभिप्रेत होती है, जिसे अरबी में किस्सा कहते हैं। खीरे को प्रारब्य भाषा में 'कसद' कहते हैं और यदि इस कारण से कि किस्सा शब्द का व्यवहार प्रायः खीरा और ककड़ी दोनों के लिये ही होता है, यहाँ किस्सा से खीरा और खियारे तवील से ककड़ी का अर्थ लिया जाय, तो यह अर्थ शेख के और प्रायः स्वतन्त्र लेखकों के अभिप्राय के विरुद्ध हो जायगा। ककड़ी और खरबूजे के बीज में यह भेद है कि ककड़ी का बीज चौड़ा होता है । तथा यह
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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