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________________ औषध प्रमा वृद्धि के भय से श्रागे मूल श्लोकों का उदाहरण नहीं दिया गया; किंतु श्रध्याय नम्बरादि का निर्देश कर दिया गया है । विज्ञ पाठक स्वयं चरक कल्प स्थानादियों में भलीभाँति देख सकते हैं । दे० च० कल्प १२ श्र० । ३ मा०=१ श(ण ( यह शब्द भी रूड़ है ) । २ शाण= १ द्वंक्षण, कोल, बदर, यदि यह भी रूदि शब्द हैं। अर्थात् चरको १ कोल या द्वंक्षण में ६ माशे और चरक के १ माशा में ३२ उर्द के दाने घटित होते हैं जो उपयुक्त से स्पष्ट है । तात्पर्य यह है, कि चरक का कोल १९२ उर्द के दानों के बराबर हैं । यहाँ चक्रपाणि का श्रभि प्राय निम्न है - १८६२ १२ उर्द के दाने ५ बड़ी गुआ के बराबर हैं, तो १६२ उर्द के दाने ८० बड़ी गुञ्जा के बराबर हुए | यथा - ५x१६ =८० बड़ी गुञ्जा । श्राजकल एक रुपया का तोला माना जाता है। वह तोला आजकल ६६ मध्यम आकार को गुञ्जाश्रों का माना जाता है, जो सबको विदित है। रुपये को बड़ी गुञ्जा के साथ तोलने से वह ठीक ८० गुञ्जा के बराबर तुलता है और चरक का कोल भी ८० गुञ्जाओं के बराबर हैं । अतः चरक का कोल= १ रुपया = १ तोला ठीक है। जिस स्थान में चरक का कोल मान लिखा हो, वहाँ निःसंकोच १ तोला ग्रहण करना उचित होगा । श्रागे चरकाचार्य लिखते हैं । २ कोल = १ कर्ष, सुवर्ण, श्रक्ष, विडालपदक, पिचु, पाणितल, तिन्दुक, कवलग्रह, इन नामों में दो नाम सार्थक प्रतीत होते हैं, शेष रूदि हैं; यथा - पाणितल - जितनी चीज़ फैलाए हुए हाथ की तली में आए। तथा तिन्दुक ( तेन्दूफल ) एक फलका नाम है, तःसमान कर्षमान हो सकता है। अभिप्राय यह है कि चरक का कर्ष २ तोले के बराबर है । नोट- चरक की किसी भी वस्तुका मान १ कर्ष से अधिक नहीं है, तो उसमें उपर्युक्त माना 'नुसार ही चीजें डालनी चाहिये । इससे आगे कुछ कठिनता होगी, जिसका स्पष्टीकरण आगे होगा । औषध प्रमाण २ कर्ष = १ पलार्धं, शुक्ति, अष्टमिका । ( शुक्ति सोप का नाम है, उसमें २ कर्ष ४ तोले के करीब वस्तु ा सकती है)। २ पला = पल, मुष्ठि, प्रकुञ्च, चतुर्थिका, विल्व, घोडशिक, श्राम्र । इन नामों में विल्व तथा श्राम्र दो संज्ञाएँ फलों के अनुसार हैं एवं मुष्टि बन्द किए हुये हाथ को कहते हैं । अन्य शब्द प्रायः रूढ़ि हैं । अतः चरक का पल =४ कर्ष आजकल के तोले के बराबर होता है । ( यह ऊपर स्पष्ट है ) क्योंकि आजकल = तोले का कोई बाट प्रचलित नहीं, इसलिए चरक की वस्तु १ पल लेने के लिए कठिनता होती है । इसी प्रकार पल से श्रागे के बाद भी श्राजकल नहीं मिलते; इसलिए इस सारे झगड़े को मिटाने के लिए एक सरल उपाय है, जिसमें कुछ हानि भी नहीं होती और कठिनता भी दूर हो जाती है । वह है यह कि पल को ८ तोले न लेकर 4 भाग इसमें और अधिक मिला लें अर्थात् ८x =२ तोले । इसका अभिप्राय यह हुआ, कि पल = +२= १०तोले = २ छटाँक | इस प्रकार करने से श्रागे का सारा मान हल होजाता है । यथा - चरक कल्प १२ अ० में । २ पल=१ प्रसृत, श्रष्ठमान । प्रसृत मुष्टि का प्रसार कर देने से बनता 1 तथाहि - " पाणिन्युब्जः प्रसृतिः" इत्यमरः । वैसे प्रसृति में १६ तोले बनते हैं। पर सब मानों के साथ 4 भाग बढ़ाते जाने से आधुनिक मान से तुलना करने में बहुत सहूलियत होती है, इसलिए बनता है । इसी प्रकार २ प्रसृत = १ कुडव, अञ्जलि ( बुक इति प्रसिद्धः ) श्रमर कोष में भी लिखा है, कि - "तौ (प्रसृती ) युताञ्जलिः पुमान्" । इसमें 1⁄2 भाग जोड़ देने से कुड़व1⁄2 सेर का बनता है । १ प्रसृत = १ पाव २ कुडव = १ मणिका, शराव । 4 भाग जोड़ देने से मणिका १ सेर की बनती है । नोट - चरकोल मानानुसार माणिका (शराब) ६४ तोले की बनती है । यू० पी० श्रादि कई प्रान्तों में १ सेर ६० तोले का माना जाता है। वहाँ के सेर को हम माणिका कह सकते हैं । पर पंजाबी सेर तो माणिका के साथ भाग जोड़ने ही से बनता है ।
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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