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________________ औषध प्रमाण औषध प्रमाण ४ कुडव१ प्रस्थ ४ प्रस्थ=१ आढक, घट, अष्ट शराव, पात्री, पात्र, कंस ४ आढक-१ द्रोण, कलस, घट उन्मान, अर्मण २ द्रोण=१ सूर्प, कुम्भ २ सूर्प=१ गोणी, खारी, भार ३२ सूर्प-१ वाह १०० पल-१ तुला ___ उपयुक्त मान शुष्क द्रव्यों के लिये बतलाया गया है, द्रव (तरल-पतले) और भाई (तुरन्त के उखाड़े हुये गोले ) पदार्थों का प्रमाण इससे दूना होता है। जिस स्थान में "तुला" अथवा "पल" शब्द लिखा हो, वहाँ श्राद्र और द्रव पदार्थों का प्रमाण भी द्विगुण नहीं होता । साधारणतः ३२ पल का प्रस्थ+होता है, परंतु वमन, विरेचन और शोणितमोक्षण (फस्द) में '१३॥ पल का प्रस्थ माना जाता है। सुश्रुतोक्त औषध प्रमाण-अब पल कुडवादि नाम से मान की व्याख्या की जाती है:१२ मध्यम धान्य माष=१ सुवर्ण माषक १६ सुवर्णमाषक १ सुवर्ण अथवा १२ मध्यम निष्पाव (लोबिया)=१ सुवर्ण माषक १६ सुवर्ण माषक-१ धरण - धरण ( १६ माषक )=xएक कर्ष ४ कर्ष=१ पल ४ पल कुड़व ४ कुड़व-१ प्रस्थ +यह द्रव पदार्थ के प्रस्थ के सम्बन्ध में कहा गया है,क्योंकि शुष्क द्रव्यों के प्रमाण में १ प्रस्थ-४ कुडव =१६ पल का होता है। x-१ धरण अर्थात् १६ माषक का अर्द्धतृतीय (अाधाऔर तीसरा भाग) + ६५ होता है अर्थात् १६ माषक में कुछ कम होता है । इसे पूरे १६ माषक मान लेने में कोई विशेष अन्तर नहीं पा सकता। . ४ प्रस्थ१ श्रादक ४ आढ़क- द्रोण १०० पल तुला २० तुला-१ भार यह मान शुष्क द्रव्यों के लिये हैं। आई और द्रव पदार्थों के लिये इससे द्विगुण मान समझना चाहिये। चरक और सुश्रुत मान की परस्पर तुलना चरकोक्न मान में २ द्रंक्षण=४ शाण=१२ माषक या (१२४३२%3)३८४ धान्य माषक )३८४ धान्य माषक का कर्ष माना गया है और सुश्रुतोक्न कर्ष में १६ सुवर्ण माष=(१६४१२=) १६२ धान्य माषक होते हैं। इससे सिद्ध होता है कि चरकोक्न मान सुश्रुतोक मान से २ गुना है। मानसारशाण, कोल, कर्ष, शुक्कि, पल, प्रसृत, कुडव, शराव, प्रस्थ, अ ढक, श्राढक, अर्द्धद्रोण, द्रोण, सूर्प, गोणी और खारी का मान उत्तरोत्तर द्विगुण होता है। यथा-शाण से कोल दो गुना, कोख से कर्ष दोगुना और कर्ष से शुक्ति २ गुनी इत्यादि। शाण: कोलश्च कर्षश्च शुक्तिश्च पलमेवच । प्रसृतं कुडवश्चापि शराव: प्रस्थएव च ॥ अख़्ढकश्चाढकोर्ट द्रोणश्च द्रोण एव च । सूोगोणी चखारी च द्विगुणश्चोत्तरोत्तरम ।। ___माष, शाण कर्ष, पल, कुडव, प्रस्थ, श्रादक, द्रोण और गोणी का मान उत्तरोत्तर चार गुना होता है । यथामाष शाण कर्ष पल कुडव प्रस्थाढकाः। द्रोणो गोणी भवन्त्येते पूर्व पूर्वाञ्चतुगुणाः॥ शुष्का-द्रव्य भेद से मान शुष्क द्रव्य, गीले द्रव्यों से अधिक गुरु एवं तीक्ष्ण होते हैं, अतः आई (गीले) द्रव्यों का प्रमाण शुष्क की अपेक्षा द्विगुण ग्रहण करना चाहिये अर्थात् शुष्क द्रव्यों के स्थान में गीले द्रव्य काम में लाये जाय, तो लिखित परिमाण से दूना लें। यथाशुष्क द्रव्येतु या मात्रा चार्द्रस्य द्विगुणाहि सा। शुष्कस्य गुरुतीक्ष्णत्वात्तस्मादई प्रकीर्तितम् ॥
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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