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________________ पहा औन्दूवर १८५३ औपसर्गिक औन्दूवर-संज्ञा पुं॰ [सं० क्ली० ] ताम्र | ताँबा । औपम्य-संज्ञा पु० [सं० वी० ] वह विषय जो दूसरे भा म०१ भ. से दसरे की सादृश्यता को प्रकाशित करता है, औपकर्णिक-वि० [स० त्रि०] कर्ण के समीप उत्प। "उपमान" कहलाता है। जैसे, दण्डक रोग दण्ड ___ जो कान के पास पैदा हुश्रा हो। के समान होता है । धनुष्टंभ रोग में मनुष्य धनुष औपकाय-संज्ञा पुं० [सं० लो० ] गृह । घर । के आकार का टेढ़ा हो जाता है। जो प्रोषधो रोग __मकान। को शीघ्र दूर कर डाले उसको तीर की उपमा दी औपकूलिक-वि० [सं० त्रि०] उपकूल सम्बन्धी । जाती है। इसको "उपमान" कहते हैं । उपमा का किनारेवाला । भाव । समता । बराबरी । तुल्यता । च. औपचारिक-वि० [सं० वि०] उपचार सम्बन्धी। । वि०८० औपजंघी-वि० [सं० वि० ] ( Peroneal A.) औपरोधिक-संज्ञा पुं० [सं० पु.] पीलुदण्ड । औपजानुक-वि० [सं० त्रि०] घुटनी के पास । जानु के | समीप वर्ती। औपल-वि० [सं० वि.] पथरीला । प्रस्तर संबंधी । औपजिह्वो-वि० [सं० त्रि०] उपजिह्वा संबन्धी औपवस्त-संज्ञा पु० [सं० क्रो०] उपवास । लखन । नाड़ी| Tonsillar nerve. औपद्रविक- वि० [सं० वि० ] उपद्रव सम्बन्धी। औपधेनव-संज्ञा पुं॰ [सं० क्ली] धन्वन्तरि के एक | औपवास-वि० [सं० वि.] उपवास में देने याग्य । शिष्य का नाम । डल्लन मिश्र ने सुत की टीका औपवासिक-वि० [सं० वि०] उपवास के लिये में इनके वचन उधृत किये हैं। उपयोगी। औपधेय-संज्ञा पुं॰ [सं० की.] रथचक्र। औपवृक्क लक्षक-संज्ञा पुं० [सं० को०] एक नाड़ी चक्र औपनासिक-वि० [सं० त्रि.] नासिका के समीप विशेष(Suprarenal-plexus.)। अशा। उत्पन्न | नाक के पास निकलनेवाला। औपशभिक-वि० [सं० त्रि० ] शांतिकारक । शांतिऔपनीषिक-वि० [सं० वि.] नीविका समीपवर्ती । दायक । कमर के पास का। औपसर्गिक-संज्ञा पुं० [सं० पु.] (१) एक प्रकार औपपत्तिक-वि० [सं० त्रि०] युक्तियुक्त । मतलब का सन्निपात । वैद्यक के मत से जब कफ अनुलोम निकाल देनेवाला। गति से वायु ओर पित्त से मिलता है, तब मनुष्य औपभृत-वि० [सं० त्रि.] अश्वत्थ काष्ट के बने यज्ञ को पसीना पाता है और शीतलता का वेग बढ़ पात्र में संचित । पीपल की लकड़ी के चम्मच में जाता है । पुनः वायु के प्रतिलोम होने से कुछ इकट्ठा किया हुश्रा। स्वास्थ्य भी वोध होता है। इसे हो सन्निपातज वा औपमस्तिष्क(-की)-वि० [सं० त्रि० ] उप. श्रीपसर्गिक रोग कहते हैं । सुगुत के कथनानुसार मस्तिष्क संबन्धी । अणुमस्तिष्क का । (Cereb- पूर्वोत्पन्न व्याधि के निदानादि द्वारा, जो अन्य रोग ellar)। साथ में लग जाता है, उसे "ौपसर्गिक" कहते औपमस्तिष्क-दात्रिका-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ) हैं । यह रोग उपद्रव से उठता है । कहा हैदात्रिका विशेष । ( Falx cereballi) "प्रोपसर्गिक रोगश्च संक्रामन्ति नरानरम् ।" औपमस्तिष्क-दूष्यकला-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] (माधव निदान टीका) ___ कला विशेष । (Ten torium Cerebelli) नोट-कोई-कोई अर्वाचीन लेखक इस शब्दका औपमस्तिष्क-निम्निका-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] खात उपयोग संक्रामक व छूतदार (Infectious) विशेष । (Cerebellar-Fossa) रोगों के अर्थ में करते हैं। औपमस्तिष्कार्धगोलखात-संज्ञा पु० [सं० वी० ] (२ ) पापरोगादि । (३) भूतादि के आवेश खात विशेष । (Vallecula-Cerebelli) से उत्पन्न रोग।
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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