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________________ ओष्ठ प्रान्त १८४६ श्रोष्ठ रोग आष्ठप्रान्त-संज्ञा पु. [सं० पु.] सृक्क भाग। अोठों का छो! । मुंह का कोना। रत्ना। ओष्ठ-फला-(भा)-संज्ञा स्त्री० [सं. स्त्री०] कुन्दरू। ___ कंदूरी | बिम्बी लता। वै० निघ । ओष्ठरञ्जनी-संज्ञा स्त्री॰ [सं० स्त्री.] पान । ताम्बूल | प० मु.। ओष्ठ-रोग-संज्ञा पु० [सं० पु. ] वे रोग जो दोनों होठों में होते हैं । श्रायुर्वेद में इनका वर्णन मुख रोग के अंतर्गत किया गया है। पर्या-होठों को बीमारियाँ । अम्। जुल शत् (अ.)। Diseases of the lips वैद्यक के मत से यह रोग अाठ प्रकार का होता है-वायुजन्य, पितजन्य, करुजन्य, सलिपातज, रकज, मांसज, नेदज, और अभिघातज अर्थात् श्रागन्तुक । वातजनित अोष्ट रोग के लक्षण - वातजन्य प्रोष्ठ रोग होने से दोनों होठ खाक्षरे रूखे, कठोर और ऐठे से होते हैं तथा उनमें तीव्र वेदना होती है । ऐसा जान पड़ता है, मानो उनके दो टुकड़े हो जायो । वे जरा-जरा फट भी जाते हैं। नोट-वातज अोष्ट रोग में होठों का रंग श्यामवर्ण हो जाता है और उनमें सूई चुभाने की सी पीड़ा होती है। पित्तज ओष्ठ रोग के लक्षणपित्त के कोप से दोनों होठ पीले हो जाते हैं, चारों ओर फुसियाँ हो जाती हैं तथा उनमें पीड़ा | दाह और पाक होता है। कफज ओष्ठ रोग के लक्षणकफज श्रोष्ठ रोग होने से होठ शीतल, चिकने और भारी रहते हैं, उनमें खुजली चलती है और | थोड़ा-थोड़ा दर्द होता है। उन पर शरीर के रंग जैसी फुसियाँ छा जाती हैं। त्रिदोषज ओष्ठ रोग के लक्षणएक साथ तीनों दोषों का कोप होने से होठ कभी काले, कभी पीले, कभी सफ़ेद और अनेक फुसियों से युक्त होते हैं। रक्तज ओष्ठ रोग के लक्षणखून के कोप से, दोनों होठ पके हुए खजूर के फल को रंग की फुसियों से व्याप्त होते हैं। उनमें से खून बहता है और होठों का रंग खून की तरह लाल होता है। __ मांस-जनित ओष्ठ रोग के लक्षणमांस के दृषित होने से होठ भारी, मोटे श्रोर मांस के गोले की तरह ऊँचे होते हैं। इस मांसज श्रोष्ठ रोग में मनुष्य के दोनों गलफरों में कीड़े पड़ जाते हैं। मेदज ओष्ठरोग के लक्षणइस रोग के होने से दोनों होठ घी और माँड की तरह होते हैं। वे भारी होते हैं और उनमें खाज चलती है। उनमें से स्फटिक मणि के जैसा निर्मल मवाद बहता है। उनमें पैदा हुआ व्रण नरम होता है और भरता नहीं। अभिघातज ओष्ठ रोग के लक्षण यदि किसी भाँति की चोट लगने से श्रोष्ठरोग होता है, तो दोनों होठ चिा या फट जाते हैं। उनमें पीड़ा होती है, गाँठ पड़ जाती है और खुजली चलती है। होठ के रोगों की चिकित्सा पद्धति नोट-मुँह के रोग, मसूढ़े के रोग और होठ के रोगों में प्रायः कफ और रक की प्रधानता होती है, अतः इन रोगों में बारम्बार गरम और दुष्ट रक्रमोक्षण कराना चाहिये।। वातज ओष्ठ रोग नोट-गरम स्नेह, गरम सेक, गरम लेप, घी पीना, मांसास का उपयोग, अभ्यञ्जन, स्वेदन और लेपन इत्यादि उपचार हितकारी है। वातनाशक दवाओं द्वारा तेल पकाकर मस्तिष्क में नास देना तथा स्नेह, स्वेद और अभ्यंग इस रोग में रसायन के समान गुणकारी होते हैं। (१) वातज श्रोष्ठ रोग में-सेल या घी में मोम मिलाकर मलना चाहिये। (२) लोबान, राल, गूगल, देवदारु और मुलेठी बराबर-बराबर लेकर पीस-कूट और छान लो। इस चूर्ण को धीरे-धीरे होठों पर घिसने से वातज श्रोष्ठ रोग श्राराम हो जाता है। (३) मोम, गुड़ और राल-इनको समानसमान लेकर तेल या घी में पकालो। इसका लेप
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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