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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अगस्त्यह ५४ अगाडा प्रत्येक १-१ नो. धत्त र का कोज २ नां०, अफीम ज्वर, हिचकी, अर्श पीनस, अरुचि और संग्रहणी २ नोला इनका चूर्णकर भांगरे के रस की भावना का नाश हो, यह अगम्यमुनि की कही हरीतकी । मात्रा-रसी मे ॥ रत्ती पर्यन्त | अनुपान । प्रत्येक रोगों का नाश करती है। श्रा० सं० म० मो.मिर्च, पीपर और शहद के साथ देने से मन ग्व० ० २। शून, कफ, वातविकार, मन्दाग्नि तथा घार । (३) दशमल, गजपीपल, कौंच के बीज, निद्रा को तथा धन और मिर्च के चर्ण के साथ भारंगी, कचर, पुष्करमल, मोठ, पाढ़, गिलंय, प्रवाहिका नया छः प्रकार के अतिसार में पीपलमृज, शंखाहुली, सम्ना, चित्रक, झापामार्ग, जीरा और जायफल के चर्ण के माथ दन में बला, जवाया यं प्रत्येक २-२ पल लें। इनका नाश करता है। नया यव (जो । चादक लें., बड़ी हई १५० मा लें. प्रथन ५ द्रो श्रगमत्यहर। sty:- :-# जापुर (१६ पेर) अथवा एक अगस्य हातको Unsta-haritaki अादक ( मेर) जल लेके उप में हमें को ययावतहः Hastyi-VAShah.पु. गोटाना चाधा निम्मा जान शेष रह जाए तो स्त्रो (.) यह कार में हित है। निर्माण उता फिर 17ला (५ पेर) गुड़ लेकर जलमें कमः-शमूल, कोच, शंम्बएप्पी, कचूर बरियारा, टाकरल, शहद, घुन, ४-४ पल डालें पीर गजपीपल, चिचिंटा, पीपलामल, चित्रक, भारंगी पीपल का चूर्ण ५ पल डालें, फिर पूर्वोत्र. हड़ पुष्करमल ये सब या शाः तां० ले और जर डाले, इस प्रकार पाक कर शानल कर उसमें ४ (यव) २५६ तो०, हर १०० अदद, इन्हें पन्न शहद और डालें तो सुन्दर हरीतकी पाक १२७० . जल में पकाएँ जब सीज जाएँ तो यार होता है । यह रसायन,नियन हड़ी उस क्वाथ का वा से छान के मो हड़ों में ४०० को कर के युक्र म्याग नां राजयच्मा, संग्रहणी, तो० गुह और १६ नो० गोयन मिला पकाएँ । सूजन, मंदाग्नि, म्वरभेद, पाड़ श्वास, शिरोरोग और तेल, पीपल का चूर्ण भी १६-१६ मा हदयरांग, हिचकी वीर विमग्घर को नष्ट मिला जब मिन्द्र हो के शीतल हो जाए तो करना । नौर बुद्धि, बल तथा उम्याह गनि, को इसमें १६ नो. शहद मिलाकर यान में रखें । चढ़ाना। यह हरोत्रकाराक सब में प्ट है। ददी हद रसायन विधि में ग्वान से बली व या चि० ० सं० उ० नं. को ४५ पलित पाँची ग्वामी, क्षय, श्वास, हिचकी. विषम नागास्था h in-ग्रो अगस्तिया. ya Sasbasis tranflora, ज्वर, अर्श, संग्रहणी, हृदरोग, अरुचि और पीनस Pers.) | फा००१० को नाश करता है । यह अगम्त्यमुनि का रचा अगहन gatha-हिं० नंज्ञा पु० [सं० हुया रसायन है। बंग० च० द० सं० काम० ग्रहायण, ] [ चि. अगहनिया, अगहन ] अ० यो ने वा० स० चि० अ०३। मार्गशीर्ष नगसिर । (२) बड़ी हड़ १००, अजवाइन । अाइक, : भागहनिया gay hisi-हिं० वि० [मं. अग्रदशमूल २० पल, चित्रक, पीपलामल, चिचिरा, : दारणा ] अगहन में होने वाला धान ! कचर, काँच, शंखपुष्पी, भारंगी, गजनी गर, · अगहनो pathani-०वि० [म. अग्रहायण बरियारा, पप्करमल प्रत्येक २-२ पल, ५ पाक ! अग हन में यार होने वाला 1 संज्ञा श्री. बह जल में यकाय छान लें तिस में१०० हार, बल, फमल जो अगहन में काटी जाती है। जैसे जदहन घत यास पल, गुड़ १० देकर पकार । जब धान, उरद, इत्यादि। डा हो जाए तो इसमें शहद, पीपल का चण अगाडा ukida-हिं०, संज्ञा पु० हि अगादा २-१ कहब डालें, इस तरह इस सिद्ध अवलेह : अपामार्ग ( Aryranthes ., के मंग २ ह नित्य वा नो क्षय, काम, श्वाय, lim.)। (२) कछार तरी । For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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