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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अगर-मंगर अग़रना तथा स्वाद एवं गंध रहित होते है। शीतल जल । रसायनिक संगठन-उक्र सिवार से प्राप्त सरेश सं स्पर्श होने पर इनका द्वव्यमान बढ़ जाता है में जेलोज (gelose ) जी सरशी सत्व है तथा ये चतु कोणी स्पञ्जवत् होजाते है और प्राप्त होता है। इसमें कोई नत्रजन घायव्य नहीं उनकी भुजाएँ नतोदर तथा चौड़ाई में १॥ इत्र होता तथा शर्करा पदार्थ ( nannite), होती है । यद्यपि जल में यह किसी परिणाम निशास्ता तथा अलव्युमेन वर्तमान होते हैं। में अविलेय हा है तथापि कुछ काल पर्यन्त प्रभाव तथा उपयोग-उम छिद्र प्रादिकों उबालने पर इसका अधिक भाग लय हो जाता को, जिनसे कभी श्रान्त्र वृषण में उतर पाती है, है और घोल, जब कि अभी यह जल निति संकुचित ( छोटा ) करने के विचार से अगर(या पनला ) है, शीतल होने पर सरंश में अगर के कीट रहित घोल का तत्स्थानीय तन्तुओं परिणत हो जाता है। चीन देशीय यूरूप में अन्तः शेप करते हैं। मृदुभेदक रूप से इसका निवासी इसे वास्तविक सिरेशम माही ( Isin- प्रायः सफलता पूर्ण उपयोग किया गया है। glass) की प्रनिनिधि स्वरुप व्यवहार में अगर अगर द्वारा निर्मित रिग्युलीन ( Reguलाते हैं जो कि बहराः उससे भी गुण- lin) नामक एक शुष्क एवं स्वाद रहित औषध दायक है । यह बहुत जल में मिलकर भी उसे जिसमें २० प्रतिशत कैस्करा सच (Extract सरेरा में परिवर्तित कर देता है। उसका यह of eascal) होता है प्रचार पा चुकी है। गुण गम० एन (11. payon) द्वारा अभि. १ से ३ दाम की मात्रा में पुरातन मलावरोध में हित जेलोज ( Glose) नामक पदार्थ के यह भेदक प्रभाव करता तथा मल परिमाण कारण है जो जापानीय शैवाल में विशेष रूप से , की वृद्धि करता है । कुचले हुए बालू व उबाले पाया जाता है । यह सिरेराम माही की अपेक्षा हुए फलों के साथ मिलाकर इसका उपयोग अधिक उत्तार पर पिघलता है । यह अपने से करना चाहिए। अगर-अगर के शुष्क बारीक १०. गुने जल में भी धुल कर शीतल होने पत्र चाय की चम्मच भर की मात्रा में कैस्करा पर सरेश में परिणत हो जाता है । के विना मरोड़ एवं रेचन के उत्सम परिणाम (४) एक ही यमन में इससे सिरेराम माही से १० उत्पन्न करते हैं। अगर के प्रभाव को आन्त्रीय गुना अधिक परेश तैयार होता है । श्राहार हेतु पृष्टों तक ही निर्मित रखने की दृष्टि से इसके चेश्रो सरेश ( अगर अगर ) प्राणिज सरेश से साथ बहुत सी अन्य औषधियां जैसे फिनोलअधिक प्रिय नहीं होता, क्योंकि वह ( वेश्रो) data ( Phenol-pha thaloin ) * मुख में श्रनयुल होता है और उसमें नत्रजन (रेवन्द), टैनोन (कपायीन), कैटेच्यू ( कत्था) भी अभाव होता है । उसमें सर्वोपरि गुण तथा कैलम्बा इत्यादि सम्मिलित करदी गई हैं। यह है कि वह अति न्यून परिवर्तनशील होता है, हिट० मे० भे। अस्तु, उपयोग हेतु प्रस्तुत, स्वादिष्ट एवं मधुरीकृत यह पोपक तथा स्नेहकारक है और सीलोन 'सी बीड जेली' ( समुद्र शैवाल सरेश ) नाम से; मास (चीनी धास नं०१) के समान व्यवहार में कभी कभी सिंगापूर से प्राया हुअा सरेश विना पाता है । यह उत्तम आहार है । ई० मे० मे० । विकृत हुए उसी रूप में वर्षों रक्खा रह गई agarai-हिं० वि० [सं० अगरु ] सकता है। श्यामता लिए हुए सुनहला संदली रंगका अगर । अधुना विशेषतया उष्ण जल वायु में जीवाणु अग़रता :ugharata-वर ब० छोटी माई का शाम्रान्धेपणार्थ व जीवाणु उत्पादन बर्द्धन हेतु यह वृक्ष (फराशवृक्ष) Tamaris gallica, अधिक उपयोग में लाया जाता है। (ढाइमाक) linn. For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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