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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ..अहिरावन ...पहिल्या अहिरा बन ahi-ravana -अम्ब० घया... को पानी में पीस कर अच्छी तरह लेप करके महिरावन mabi-larana) मारी | जखमे सुखाले और एक जवान पुष्ट काला गेहुँ अन सौंप हयात-फा०। ( Bryophyllum ca. को पकड़ कर इस प्रकार मारें कि उसके बदन में lycinum, Salied.) मेमो०। | "चीट लभकर छिद्र न हो जाएँ ( कोरे। फार्म अहिरिपुः ahi-vipub-सं० पु. मयूर, मोरपक्षी। सुंघाने से साँप मर जाता है.)। फिर उसके पेट (A peacock ) रत्ना० . . में मुख द्वारा ३२ तो० पिसी हुई हरिताल हाल ..अहिलता ahi-lata-सं० (हिं० संज्ञा ) खी. कर ४ तो० पिसा हुआ बच्छनाग डालकर फिर (१)सापस ६ । (Ophicxylon serpen.i ऊपर से खूब बारीक पिसी हुई ३२ तो० हड़ताल tinum) गन्धनाकुली। रा०नि० २०७। डालकर उपयुक्र घमें ४ तो० पिसा हुआ बरछदेखो-नाकुली । (२) ताम्बूल, नागवल्ली, नाग और एक सेर बकुची, भिलाया और इन्द्रजौ पानवृक्ष । पान गाछ बं।। (Piper betle., ' का चूर्ण डालकर ऊपर से उस साँप की syn, cha Vica betle. ) to táo đỏ | 'गोल चक्री जैसी करके रख । ऊपर से पाक की टहनियाँ ६४ तो०, थूहर की टहनियों । सेर, वट अहिलेखन ahi-lekhalla-हिं० सज्ञा पु जटा की अंकुरे । सेर और चिकुवार ? सेर डाल. - [सं०] अहिल्यम्-स' । अगमकी-हि ! कर घड़े के मुख को गुड़ चूने से अच्छी तरह बंद (Mukia go abrella. Iru) फा०६० करके ऊपर से कपड़मिट्टी करके सखाले'। फिर २ भा०। उसे चूल्हे पर रख कर नीचे चावल पकने योग्य अहिलोकिका hlilo-kika-सं० स्त्री० भूम्या- हलकी श्राग दें। पुनः १६(११२) तो. घी मलकी, मँई पामला.! ( Phyllanthusi लोहे की कड़ाही में गरम करके घड़े की सभी चीज़ meruri.) ० निघ०। उसमें डाल कर नीचे तेज व दे और बीच अहिल्यकम् ahilyakam-स. क्ली अहिलेखन, | में = तो० भूनी फिटकिरी ८ तो० सुहागा ले घंटाली, अगमवी-हिं० । (Mukia scab- - सूर्ण करके घोड़ा थोड़ा चुटकी से डालते रहें । rella, Arn.) फा००२ भा० । जब कड़ाही के ऊपर आग लगकर सब धी जल अहिवधो रसः ahivadio-rash-सं० पु. जाए तब उसमें उपयुक ताम्बा और सीसा का मिट्टी का नया एक ऐसा घड़ा लें जिसमें ४ सेर छाना हुआ. चूण मिलाकर पारीक पीस कर पका पानी पासके । फिर शुद्ध गन्धक ६४ तो०, रखले'। ताम्बे के पत्र ३२ तो० और सीसे के पत्र ३२ तो० • इसको 1 रसी भर से प्रारम्भ करें। चार दिन लेकर बड़े के नीचे गन्धक का चूर्ण और उस पर बाद दूना, फिर चारदिन बाद तिगुना और ४ दिन ताम्र पत्र तथा ऊपर से सीसे के पत्र, फिर उसके बाद चौगुना, इस प्रकार जब ४ रत्तीपर मात्रा प्रा उपर गन्धक का चूर्ण', इस प्रकार घड़े में सबों जाए तब उतने ही लेते रहें। दिन तक जी का की तह जमाकर ऊपर से १२ तो० पारे और दलिया खाएँ । नमक बिलकुल त्याग दें। यदि गन्ध्रक की कजली डालकर घड़े के मुख को करथा, नमक न छोड़ा जासके तो किंचित् संधानमक गुड़ और चूना मिलाकर बन्द करके सुखाकर बड़े लिया करें। इस तरह करने से सम्पूर्ण शरीर को चूल्हे पर रक्खें और. नीचे से १२ पहर की , में व्याप्त कुष्ट हो जाता है। यह त्रिदोष तेज आँच ३। जब स्वांग शीतल होजाए तो जन्य रोगों और राजयक्ष्मा को नष्ट करता है। निकाल कर बारीक पीसकर मोटे कपड़े से छान रस. यो० सा० । कर पृथक् रखले | अहिल्या ahilyi- स्त्री० धन मेथिका । बन फिर एक ऐसा घड़ा लें जिसमें पका सेर मेधी 1 (Crotalaria albida.) 4. पानी प्रासके; फिर उसके भीतर गह और बने निघ । .. .. For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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