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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir "अष्टादशाङ्ग गुटिका अष्टावक रसः ग -समरान पर नाशक । कर घृत और मधु के साथ वटिका निर्मित करें। द्वितीय-भूनिम्ब, दारुहरिद्गा, दशमूल, अनपान-इस को तक के साथ उपयोग में लाएँ । माँट, नागरमोथा, तिक इन्द्रयव, धनिया, नाग- गुण-पार डुघ्न । भा० म०२ भा०। केशर और पीपल का कषाय । गुण-तन्द्रा, प्रलाप, कास, अरुचि, दाह, मोह, श्वासादि अष्टाप: ashtapadab-सं० प. । सम्पूर्ण रक विकार और घर को तत्काल । अष्टापद asstipala-वि० संज्ञाए शन करता है। (१) शरभ । Se3.-sharabha | (२) तृतीय-द्राक्षा, गुडूची, कचूर, भृगी, नागर. . मर्कट । बानर-हि. । (A monkey) माथा, लालचन्दन, सोंड, कुटकी, पाठा, भूनिम्ब, देखो-मकंटः । (३) महासिंह । See.. दुरालभा, बम, पाकाष्ट, धनिय!, सुगन्धवाला, . Mahasinha i (४)धुस्तर । धतूरा-हिं० । कण्टकारी, पुष्कर और नीम । गुगा-तुरन्त जीर्णज्वर ( Datura fastuisin)रा. नि० व. को दूर करता है। १६ (५) शतरनकी चाल । वा० उ० प्र० २२ । चतुर्थ नागरमोथा, पित्तपापड़ा, उशीर, देव "पक्वेऽष्टापदवद्भिन्ने” । -क्लो० (६) दारु,महोपध, ग्रिफला,दुरालभा और यवास, नीली सुवर्ण, सोना । ( Gold ) रा०नि० व० कम्पिक, निशाथ, चिरायता, पाउ, बला, कटुकी, १३ । -(दी) स्त्रो० (७) मतिका भेद । रोहिणी, मुलेगी, पीपलामून प्रादि नागरमोथा | . चन्द्र मल्लिका । गण कहलाते हैं । च० द०। भैष । अष्टादशाङ्ग गुटिका ashta.dashangaguti- ! | अष्टापद ashtāpada-हि० संज्ञा पुसिं०] -ki-सं० स्त्री० चिरायता, कुटकी, देवदारु, (.) लूता, मकड़ी, । (२) कृमि । देखोदारुहल्दी, नागरमोथा, गिलोय, कडुप्रा परवर, अष्टापदः। धमासा, पित्तपापड़ा, निम्बहाल, सौंठ, मिर्च, अष्टाम्लवर्ग ashtanka-varga-सं० प. पीपल, त्रिफला, वायविडंग प्रत्येक १-१ भा०, आठ खट्टे फल, यथा-(.) जम्बीर, (२) लौह चूर्ण सर्व तुल्य, चुरख कर शहद और घृत बीजपुर, (३) मातुलुग, (४) नुक्रक, - से गोलिया बनाएँ । (५) चांगेरी, (१) तिन्तिदी, (७) बदरी गुण-इसे तक के साथ भक्षण करने से पांडु, . और (B) करमई। शोध, प्रमेह, हलीमक, हृद्रोग, संग्रहणी, श्वास, खासी, रनपित्त, अर्श, आमवात, व्रण, | अष्टावक्र ashri-vakra-हिं० संज्ञा प.. गुल्म, कफज विधि, श्वेत कुष्ठ, उरुस्तम्भ आदि [सं०] एक ऋषि । रोग दूर होते हैं। वंग से० सं० पांडुरो. अष्टावक्र रसः ashra-vakra-rarah-सं० चि०1 प. रसायनाधिकारोक रस विशेष । यथा-पारद अष्टादशाङ्ग लौहम् ashradushanga-louh. १ भा०, गन्धक २ भा०, स्वण' भस्म १ भा०, am-सं० क्ली० पांडु अधिकारोक लौह चाँदी फस्म ॥. भा०. शीपा भस्म | भा०, विशेष। राँगा भस्म ।. भा, ताम्रभस्म १० भा. और योग तथ निर्माए-क्रम-चिरायता, देवदारु, खपरिया शुद्ध १० भा० इसको चटार तथा दारुहरिद्रा, नागरमोथा, गुडची, कुटकी, पटोल, घीकार के रस में १ प्रहर तक मन कर रसदुरालभा, विसपापड़ा, निम्ब, त्रिकटु, चीता, सिंदूर की तरह पकाएँ । मात्रा-२ रत्ती। त्रिफला, मयनफल, वायबिडंग इन सबको समान अनुपान-पान का रस । भषः । भाग लेकर इन सब के बराबर लौह भस्म मिला. For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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