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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अश्वत्थ www.kobatirth.org ૭૦૩ पीपल वृक्ष के तो० दूध में कुटी एवं छानी हुई इमली की छिली हुई गिरी १० तो० मिलाकर सुखाएँ । चने का आटा २० तो गोघृत १ पात्र, खाँद श्राध सेर इनका यथा विधि हलुधा बनाकर उतारने के पश्चात् दुग्ध द्वारा विशेोधित इमली का चूर्ण, छोटी इलायची के दाने, केशर १० माशा बारीक करके मिला दें । गुणधर्म -- कामोद्दीपक, वर्ण एवं मुखमंडल को कांति प्रदान करता एवं सुन्दर बनाता है । मात्रा-२ तो० से ३ तो० तक 1 यह पुरुषों के प्रमेह और स्त्रियों के सोमरोग की अपूर्व औषध है । प्रतिदिन प्रातः काल ६ से १२ बूंद तक पीपल का दूध एक छोटे बताशे में डालकर मुँह में रखें और ऊपर से गाय का या भैंसका प्राधसेर धारोष्ण दुग्ध पी लिया करें । "स्वप्रदोष के लिए यह अत्यन्त लाभदायक है । से बारह दिन के सेवन से रोग निर्मूल हो जाता है। पीपल का दूध लगाने से त्रिपादिका (बिवाई) भर जाती है। "जिस स्त्री के बचा पैदा होता हो और जो व्यथासे बेताब हो रही हो उसको तोला भर भैंस .के गोबर को प्राथ सैर पानी में पकाएँ, जब चन्द्र जोश आ जाए तब छानकर ४ तो० मधु और ११ बूंद पीपल का दूध मिलाकर पिलाएँ। प्रसव होगा । 'सफेद संखिया को ४ सप्ताह पीपल के दूध मैं खरलकर मूँग के दाने के बराबर वटिकाएँ प्रस्तुत करें | प्रतिदिन एक गोली प्रातः और एक रात को सोते समय दूध के साथ खिलाएँ । दूध गाय या भैंस का हो और इसमें देशी खाड़ मिला लिया करें । २१ दिन के सेवन से हर प्रकार का रोग दूर होता है। अपथ्य - मादक द्रव्य तथा खटाई । शुष्क पोदीने का चूर्ण या घतूर की शुष्ककली 'का चूर्ण १० मा० तक लें और इसमें पीपल का दूध १५-१६ बूँद सम्मिलित कर तमाकू को हर विजन में पिएँ तो कसको तस्काल लाभ होगा ! " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अश्वत्थ जिस स्त्री के बच्चे बालापस्मार से मर जाते हों वह यदि बच्चा पैदा होने के दिन से लेकर दो मास पर्यन्त प्रतिदिन पीपल का दूध १ बूँद गाय या बकरी के दूध में मिलाकर पी लिया करे तो उसके बालक स्वस्थ रहेंगे। दूध में श्रावश्यकतानुसार मिश्री मिला लेनी चाहिए । उन्माद या अपस्मार के कारण अथवा हौलदिल या किसी विष वा मादक द्रव्य वा किसी भी प्रकार से हुई मूर्च्छा में पीपल के दूध के कुछ बूँद रोगी के कान में टपकाने तथा दूध को समान भाग शहद में मिलाकर मस्तक पर प्रलेप करने से रोगी होश में श्रा जाता है 1 अश्वत्थ मूल पीपल की जड़ का मंजन दंतशूल में उपयोगी है। इसकी जड़ की छाल के काथ से विम रोग मिटता है। पीपल के छोटे वृक्ष जो पेड़ वा दीवारों पर कुरित हो जाते हैं उनकी बारीक जड़ या जड़ " के एक मृदु बारीक अगले भाग को पीसकर फोड़ों पर प्रलेप करने से वे शीघ्र विदीर्ण हो जाते हैं । अश्वत्थ मूल स्व को छाया में शुष्क करके बारीक पीसकर कपड़छान करें और पीपल की जड़ के रस में चालीम दिन खरल करके शुक होने पर ६ मा प्रातः सायं गौ के कल्या दुग्ध के साथ सेवन कराएँ । गुण-- पुरुष के बीर्य दोष एवं निर्बलता में लाभप्रद 1 इसकी जड़ की छाले शुक्रसांद्रकर्ता तथा aratatपक एवं कटिशूलहर है । बु० मु० । यह वीर्य स्तम्भ है । भ० मु० ! पीपल की लकड़ी पीपल की लकड़ी का कटोरा बनाकर उसमें दूध डालकर स्त्रीको प्रति दिन प्रातः काल पिलाने से बन्ध्यत्र दूर होकर गर्भस्थापन होता है। जिस घर में साँप हो वहाँ पीपल की लकड़ी जलाकर धुँ श्रा करने से साँप निकलकर भागता है । जिस दिन ज्वर श्राने को हो उस दिन For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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