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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अश्वगन्धाभ्रका ७७३ asa1717169: ashvaganihábhrakah लेकर मिट्टी की कड़ाही में डालकर मंद अग्नि से -सं.पु.८ सेर प्रमगंध का काथ बनाकर । पकाएं। जब पकने पकते प्राधा दृध शेप रहे छाने । फिर उममें १६ तो. धी, ३२ तो० अभ्रक तब ऊपर बनाए हुए चुणों को उसमें मिला दें। और सबके बराबर हल्दीका चर्गा मिलाएँ । और जब वध और घो घांटते घोटते पृथक न मालूम केवाँच के बीजोंका चूर्ण, त्रिफला, वितात, नागर- पड़े तब उतार लें । फिर जीरा, पीपलामूल, मोथा, पृथक पृथक् चार चार तो० मिलाकर तालीसपत्र, लवंग, तगर, जायफल, खस, सुगंध. पका पाक तैयार होने पर पैदा कर उसमें ३२ बाला, ननद (बारीक स्वस), बेलगिरी, कमल सो० शहद मिलाएँ। के फूल, धनियाँ, धोके फूल, वंशलोचन, पामला, स्वैरमार, घनसार (कपूर ), पुनर्नवा, अजगंधा, मात्रा-बलानुसार देने से राजयक्ष्मा, उर: चित्रक और शतावरी प्रत्येक साधा तो. और क्षत, क्षय, वात रांग और कृशता को दर करके त्रियों में अत्यन्त हर्ष को उत्पन्न करता है। रस. शुद्ध पारा २ तो० तथा रमसिंदूर २ सी० लेकर यो सा०। बारीक चणकरके । लाएँ। फिर उंडा होने पर शहद मिलाकर चिकने बर्तन में रखें। अश्वगन्धादिः ashvagandharishrah-स. पु. असगंध तुला, मुपली ८० त०, मजो:- मात्रा-२ तो। हड़, हन्दी, दारुहरूदी मुलही, रास्ना, विदारीकंद, , गुण-खाँसी, दमा, हिचकी, अजीण वातअर्जुनकी छाल, नागरमोथा, निशीथ अनन्ता (दूब) रक, नीला, वातरोग, प्रामवात, सूजन, बादी श्यामलता प्रत्येक ८०-९० तो०, श्वेत चन्दन, मवासीर, पांडु, कामला, संग्रहणी, गल्म रोग, वात रक्र चंदन, च, चिनक प्रत्येक ६४-६४ तो० इनको कफ के विकार तथा मंदाग्नि को दूर करता और सण कर + द्रोण जल में पकाएँ । जब द्रोण बालके, सियों तथा प्रल्पवीयं वाले पुरुषों की काय शेष रहे तब शीतन हो जाने पर धवपुष्प काम वृद्धि करता है । रस. यो० सा०। १२८ नो०, उत्तम शहद १५ सेर, सोंठ, मिर्च, अश्वगन्धिका ashva-gandhika-सं० स्त्री० पीपल १६-१६ तो०, दालचीनी, इलायची. तेज प्रश्वगंधा, असगंध । (Witharia Somnia पत्र ३२ तो०, फूल प्रियंगू ३२ तो०, नागकेशर fera.) रा.। १६ तो चुर्गा कर उक काध में मिश्रित कर उत्तम पाय में रस्स एक मांस पयंत रखने से यह अरिष्ट अश्वगोष्ठम् ashvagoshtham-सं० क्ली. सिद्ध होता है। वाजिशाला, अस्तबल, तबेला, धुसाल, । (A मात्रा-१ से २ तो०।। sta bie. ) अल-इसके विधिवत् सेवन करने से मुर्छा अश्वघ्नः ashvaghnah-सं० पु. श्वेत करवीर अपस्मृति, शोष उन्माद, दुर्वलता, पर्श, मंदारिन । वृक्ष, सफेद कनेर का पेड़ । श्खेतकरवी गाल-बं०। और समस्त वात व्याधियों का नाश होता है। Nerium odorum ( The white भैप०र० मूर्छा चि. val. of-) रा.नि. २०१०। अश्वगन्धाव लेहः ashvagandhavalehah | अश्वचा ashvachakra-हिं० संज्ञा पु. -सं० पु. असगंध चूर्ण ४० तो०, सौर चण', [सं.] (१) घोडे के चित्रों से शुभाशुभ का २० तो०, पीपल चूर्ण १० तो० और काली! विचार । (२) घोड़ों का समूह । मिर्च ४०, दालचीनी, छोटी इलागची, तेजपात , अश्व आंधनः ishvajivansh-सं० पु. और नागकेशर सूर्ण प्रत्येक ४ तो०, गाय का ! चणक। चना-हि. । छोला-बं०] Gram दूध २०० तो०, शहद ५० तो., गाय का घो: or chick pea (Cicer ariatin. २१ तो०, सब १०० तो०, सबको पृथक् पृथक् ॥m.) घे० निधन ! For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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