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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अलीपिन सा प्रलीय • book") अर्थात् राजकीय ग्रंथ लिखा है, यह हसन अलो बिन रिजवान बिन अली बिन जमकर । पापही के लिखे हुए ग्रंथ रत्नों में से है । इन्होंने इनकी उत्पत्ति मिश्र देश के जीन स्थान में हुई यह ग्रंथ उल्लिखित राजा के लिए ही खिखा था। थी। किसी २ अँग्रेजी ग्रंथ में लिखा है कि यह इस कारण इसे उसी के नामसे अभिहित किया। खलीफ़हुल हाकिम के काल में सन् १०६८ ई. यह अपने काल का अनुपम ग्रंथ तिव्य इल्मी व में मिश्र में एक उरचकोटि के हकीम प्रसिद्ध थे। अमली दो भागों में विभाजित है और प्रत्येक इनके पिता रिश्वान बिन अली तनूर बनाने वाले भाग के कतिपय स्वएट हैं। श्रमली अर्थात् प्रायो. थे। अली बिन रिजवान ने एक साधारण पेशावर गिक भाग में व्यवच्छेद, इद्रिय व्यापार, सामान्य की सन्तान के सदृश पालन पोषण व शिक्षा पाई विकृति विज्ञान, गुह्येन्द्रिय संबंधी रोग, स्या और क्योंकि स्वभावतः इनका ध्याम योग्यता व विकार, व्रण तथा क्षत प्रभृति का वर्णन है । और विद्या प्राप्ति की ओर था। इसलिए किसी पेशा में इल्मी में स्वाध्य संरक्षण, आहार, निघण्टू तल्लीन होने की अपेक्षा उन्हें विद्या-विलास अधिक (औषधनिर्माण ), विशेष विकृति विज्ञान और प्रिय व रुचिकर था । ३२ वर्ष की अवस्था में यह चिकित्सा का सविस्तार वर्णन है । कानून शेख के एक उच्चकोटि के और नामवर तमीम प्रसिद हो प्रकाशित होने से पूर्व अरब व भजम में यह वैद्यक गए और ६०, ६५ वर्ष की अवस्था तक अत्यन्त की एक अत्यन्त प्रशस्त व प्रामाणिक पुस्तक सफलतापूर्वक चिकित्सा कार्य करते रहे ! मानी जाती थी। कई बार लेटिन भाषा में इसका | परन्तु यह कुछ तुन्द प्रकृति के मशहर थे। यह भनुवाद किया गया । यह पुस्तक मिश्र के अपने समकालीन और कोई कोई पूर्वकालीन . मुद्रणालय में अब भी मिलती है। चिकित्सकों, यथा-शेखर ईस त्र जकरिया राजी अलोबिन ईसा aali bin-aisa-० ईसा बिन प्रभति के वचनों का खंडन किया करते थे। किसी किसी समय अनुचित वचन कह जाते थे। अली ( Ali bin Isa, Jesus Haly). यह अराक अरब के प्रसिद्ध नेत्रचिकित्सक मली बिन रिजवान चिकित्सा में यह केवल पाँचवीं शतानि हिजरी या ग्यारहवीं शताब्दि उस्ताद विद के शिष्य थे। पुस्तकों के सिवा मसीही के पूर्वाद्ध में हुए। यह नेत्ररोगों की इन्होंने यह विद्या किसी से नहीं पड़ो । इमका चिकित्सा में अत्यन्त सिद्ध हस्त थे। यही नहीं, वचन है कि विद्या जितना अध्ययन से बढ़ती है उतना पार पाठ पढ़ने से कदापि नहीं बढ़ सकती। प्रत्युत यह अपने काल के इमाम माने गए हैं।' और समकालीन और पश्चात् कालीन सम्पूर्ण सन् ४५३ ई० में खलीफा मुस्तनसर बिल्ला के चिकित्सकों ने इस विषय अर्थात चारोग की काल में प्रापका स्वर्गवास हुा। आपमे एक चिकित्सा एवं रोग विनिश्चीकरण में अली विन ! सौ से अधिक ग्रंथ लिखे हैं। . ईसा का ही अनुकरण किया है। अली( ले)मड़ी ali (le ) mari-हिं. वरुण, मली बिन ईसा के प्रन्यों में केवल एक बंध | ___ बरनावृत । ( Crateeva tapia.) "तधिकरतुल कु.हालीन" ( Book of अलाल alila-हि. वि. [२०] बीमार, रुग्ण । . Memoranda for Eye Doctor -.) i अलीवन alivan-यु० शेर । (A lion.) प्राप्त होता है । घरोगों के निदान व चिकित्सा अलीवह alivah-यु० जैतुन । ( Olive.) पर इस बंग का अपने समय का यह एक अनुपम अली(ले)वा ali,-le-va-10 जंगली अंजीर । ग्रंथ है। यूनानी चिकित्सा में अनुरोगों में यह - (Wild fig.) प्राज पर्यन्त भी एक उत्तम ग्रंथ माना जाता है। | भलीष्टः alishrah-सं० तिलक वृक्ष,तिल, भली यिन रिजवान aali-bin.rizvan-२० तिही । सिन गाछ-बं०। ( Sesamum (ali bịp Rudhwan Rodoam).aval Indicum. ) so farsto 1 For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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