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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org डॉलस साधारणत: खाली पेट में वेदना हुआ करती और आहार ग्रह करने पर वह कम हो जाती है । परन्तु, कभी इसके विपरीत होता है । उदराध्मान, प्राोप तथा दाह होता है । डकारें आती हैं, मी खाता है और प्रायः वमन हो जाता है । अर्वाचीन मिश्र देशीय चिकित्सक इस रोग को इन क्ररत्र लिखते हैं जिसको सही श्रंगरेजी पर्याय हार्टबर्न ( Heartburn ) है । और जिसको उर्दू में कलेजा जलना तथा हिन्दी में sure कहते हैं । अंगरेजी ( भांग्ल भाषा ) में इसे कार्डिएल्जिया ( Cardialgia ) भी कहते हैं जो अपने अर्थ के अनुसार वजूर लवाद का बिलकुल सही पर्याय है 1 वज्लुमिअदह (आमाशय शूल ) - इसमें आमाशयिक स्थल पर कठिन वेदना होती है जिसकी टीमें वाम स्कन्ध पर्यन्त जाती हैं । वेदनाधिक्य के कारण रोगी बेचैन हो जाता है और जलशून्य मत्स्यवत् लोटता है तथा श्रामाशय के स्थान पर दबाता है । सूचना- तिब्बी ग्रंथों में वज्डलूनुवाद के जो लक्ष्य लिखे हैं वे वस्तुतः वजूउल्कुल्ब के लक्षण हैं । किन्तु वज्डलमिवदह ( श्रामाशय शूल ) के लक्षण भी इसके बहुत समान होते हैं। इसलिए रोगविनिश्चय में दिक्कत होती है । परन्तु वज्डलमिदह में तीच्ण प्रचेतता नहीं होती और न तात्कालिक प्राणनाश का भय होता है । अलमूल alamúl-सं० गायजुबाँ बम्ब० । अलमोल: alamossh. सं० पुं० मत्स्य भेद ( A sort of fish ) वै० निघ० । अलमोसा alamosa--हिं० श्र (इ)मली । ( Tamarindus Indicus.) I अलम् alam अन्य [सं०] यथेष्ट । पर्याप्त । पूर्ण । काफ़ी । (Enough, sufficient. ) अक्रम alam-फा० (१) अदरक, मादी ( Zingiber officinalis ) देखोआई। (२) कंगुनी, चीना । ( Panicum verticillatum.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अम लम् aalam - रसा० इबसाख, हरिताल | ( Yellow orpiment) अलम alam मल० कुम्बी-सं०, बं० हिं० । वकुम्भ - ते० । ( Careya arborea ) इ० मे ० मे० । अलम् alam o १ ( ० ० ), अलम alama-हिं० संज्ञा पुं०) पालाम ( ब० ब० ) | रंज, दुःख दर्द, कष्ट, वेदना, व्यथा, पीड़ा । पेन ( Pain ), एक ( Ache ) - ६० । हकीम जामीनूस के वचनानुसार मनुष्य का प्रकृतावस्था से अप्रकृतावस्था की ओर चला जाना "म" कहलाता है। फिर चाहे उसे उक्त अवस्था का बोध या ज्ञान हो अथवा न हो यथा - व्यथित व अचेत होना । किन्तु शेख का वचन है कि विरुद्ध वस्तु का बोध होना ही श्रलम् कहलाता है । यथा— किसी बुरे समाचार के सुनने अथवा किसी तिक या स्वाद रहित वस्तु को चने से कष्ट प्रतीत होता है । अस्तु, दोनों परि भाषाओं के पारस्परिक भेद का परिणाम यह है कि जालीनूस श्रचेत व मूच्छित व्यक्ति को भी दुःखान्वित " मुब्तलाए श्रलम्” कहता है; किन्तु शेख चूँकि "अलम्" की परिभाषा में बोध व ज्ञान की सीमा निर्धारित करते हैं । अतः वे अचेत व मूर्चित व्यक्ति को दुःखान्वित नहीं कहते । वास्तव में यदि ध्यानपूर्वक देखा जाए तो दुःख वही है जिसका बोध हो । अस्तु शेख की उम्र परिभाषा अधिक सही और अनुमेय प्रतीत होती है 1 नोट- प्राचीन फ़ारसी व अरवी तिब्बी ग्रंथों में ब्यथा के लिए वजूभू शब्द व्यवहृत हुथा है । किन्तु अर्वाचीन मिश्र देशीय हकीम अब वन (वेदना) के लिए प्राय: अलम् शब्द को व्यवहार में जाते हैं। अस्तु, निम्न शब्द शब्दों के ग्रंथों से उत किए गए हैं। श्रतम् और वन का भेद- उतामह कुर्सी के वचनानुसार जिस दर्द का बोध विशेष स्पर्श शक्ति द्वारा हो उसे वफा और जिसका बोध सामान्य अर्थात् सावतिक या सामूहिक बोध शक्ति द्वारा हो उसको अक्षम् नाम For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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