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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्शः दषित हो जाता है अथवा जो सदैव मांस खाते द हरो रसः Arrruda-haro-rasah हैं उनको ग्रह अर्बुद रोग उत्पन्न होता है। यह -सं० पु. पारा ( रस सिंदूर ) को चौलाई, मांसावुद असाध्य है। साध्य अवु'दों में भी विषखपरा, पान, घोकुपार,खिरेटी और गोमूत्र की निम्नलिखित प्रवुद स्याज्य हैं। यथा भावना देकर पान में लपेट कर उसके ऊपर संत्रतं मम्मरिण यच्च जातं मिट्टी का २ अंगुल मोटा लेप करके सुखाकर स्रोतः सुवायश्च भवेदचान्यम् ।। एक साघु पुट दें। इसके सेवन से अत्रु नष्ट यज्जायतेऽन्यत् खलु पूर्व जाते। होता है । र० र० स० २४ अ०। ज्ञेयं तदध्यव दमदः ॥ अचुदाकार: arudalkarah-सं० ० यद् द्वन्द्व जात युगपत् क्रमाद्वा बहवार वृत, लमोरा । चालिता गाछ-ब.1 द्विरदं तच्च भवेदलाध्यम्। ( Cordia imysa. or C. Latifolia.) मा० नि० । मु०नि० ११ १० वै० निघ० । अर्थ-साधयुक्र, मर्मस्थान नथा नासिका प्रादि छिद्रों में उत्पन्न होने वाले एवं अचल अम्वु दादिजः ॥ latirijah-सं० . मेष,गो,मेदासिंगी । मेढाशिङ्गी- प्रवुद असाध्य होते हैं (प्रथन जिस स्थान में । मुरदार शिंग-मह० । (Aselepins goininata) अर्बुद उत्पन्न हुअा हो उसी के ऊपर जो एक निघ०1 दुसरा प्रवुद उत्पन्न हो जाता है उसको अध्यबुद करते हैं। एक साथ दो अर्बुद अथवा जो अव्वु दान्तरिक रेखा Vedantarikक्रमशः एक के पश्चात् दूसरा अर्बुद उत्पन्न हो rekhá-lo al. (Intertubercular जाता है उसको द्विरवुद कहते हैं, यह असाध्य plase.) वह पड़ी रेखा जो नितंबास्थियों के ऊपर के किनारों (जवन चूड़ा) के उभारों में अर्बुदों के न पकने के कारण से गुजरती हैं। न पाकमायान्ति कफाधिकत्वान्मेदोऽधि- श्रदान्तरिका रेखा alvrudantarikaकत्याच विशेषतस्तु । Tekhá-a to (Intertubercular दोष स्थिरत्वाद् प्रथनाशतेषां सर्वा! i plane. ) वरम् ॥rvvāram-सं० क्ली. श्राहुल्य नामक दान्येव निसर्गतस्तु ॥ तुप । तड़बड़-काश० | तड़बड़-मह । वै० मा०नि० । सु० नि० ११ अ० निघ०२ भा० संग्रहणी चि० तालीशादिचूर्ण। अर्थ-कफ की अधिकता से वा विशेषकर : भेद की अधिकता से पूर्व दोपो की स्थिरता से अर्शः ( स् ) ashah,-s--सं० क्ली०। । अथवा दोषों के ग्रंथि रूप होने से सर प्रकार: अश alsha-ह. संज्ञा प० अद स्वभाव से से ही नहीं पकने । स्वनामाख्यात गुदरोग विशेष, एक रोग जिसमें नोट-यूनानी वैद्यक के मतानुसार अर्बुद के बातादि दोषी के दूषित होने के कारण गुदा में अनेक प्रकार के मांस के अंकुर उग आते हैं लक्षण आदि विषयक पूर्ण विवेचन के लिए अरबी शब्द सलह संज्ञाके अन्तर्गत देखें । मेदोर्बुदको ! जिनको अर्श अथवा प्रवासीर कहते हैं । ये नाक अंगरेज़ी में फैटी टयुमर (Fatty tumour): एवं नेत्रादि में भी उत्पन्न होते हैं। श्रायुर्वेद के और अरबी में सलह, दुनिस्वह, वा शहः। - अनुसार इनके निम्न भेद हैंमिय्या कहते हैं। (१) वातज, (२) पिसज, (३) कफज, आयुर्वेदीय चिकित्सा के लिए इनके अपन (५) सानिपातिक, (५) राज और (६) अपने भेदों के अन्तर्गत अवलोकन करें। सहज । विस्तार के लिए देखिए-मासी। For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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