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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भरग्वधः ५६५ भरङ्गका अरग्वधः aragvadhah-सं० पु. श्रमल तास, श्रारम्वध, धन बहेड़ा । ( Cassia, fistula.) रा०नि०व०६ । भा० पू०१ | भा० । द्रव्य० गु० ३० निघ०। अरग्ववम् aragvadham-सं० ली. अमल तास, स्वर्णालुफल । (Cussia fistula.) सि० यो० वृहद् अग्निमुख चूर्ण । अरघान iraghāna-हिं० संज्ञा पुं० [सं० माघ्राण-(धना ] गंध । महक । आघ्राण । अरङ्गः,-गा,-गोarangab,-ga-gi-सं००, स्ना० (१) परङ्गीमत्स्य, मछली भेद, मछली विशेष ( Pisces.) ० निघ० । (२) मधु शिग्रुः, मीत्र सहिजन । रत्ना० । ( Guilandina Moringa, Sweat val. of-) भरत aranga-वरार• कुटकी, मोगडर, गोण्डा। नार-चोटकु-ते०। (Eriolena Hookeriana, W&.1; Syn. Ereolena spsctabilis Planch.) इसके तन्तु एवं रुई व्यवहार में प्राती है। मेमो०। भरतक:arangakah-सं०पु० दिनकर्लिग, कडु खजूर, काला खजूर-हिं० । मीलिया च्य बिया (Melia dubia, Cav. ), मी. सुपर्वा (Melia superba.), मो. रोबष्टा (Melia robusta.)-ले० । कहु खजुर-गुज०, बं०, बम्बई । निम्बर-मह० । काड-बेवु, भर-बेवु-कना। निम्ब वर्ग ( N.O. meliaceae) उत्पत्ति-स्थान--पूर्वी व पश्चिमी प्रायद्वीप ब्रह्मा तथा लंका। वानस्पतिक-विवरण-दिनकलिंग वृक्ष के शुष्क फल को संस्कृत में अरङ्गक ख्याल किया जाता है। प्राकार, रूप तथा वर्ण में यह बहुत कुछ खजूरके समान होताहै, परन्तु ध्यानपूर्वक | परीक्षा करने पर मज्जा एक अत्यन्त कठिन अस्थि ( गुठली ) से भली भाँति संश्लिष्ट पाई जाती है। फल डण्डी का भवशिष्ट भाग भी खजूर की दएडी से मिस दीख पड़ता है। जल में भिगोने पर फल शीवानी सिकुड़न को छोड़कर भंडाकार पीतामहरित वण' के बेर के समान हो जाता है। अब छिलका मोटा दीख पड़ता है तथा सरलतापूर्वक गूदा से भिन्न किया जा सकता है। फलशीर्ष मुड़ा हुआ होता है और उस पर सूक्ष्म अंकुर होने हैं। श्राधार पर पचभाग युक्र पुष्पाभ्यंतर कोष दल तथा फलहरडी का एक छोटा भाग लगा होता है । गुठलो १ इञ्च लम्बी, अप्रशस्त रूप से पञ्च परिखायुक्त, प्रलम्बित, दोनों शिरों पर छिद्र युक्र होती है; शीर्ष, छिद्र की चारों योर पञ्च दंयुक्र, पञ्चकोषयुक्त (या पतन के कारण इससे न्यून) होता है; बीज अकेला, भालाकार, शीर्ष से लगा रहता है। बीजापरण सूक्ष्म परिमाण में; गर्भ सरत, विलोम, दाल भालाकार; आदि मूल अंडाकार एवं ऊद्ध होता है। योज ३ इञ्च लम्बा तथा इञ्च चौड़ा होता है। बीज त्वक् ( Testa ) गम्भीर धूसर या श्याम वर्ण का परिमार्जित; गिरी अत्यन्त तैलीय एवं मधुर स्वाद यक होती है। उपयोगांश-फल । रासायनिक संगठन-(या संयोगी द्रव्य) फलस्थतिक तस्व एक प्रकार के रवा में परिणतिशील ग्लूकोसाइड है जो ईथर, मदयसार तथा जल में विलय होता है। इसमें किनित अम्त प्रति क्रिया होती है । इसके अतिरिक्र इसमें सेव की तेजाब ( Malic acid) ग्लूकोज, लुभाव, तथा पेक्टीन नामक पदार्थ पाए जाते हैं। डाइमाक। प्रभाव तथा उपयोग-फल मज्जा में एक प्रकार का तिक एवं मतलीजनक स्वाद होता है। श्रमजीवियों में उदरशूल की यह एक उत्तम औषध है। इस हेतु युवापुरुष की मात्रा प्रद फल है। इसमें किसी रेचक गुण की विषमानता मुश्किल से प्रतीत होती है। तो भी कहा जाता है कि यह कृमिघ्न प्रभाव करता है तथा म्यथाको तत्काल शमन करता है। कोंकनमें कच्चे फल का For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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