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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अयाचित श्रायापान अधिक ग्रसित होते है जो प्रथम बार जहाभा यात्रा करते हैं। सी सिक्नेस (Sea sickness.), नोपेथिया ( Naupathia)-ई। अयाचित ayachita-सं क्ली० अमृत नामक आहार, बिना माँगी मिली वस्तु । "अमृतं स्याद याचितम्" इति मनुः। प्रयात अस्ल ayat-asl-अज्ञात । अयादि लेप ayādi-lepa-सं० ली. लोहे का बुरादा, भांगरा, निफला, और काली मिट्टी को ईख के रस में १ मास तक रख कर लेप करने से बालों का श्वेत होना बन्द होता है। वृ० निकर अयातयाम ayatayama-हि. वि० [सं०।। (1) जिसको एक पहर न बीता हो। (२) जो बासी न हो। ताजा। (३) विगत दोष । | शुन्द 1(४) मनतिक्रांत काल का । दीक समय -० । रामागणम्, विशरयकरणी-सं० (० श० सिं०). मिश्र वर्ग (N. 0. Compositae. ) नॉट ऑफिशल (Not official.) उत्पत्ति-स्थान-श्रमरीका वा प्राजील इसका मूल निवासस्थान है। परन्तु अधिक काल से यह भारतवर्ष में भी लगाया गया है। यह माई स्थानों, चरागाहों तथा झील एवं नदी तटों पर होता है। अयादत aayadat-. बीमार पुर्सी, रोगी से उसकी हालत पूछना । अथानम् ayanam-सं० ली० । स्वभाव, अयान ayina-हिं० संज्ञा पु. । प्रकृति, निसर्ग । नेघर ( Nature )-इं०। हारा० । (२) प्रचंचलता। स्थिरता । -वि० [सं०] विना सवारी का । पैदल । शयान aayan-( रसा० परि०), पारद, पारा । (Mercury). प्रयाना ayin-मह. खाजा हिं० । कर्गनेलिया -feo I (Briedolia montana ) मेमो० । प्रयापनम् ayspanam-को०) --हिं०, मह० प्रयापान ayapana बं० । अयपानि अयापना ayapana -ता,ते । घरargra áyá pána कल, तत्री-पं०। अग(या)पा(प)नम्-को । अल्लाप, एल्लिपा, अशापा-गु० । युपेटोरियम् प्रयापना (Eupato. rium Ayapana, Vent.)-ले० । बोनसेट ( Boneset), थॉरोवर्ट ('Thorough wort )-इं० । अयप्पनै-ता० । निर्विषा । इतिहास-घेण्टीनाट ने इसे अमेजन नदी (दक्षिण अमरीका की एक नदी) तट पर भी उगा हुधा पाया । इसका एक अन्य भेद युपेटोरियम् पफोलिएटम् ( E. Perfoliatum ) अमरीका में जबरघ्न ख़याल किया जाता है। पेन्सली इसके विषय में वर्णन करते हैं-"यह एक स्वघुतुप है जो सर्व प्रथम फ्रांसीयद्वीपों से भारनवर्ष में लाया गया। देशी चिकित्सकों को प्रव भी इसके विषय में बहुत कम ज्ञात है। यद्यपि इसके प्रिय, किञ्चित् सुगंधिमय, किन्तु विशेष गंध के कारण इसमें औषधीय गुण होने का उन्हें विश्वास है। मॉरीशियस में यह बहुत विख्यात है। और यहाँ इसे परिवर्तक तथा स्कीनाशक ट्रायाल किया जाता है ।रसने अन्तः रूप से भौषधीय उपयोग के लिए युरूपीय चिकित्सकों को अब तक सर्वधा निराश रक्खा है। इसकी पत्तियों के शीतकषाय का स्वाद ग्राह्य एवं कुछ कुछ मसाजावत् होता है और यह एक उत्तम पथ्य पेय है। ताज़ा होने पर कुचल कर मुख मण्डलके बुरे पतों के परिमार्जनार्थ प्रयुक करने के लिए यह सर्वोत्तम आगाशोधक है" । डायर महोदय माननीय ऐन्सली को सूचित करते हैं कि इसे शुष्क कर, फ्रांस जहाँ कि चीनी चाय की प्रतिनिधि स्वरूप, एक प्रकार की चाय बनाने में इसका उपयोग होता है, भोजन के लिए बोधन (Bourbon) द्वीप में उक्त पौधे की कृषि की जाती है। गिपर्ट (Guibourt) के अनुसार अब यह करीब करीब विस्मृत सा होगया है । फार्माकोपिया ऑफ इण्डिया से इसके विषय में निम्न सूचना For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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