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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अम्हौरी अयप्पनई अम्हौरी a mhouri-हिं० संज्ञा स्त्री० [सं० आयुर्वेद के अनुसार शिशिर, वसन्त और अम्भस जल, अर्थात् पसीना+ौरी (प्रत्य०)]/ प्रीम इन तीन तश्रों का उत्तरायण काल होता बहुत छोटी छोटी फुन्सियाँ जो गरमी के दिनों में । है। यह पुरुष के बल का श्रादान काल है अर्थात् पसीने के कारण लोगों के शरीर में निकल पाती उत्तरायण में सूर्य प्रति दिन मनुष्य के बल को हैं । अँधोरी। हरण करता है। उत्तरायण में सर्यकाल में सूर्य अय: ayah-सं० पु. १.. का मार्ग बदलने के कारण सूर्य और पवन अत्यन्त अय ayia-हि. संज्ञा प०१(१) लोह, लोहा प्रचण्ड, गर्म और रूक्ष हो जाते हैं और पृथ्वी के Iron ( Feirtm )। ( २ ) अग्नि । | सौम्य गुणों को नष्ट कर देते हैं। क्रम से इन ( Fire)। (३) अस्त्र शस्त्र । इथियार । ऋतुओं में तिक, कगाय और कटु रस उत्तरोत्तर भय aya-ता. पपड़ी-हिं० । रसबीज-कना० । बलवान हो जाते हैं अर्थात् शिशिरमें तिक्र, बसन्त नविल्ली-ते। क्वल--म०] ( Holoptelea, में कपाय और ग्रीष्म में कट रस बलवान हो जाते Integrifolia, Planch.) फा० ई० है। इस कहे हुए हेतुसे बलका आदान अग्नि रूप भा०३। है तथा इसके विपरीत वर्षा, शरद और हेमन्त अयङ्गोलम् ayangoulam-मल० अङ्काल, | ये तीन ऋतु दक्षिणायन कहलाती है। इन तीन ढेरा । (Alangium decapetalumm, | ऋतुओं में पुरुष के बल की वृद्धि होती है। Lam.) स० फा००। इसको विसर्ग काल कहते हैं । मेघ की वृष्टि और अयञ्चेण्डरम् ayachchenduram-ता० मण्डर, ठंडे पवन के चलने से पृथ्वी पुष्ट और शीतल लौहकिट्ट । ( Ferri peroxiile.) स० हो जाती है और इस शीतलता के कारण चन्द्रमा बलवान हो जाता है और सूर्य हीनता को प्राप्त फा० इं। होता है इस ऋतु में उत्तरोत्तर खट्टे, स्वारे (लवण) प्रयत्ला ayatla-पं० एइलत, एल्लाल, प्रारूड, और मधुर रस बलवान हो जाते हैं, जैसे वर्षा में अखान । खट्टा, शरद में लवण और हेमन्त में मधुर रस प्रयनम् ayanam--संकलो अयन ayan--हि. संज्ञा प. ) गात बलवान हो जाते हैं । या० सू०३ श्र० । सु० चाल । (२)A path, the half year, i.e. the sun's course north or (३) मार्ग, राह । (४) ग्राम । (५) south of the equator, स्थान । (६) घर । (७) काल, समय । (८) अंश । (१) गाय या भैंस के थन के ऊपर का ___ सूर्य वा चन्द्रमा की दक्षिण से उरार वा उत्तर से दक्षिण की गति वा प्रवृत्ति वह भाग जिसमें दूध भरा रहता है। जिसको उत्तरायण और दक्षिणायन कहते हैं। अयनकाल ayana-kāla-हिं संज्ञा पं. मे० ननिक। [सं०] (१) बह काल जो एक अग्रम में नोट-बारह राशि चक्र का प्राधा । मकर से ! लगे। (२) छः महीने का काल । मिथुन तक को ६ राशियों को उमरायण कहते ' अयनी ayari-ता. अञ्जली । पतफणस-म० । हैं; क्योंकि इसमें स्थित सूर्य वा चंद्र पूर्व से! ऐनी, अन्सजेनी-मल 1 हिबलसु,हेस्वा-कना। पश्चिम को जाते हुए भी क्रम से कुछ कुछ उत्तर (Artocarpus Hirsuta, Lamk.) को मुकते जाते हैं। ऐसे ही कर्क से धन की संक्रांति तक जब सूर्य या चन्द्र की गति दक्षिण ! अयपान ayapan-हिं०.मह०, बं० ) प्रजाप-गु०॥ की ओर झुकी दिखाई देती है तब दक्षिणायन । अयपानी ayapani-ता०, ०९ विशल्य - होता है। | अयप्पनई ayappanai-ता. कर्ण-सं०। मेमो०। For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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