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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अपस्मार www.kobatirth.org ३६६ ख्याल करते हैं; किन्तु उनमें से अधिकांश प्रथम तीन को मिलाकर देते हैं । ( 8 ) जिन अपस्मार रोगियों को ब्रोमाइड्स से किञ्चिन्मात्र भी लाभ नहीं होता, उनको बरेक्स ( टंकण ) के उचित उपयोग से प्रायः लाभ हो जाता है । इसलिए इस औषध की अवश्य परीक्षा करनी चाहिए। इसके अतिरिक्त कतिपय अन्य औषध यथा श्रोमीपीन, जिंक ऑक्साइड ( यशद भस्म, यशदोमिद ), कस्तूरी, कपूर, भंग, हींग और बालछड़ प्रभृति इस रोग की चिकित्सा में बरती जाती हैं और कभी कभी इनसे लाभ होता है। ( १० ) अपस्मारी को यदि मलेरिया ज्वर ( विषम ज्वर ) हो तो स्वर को रोकने के लिए उसे कीनीन सल्फेट नहीं देना चाहिए। क्योंकि मृगी में प्रायः उससे हानि होती है । अस्तु, उसके स्थान में क्वीनोन वेलेरिएनेट या क्वीनीन श्रर्सिनेट को उचित मात्रा में देना चाहिए । कतिपय अन्य श्रोषध (१) कामवासना तथा मैथुनाधिक्य वा हस्त'मैथुन आदि कारणों से हुए अपस्मार में मीनो ब्रोमेट ऑफ़ कैम्फर ( Monobromate of Camphor ) को ५५ प्रेन की मात्रा में दिन में ३ बार देने से और क्रमशः इसके ५ प्रेन के स्थान में १०-१२ मेन तक बढ़ाकर देने से प्रायः लाभ होता है | इस दवा को २-२ ग्रेनकी पर्लाजु ( मुक्रिकावत् वटिका ) की शकल में देना उत्तम है। ( २ ) रज:रोध जन्य मृगी में यह गोलियाँ लाभदायक हैं १० ग्रेन २ डाम एक्सट्रैक्टाई न्युसिसवामिकी पिल्युली एलीज़ एट मिही दोनों को मिलाकर ३६ गोलियाँ बनाएँ । गोली दिन में दो बार प्रातः सायं भोजन के (((.) यदि अपस्मार रोगी अनीमिक ( रक्कापता का मरीज ) हो तो उसको लौह के हलके योग देने चाहिए । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अपस्मार उदाहरणतः - फेराई एट एमोनिया साइट्रास या डायर्नया स्टील वाइन प्रभुति देना लाभदायक होता है। मत्स्य तैल भी ( यदि पच जाए ) साधारण मृगी में लाभदायक है । ( ४ ) वेग के पश्चात् यदि रोगी अधिक काल तक मूच्छित पड़ा रहे तो उसके सिर पर बक्रे और गुड़ी (मन्या) पर ब्लिष्टर लगाना लाभप्रद होता है। (५) स्टेटस एपिलेप्टिक्स ( Status Epilepticus ) अर्थात् श्रविच्छिन्न अपस्मार जिसमें रोगवेग मूर्च्छा में अंत होता है तथा मूच्छा रोगवेग में । यह दशा अत्यन्त भयावह व घातक होती है। इसमें रोगी को सुरक्षित रूप से क्रोरोफॉर्म या ईथर सुधाना या मार्फीन ( अहिफेनीन ) ( ग्रेन और ऐट्रोपीन १ ४ १ १०० प्रेम वा हायोसीन हाइड्रोयोमेट १ ग्रेन का १०० स्वस्थ अन्तःक्षेप करना या कोरल हाइड्रेट ४० ग्रेन को ४ श्राउंस पानी में विलीन करके इसकी वस्ति (एनिमा ) करना लाभदायक है । अपस्मार तथा सर्प-विष अपस्मार में मम दिवस के असर से सर्पविष ( Cobra venom ) के ग्रेज़ की मात्रा का ३-१ स्वगन्तः अन्तःक्षेप करें । फिर १४ - १४ दिवस के अंतर से प्रेमकी मात्रा १. २०० ७५ १ २५० का दो अन्ताक्षेप और करें। बस यह काफी है; अन्यथा १-१ मास के अंतर से इसकी प्रेम की मात्रा का १ था अधिक अन्तःक्षेप और करें । इतने पर भी यदि लक्षण विद्यमान हों तो इसको 2 ग्रेन की मात्रा में या रोगी की अवस्था, प्रकृति २५ वा रोग के वेग के अनुसार इसकी साम कर अन्तःक्षेप द्वारा प्रयुक्त करें। For Private and Personal Use Only यह क्रोटेलस हॉरिस ( Crotalus hor• ridus या रैट्ल स्नेक ( Rattle sna ke ) जाति के साँप के किप से प्रस्तुत किया
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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