SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 436
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परमार अपस्बर: ..को मय पत्र व फल को छाया में शुरुक कर और | - यदि रोगी के वेग में कमी. प्राजाए तो औषध को बारीक पीस कर रखलें। ... मात्रा किशित कम कर दें और यदि वेग बढ़ जाए मात्रा व. सेबन-विधि-प्रावश्यकतानुसार तो औषध की मात्रा बढ़ा.दें. 1. पर यदि..३.-३० २-२ मा० साधारण जल बा अक्र गरबजुबान के ग्रेन दिन में तीन बार देने से रोग का वेगन रुके .साथ.प्रातः सायं सेवन कराएँ।. ... . . तो इस औषध से लाभ की कम आशा होती है। प्रभाव व उपयोग-शामक व निद्राजनक । उक्र औषध का लाभदायक होना अधिकतर उ. सके शुद्ध और उत्तम होनेपर निर्भर है। .. . मुगी, उन्माद और योपापस्मार में अत्यन्त लाभ -- खराब औषधसे साधारणतः लाभ नहीं होता। .. डॉक्टरी मत से--मृगी की चिकित्सा में | इसलिए इस औषध को विश्वस्त कार्यालय द्वारा अब तक जितनी औषधे ज्ञात हुई हैं, उन सब निर्मित एवं विश्वसनीय दूकान से खरीदनी में ब्रोमाइड्स (ब्रोमाइड ऑफ पोटासियम्, चाहिए। प्रोमाइड ग्रॉफ सोडियम और प्रोमाइड फ़ - यदि रोग का वेग किसी विशेष समय होता प्रमोनियम् इत्यादि) अपेक्षाकृत अधिक लाभदायक हो, उदाहरणतः दिन के दो बजे, तो ऐसी सिद्ध हुए हैं। इनके प्रयोग से कभी कभी दशा में औषध की एक बड़ी मात्रा ( दाम) तो रोगी को बिलकुल. लाभ हो जाता है | किन्तु, रोग के वेग से चार घंटे पूर्व देनी चाहिए । जेब .. प्रायः रोगियों को औषध सेवन काल में रोग का वेग रात्रि को स्वम में किसी समय होता हो तब ... वेग रुक जाता है, पर औषध का सेवन बन्द कर उक्त औषध को ५०-६० ग्रेन की मात्रा में रात देने के थोदे काल पश्चात् पुनः रोग का आक्रमण को सोते समय दें और यदि प्रातः काल निद्रा होने लगता है। भंग होने पर वेग होता हो तो ३० या ४० ग्रेन '. सामान्य प्रकार की मृमी की अपेक्षा उग्र श्रोमाड्स रात्रि को सोते समय दें और ऐसी ही प्रकार में और रात्रि की अपेक्षा दिनके वेगमें यह एक मात्रा औषध प्रातः काल रोगी को जागते औषध अधिक लाभदायक होती है। किसी पिलाएं। किसी रोगी में कुछ काल के सेवन के बाद योमा- ___ जय ब्रोमाइड्स को दो तीन बार दैनिक देना इड्स का प्रभाव अधिक काल स्थाई नहीं रहता हो तब भोजन के १ घंटा बाद देना अधिक उसम और अल्प संज्ञक रोगियों में यह कुछ लाभ हो है । आमाशय तथा प्रांत्र पर इसका क्षोभक प्रनहीं प्रदर्शित करता । तिस पर भी यह अन्य भाव न हो तथा मुख मण्डल श्रादि पर मुंहासे औषधों की अपेक्षा अवश्यमेव अधिक गुणप्रद है। न निकलें, इस हेतु इसके साथ थोड़ी मात्रा में इसकी मात्रा रोगी तथा रोगावस्था के अनुकुल संखिया मिलाकर देना चाहिए । परन्तु जब इ. होनी चाहिए। क्योंकि किसी किसी रोगी में , सका तात्कालिक एवं विश्वसनीय प्रभाव अभीष्ट इस औषध के सहन की अधिक क्षमता होती है। हो तब इसे एक ही बड़ी मात्रा में खाली पेट और किसी को अल्प । युवा की अपेक्षा बालक देना अधिक उत्सम होता है जिसमें यह तरकाल को इसकी अधिक क्षमता होती है। परन्तु पुरुष रक में अभिशोषित हो जाए। की अपेक्षा स्त्री को कम। . अपस्मारी में प्रोमाइड्सको इसके प्रयोग द्वारा पूर्ण मोमाइड को थीड़ी मात्रा में प्रारम्भ करना प्रभाव प्राप्त होने से प्रथम ही बन्द कर देना उउत्तम है । अस्तु एक युवा रोगी को १५ से | .. चित नहीं। इसके विरुन्तु इसको अधिक मात्रा ३. ग्रेन (७॥ से १५ रत्ती) की मात्रा में दिन .... में अधिक काल तक सेवन कराते जामा व्यर्थ ही ... में तीन बार देना प्रारम्भ करें। आवश्यकतानुसार नहीं, प्रत्युत हानिकारक भी है। क्योंकि शरीर इस मात्रा में म्यूनाधिकसा कर सकते हैं । अर्थात ... में जब इसका पूर्ण प्रभाव हो लेता है तब यदि For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy