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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अन्नजल अन्नप्राशन अन्नजल anmajala 1 --हिं० पु. अन्नपानी, अन्ननाड़ी ana-nati-सं स्त्री. ( (Fsoअन्नपानी amma panij खाना पीना । ( Vict- phagus ) अन्नपाक नाड़ी। यह कला एवं uals & drink.) पेशी द्वारा निर्मित और २० हाथ लम्बी होती भन्नजा annuja-सं० स्त्री० हिका का एक मंद । । है। इसका काम अन्न पचाना है. इसलिए इसको (A kind of hiccup). पाक नादी कहते हैं। इसके ऊपर के भाग का लक्षण- अत्यंत अन्न पानी के सेवन करने से नाम मुख और नीचे का नाम गुदा है। इसमें एक साथ प्राणवायु दबकर ऊध्र्वगति होकर करा से प्रामाराय तक जो भाग है उसको अन्न(हिक हिक) शब्द करती है। उसकी वैद्य नाडा कहते हैं। प्रायः। देखो-अन्न अनजा हिक्का कहते हैं । भा० म० ख०२ : प्रणाला । अन्नदोष annadosha-हिं० सज्ञा पुं० [सं०] : अननालो, डॉ annanali-सं० स्रो० (१) (१) अन्न से उत्पन्न विकार | जैसे, दूषित अन्न : (Alimentary canal wlth its खाने से रोग इत्यादि का होना । (२) निपिद्ध appandages) अन्नपणाली । (२) स्थान वा व्यक्ति का अन्न खाने से उत्पन्न दोष ( Alimentary system ) पाचक वा पाप 1 । संस्थान। अन्नद्रवशून्नः annadiavashila':सं०पु..नो०] अन्नन्नल annannasal-६० अनन्नास । अन्नद्रवरुनamadraria-shula.fहसंज्ञायु । (Ananas sativus ) । मो० श० । परिणाम मून, पैट का वर दर्द जो सदा : अन्नप्रणा (ना) लो annapranay-na, 11-सं० एना रहे, चाहे अन्न पचे या न पचे और जो पथ्य स्त्री० अन्ननाड़ी। (IEsophagus, gullet, करने पर भी शांत न हो। लगातार बनी रहने Digestive tube ) मरी-१०। बाली पेट की पीड़ा ! इसके लक्षण निम्न प्रकार अन्नपणाली uinapranali-हिं० स्त्री० (Eso. हैं, जैसे--भोजन के पचने पर या पचते समय - phagus) गला या कंसे प्रारम्भ होकर प्रामाअथवा अजीर्ण हो अर्थात् सब काल में जो शूल शय या पाकस्थली पर अंत होने वाली एक नली उत्पन्न हो उसको "अन्नद्रवशूल" कहते हैं। विशेप। इसकी लम्बाई १०६च के लग ग यह पथ्यापथ्य से भोजन करने या नहीं भोजन होती है; ग्रीवा और कक्ष में होती हुई यह उदर करने प्रति नियमों के द्वारा शांत नहीं होता। में पहुँचती है और श्रनमार्ग के तीसरे भाग से इससे तब तक चैन नहीं पड़ता जब तक वमन । जा मिलती है। श्रना प्रणाली में किसी प्रकार के द्वारा पित्त नि:सरित नहीं हो जाता | मा० . का पाचक रस नहीं बनता । इस नली का काम नि० । देवा -- पक्ति शूलः। केवल भोजन को कंट से आमाशय तक पहुंचाने अन्नद्रवशुननाशक imullainshulna. : shika-हिं० वि० पु. पंक्रिशूलबार। अन्न रणाली का अधोभाग annapranuli.ki अन्नद्रवाख्यः : matlavakhyak--सं० पु : adhobhaga-हि. पु. ( Lower अन्नद्वशूल । मा०नि० । ent of (Esophagus ) पाहार के अन्नद्वेष a.jiatives hau-हिं० संज्ञा पु० [सं०] मार्ग का मेदे के ऊपर का हिस्सा । [वि. अन्नद्वेपी ] अन्न में रुचि न होना । अन्न अन्नप्रणालोपरिखा annapranali-parikhi में अरुचि, भूख न लगना । ( Disgust) -हि० संज्ञा स्त्रोक (Groove for aasoअनधर कला annadharti kuli-हिं० स्त्री० । phagus ) वह नली जिसमें अन्नप्रणाली पड़ी (१) (Pyloric valve) श्रामाशय रहता है। दक्षिणांश कपाट । (२)(Pylorie sphi- अन्ननाशनम् annaprashanam-सं० की.1 nctor. ) अामा शय दक्षिणांश संकोचक । अन्नप्राशन annaprashana- हि० संज्ञा पु. For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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