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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मन्धुलः ग्लानिकारक और तण्डुलान्वित दुर्जर हेाता है । मद० ब० ११ । ६ । अम्लधान्य में पकाया हुया भक लघु, अग्निप्रदीपक और रुचिकारक है। वै० निव०। मथित युक्त भक्त-स्वादु शीतल, रुचिकारक, अग्निदीपक, पाचक एवं पुप्टिकर है तथा ग्रहणी, अशं और शूल नाशक है। रात्रि में खाया हुश्रा अन्न-रुचिकारक, तृप्तिजनक, दीपन और अर्श का नाश करने वाला है। मुद्यूष युक्त अन्न-कफज्वर, और शर्करा मिला हुत्रा पिचवर में हित है। लाज भक्त-लघु, शीतल, अग्निजनक, मधुर वृष्य, निद्राकारक, रुचिजनक और व्रणशो अन्धुल: andhulah-सं० १० अन्धुल dhula-हि० संज्ञा प. शिरोष वृक्ष, सिरिस का पेड़ ( ATbizzia i lebbeck.)। श० च । अन्धेरा,-" andheri,-ri-हिं० पु, स्त्रो० अंधियारा । ( Darkness). अन्नम् ॥umau-संक क्लो० ।। अन्न ama-हि. संज्ञा (1) Grain, Com शस्य, अनाज, नाज, धान्य । दाना, ग़ल्ला । (२) ( Food material) खाद्य पदार्थ, बीहि एवं यव प्रादि खाद्य द्रव्य मात्र । नयं, चोप्य, लेह्य और पेय भेद से यह चार प्रकार का होता है। किसी किसी ने निप्पेय, नि: चर्वण, अचोप्य और अखाद्य इन चार और भेदों को मिलाकर इसको ८ प्रकार का लिखा है।। राजनिघण्टुकार भी चव्यं श्रादि भेद से अन्न को ८ प्रकारका लिखते हैं। रा०नि० व०२० । (३) पकाया हुश्रा ( अन्न ।। भक्त । भात । संस्कृत पर्याय-भक, अन्धः,भिस्मा (अटी), अहूं, कसिपुः, जीवातुः (ज), कर (रा), जीवनकं (हे), कूर, श्रापूष्टि कं, जोवंति, प्रसादनं (शब्द र०)। इसका पाँच गुने जल में पकाना चाहिए। अन्न पंच गुण में सिद्ध करणीय है । च० द0 ज्वरचि.। प०प्र०२ ख । स्विस तण्डुल । पक्कचावल (Boiled rice)। सथासतुष ( भूसीयुक) अनाज को धान्य और तषरहित पक्क को अन्न कहते हैं, खेत में जो हे। उसको शस्य और तुषरहित को कच्चा कहा है। वशिष्ठ । जिस प्रकार जलदान (जल की मात्रा) के अनुसार अन्न के चार भेद होते है। उसी प्रकार भा, वि. लेपी, यवागू और पेया भेद से भक चार प्रकार का होता है। प्रयोग रत्नाकरः। अन्न के गुण - अग्निकारक, पथ्य, तर्पण, मूत्रल, और हलका | बिना धोया हुश्रा और बिना मांड निकाला हुश्रा अन्न-शीतल, भारी, वृष्य और कफजनक है। भली प्रकार धोया हुआ अन्न---उधा, विशद और गुणकारक है । भूजिया चावल का भात-रुचिकारक,सुगंधि, कफम्न और हलका है। अत्यन्त गोला ___ यवान्न (यत्र)-भारी, मधुर, वृष्य तथा स्निग्ध है और गुल्म, ज्वर, कण्ठरोग, कास और प्रमेह नाशक है। खेचरान्न (खिचड़ी)-तर्पण, भारी, वृष्य और धातुवर्धक है। यौगन्धरान (यावनालान अर्थात् ज्वार का भात )-भारी, घन तथा कास और श्वास की प्रवृत्ति करने वाला है। कोद्रवान्न (कोदों का भात )-रुचिकारक, मधुर, प्रमेहनाशक और मूत्र विकार नाशक तथा तपानाशक है और चमन, कफ, बात एव दाह नाशक है। श्यामाकान (सावाँ का भात )-रुचिकर, लघु, रून, दीपन, बल्य एवं वातकारक है और प्रमेह, गलरोग तथा मूत्रकृच्छ, नाशक है। नावारान-रुचिप्रद, लयु, दीपन, गुरु तथा बातकारक है । और यकृत, प्लीहा, श्वास एवं तणनाशक है। कुलत्थान (कुलथी)-मधुर, रुक्ष, उष्ण, लघु, पाक में कटु तथा दीपन है और कफ, वात, कृमि रोग और श्वासनाशक है। माषान (उड़द)-दुर्जर (कठिनतापूर्वक पचने वाला), भारी, मांस वद्धक और वृष्य तथा वातनाशक है। For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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