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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५६ श्रन्त्रअन्योन्यानुप्रविष्ट अन्य antya-हिं० संक्षा पु० [सं०] शेष का, | (1) छोटी और (२) बड़ी । पुनः इनमें नीच, अधम जाति, जघन्य । A shudra | से प्रत्येक के ३-३ भेद होते हैं। देखो-क्षुद्रांत्र or man of the fourth tribes व वृहदांत्र। वि० अंत का । अंतिम । प्राखिरी । सव | अनन्यान्यानुनविष्ट antra-anyonyantlसे पिछला। Fravishta-हि. संज्ञा पुं० प्रांत का एक अन्त्यकोपटकः antya-koshtakah-सं०५० भाग से दूसरे भाग में उतर जाना। इस विकार ( Terininal Ventirele) Witari में ऊपर के आँत्र का भाग, अधःस्थित यात्र कोष्ट। भाग के पोले स्थान में घुस जाता है। श्रांत्र के अन्त्यगण्डः antya.gandut--सं०५. ('Te- उस भाग को जो प्रवेश करता है प्रवेशक (In rininal Ganglion ) sifaa v3 | tussuceptim) और जिस प्रांत्र के श्रन्त्यतन्तुः antya-tantulh-सं०० पोले स्थान में यह प्रविष्ट होता है उसको ग्राहक अन्त्यपुष्पा antya-pushpi-सं० श्री. धातकी (Intussleepions) कहते हैं। श्रान्त्रावृत्त, घर का पेड़ । ( Anogaissus luti न्त्र प्रवेश । folia) चै० निघ। पाप-शाती में बल पड़ना, प्रांतों में अन्त्यफलकम् antya-phalakam-सं०क्ली० गिरह पड़ जाना। इतिवाउल्लफ़ाइफ, इलति(Motor end-plate) बाउल अमा, एलाऊस, कौलङ्ग इल्तिबाई, अन्त्याङ्गम्।ntyingam-सं०पु. अंतके यंत्र ।। मगम रब्ब इम, इनगिमादुल अम्मा , तग़(End organ). म्मदुल अम्मा-अ० 1 इन्टस् ससेप्शन ( Intiassusception , ईलियस Ileus, अन्त्यः antyah-सं०पु० मुस्ता, माथा । (Cy बालव्युलस Volvulus, इन्वैजिनेशन In. perus rotundus ), Vagination-इ० । अन्त्रम् antram-सं• क्लो० । प्राणियोंके पेट पर्याय-निर्णायक नोट--एलाऊस वस्तुतः अन्त्र antra-हिं० संज्ञा पु. के भीतर की यूनानी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ बलखाना वह लम्बी नली जो गुदा मार्ग तक रहती है । वा प्रावर्तन है । एलोपैथिक परिभाषा में इन्टस्खाया हुआ पदार्थ पेट में कुछ पच कर फिर इस ससपशन तथा वालव्युलस सामान्यतः स्थूल नली में जाता है और मल वा रद्दी पदार्थ बाहर एवं इट्ट दोनों प्रकार की श्रावों के व्यावतन के निकाला जाता है। मनुष्य की आँत उसके डील लिए प्रयोग में प्राते है। परन्तु, ईलियस से पांच व छः गुनी लम्बी होती है। मुख्यतः केवल ऊर्च बुद्रांत के श्रावर्तन के लिए पाय-पुरीतत् (रा. नि०व०१८), प्रयुक्र होता है। प्रांत्र-सं०। अंतड़ी, अंत्र, आँत, रोधा, अंत्री उत अन्त्रान्त्रप्रवेशन की क्रिया लघ्वान्य -हि. | मिझा (ए० व०), अम्मा और स्थूलान्त्र की सन्धि स्थान में हुश्रा करती (ब० व०), मसा (ए. व.), मस्सरीन हैं। लध्वान्त्र का भाग स्थूलत्र के भीतर कभी (ब० ब०)-अ० । इन्टेस्टाइन Intestine कभी इतने वेग से प्रविष्ट हो जाता है या खिंचा (ए. ५०), इन्टेस्टाइज Intestines हुआ चला जाता है कि उसके परत एकदम गुद(ब०व०); बॉवेल Bowel (ए०व०), द्वार के मुख तक पहुँच जाते हैं। कभी कभी बावेल्ज़ Bowels (ब० व०)-इं। लध्यांत्र का एक भाग उसी के अन्य भाग में नोट-पाकार तथा परिमाण के अनुसार | प्रविष्ट हो जाता है, इस प्रकार को लघ्वांत्रिक प्रांतें दो प्रकार की होती है ( Enteric ) कहते हैं। और कभी कभी For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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