SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 347
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रनार ३०५ अनार इससे कद्दाना मर कर निकल जाता है । म० अ०। डिमक। ई० मे० मे। श्रार. एन. चोपरा । पो० वी० एम०। पुरातन अतिसार एवं प्रवाहिका में अनार की छाल तथा फल त्वक के स्तम्भक गुण का उपयोग किया जा चुका है । श्रार० एम० चोपरा । aafitria( Pelletierine ). (CSH NO ) (ऑफिशल Official ) लक्षण एवं परीक्षा--यह एक सारीय सत्व है जो दादिम की जड़ की छाल द्वारा प्राप्त होता है। इसके वर्ण रहित सूचम रवे होते हैं जो खुली वायु में या ऐसी शीशी में जो पूरी भरी न हो बहुत शीघ्र वर्णयुक्त हो जाते हैं । यह जल में विलेय होते हैं। मात्रा-५-10 ग्रेन । पलोटिएरीन सल्फास Pelletierine Sulphar प्युनिसीन सल्फेट Punicine Sulphatv-. 1 अमारीन गंधेत् । लक्षण एवं परोक्षा- यह एक भूरे रंग का . शर्यती द्रव है जो जल में सरलतापूर्वक विलेय । होता है। कभी कभी इसकी रवायुक डलियों । होती हैं। इसको टेपवर्म ( कदाना) को निका- : लने के लिए ५ से ग्रेन की मात्रा में देते हैं। श्रस्तु, इसको बासी मुंह खिलाकर उसके दो : घंटा पश्चात् कम्पाउंड टिंकचर ऑफ़ जैलप की : एक पूरी मात्रा पिला देते हैं। (चकोडेक्स) मात्रा-चूर्ण वयस्क को से : प्रेन तक; मेरह वर्ष के नवयुवक को २॥ से ४ धेन तक और दो वर्ष के बच्चे के लिए ' से . श्रेन ; लक्षण एवं परीक्षा-यह एक हलका विकृताकार पीत वा धूसर वर्ण का चूर्ण है जो अनार Punica granatum (Byrtacece) की जड़ एवं कांड की छाल द्वारा प्राप्त हारीय सत्य का टैनेट मिश्रण होता है। प्रभाव-कहदाने (Tape srorm)के लिए कृमिघ्न है। मात्रा२ से - ग्रेन (१३ से ५० सेंटीग्राम)। यह अनार को जड़ एवं कांड की छाल की प्रतिनिधि स्वरूप व्यवहारमें श्राता है। यह छाल. द्वारा प्राप्त चार क्षारीय सत्वों के टनेट का मिश्रण है। यह जल में कम परन्तु ऐलकोहल (100/) के ८० भाग में भाग विलेय होता है। प्रभाव तथा उपयोग- कद्दाना ( Ta. poworm) पर इसका विशेष मारक प्रभाव होता है। पेलोटिएरीन नामक क्षारीय सत्व के विलयन (१०,००० में १ ) में थोड़ी देर तक डुबो रखने से यह मृतप्राय हो जाता है। इनमें टैनेट अधिक पसंद किया जाता है। क्योंकि पल्प विलेय होने के कारण इसका अधिकांश अपरिवर्तित दशा में ही प्रामाशय से गुजर कर तुद्रांत्र में पहुँच जाता है, जहाँ कि इसका कृमि के साथ सम्पर्क होता है । इसका शुद्ध क्षारीय सत्व अथवा विलेय सल्फेट (गंधेत्) सम्भवतः प्रामाशय द्वारा अभिशोषित होकर कतिपय प्रकृति सम्बन्धी लक्षणों को उत्पन्न करता है, यथा-सिर चकराना, दृष्टिमांद्य, मांसपेशीस्थ प्राक्षेप और कायविस्तार । परन्तु टैनेट के सेवन के बाद ये लक्षण बहुत कम दीख पड़ने है। इसको उपवास के बाद ग्रेन ( रत्ती) की मात्रा में देना चाहिए और उसके एक या दो चंदे पश्चात् मत कृमि को निकालने के लिए तीव्र रेचन जैसे जैलप (७॥ रती) अथवा एक पाउस (२॥ तो०) पुरंड तेल व्यवहार कराएँ (इससे कृमि भो निर्गत हो जाता जाता है और उदर एवम् सिर में दर्द भी नहीं होता )। थोड़ी मात्रा में रिटनस (धनुस्तम्भ) और पक्षाघात के कतिपय भेदों में पैलीटिएरीन सल्फेट का स्वगन्तःअंतःक्षेप किया जा चुका (Sir W. Whitla. ). तक। पैलीटिएरीनी नास ( Pellctieriner Tannus) पेलीटिएरीन टैनेट Pelletierine ran. nate-ई। अनारीन कपाये । ३६ For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy