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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (उ)नक प्रनम्नः मौसिम । अकाल | असमय । (२) ऋतु -विप. अाधुनिक भिश्रदेशीय चिकित्सक रकचतुरिहम य॑य | ऋतु के विरुद्ध कार्य ।। के स्थान में अपने वास्तविक अर्थों में गर्भाशय (उ)नक ३a-an-naq-२० (२०१०) अझ-। की ग्रीवा के लिए अनरिह म शब्द का प्रयोग नाक (ब०व०) प्रीवा। नेक ( Neck ), करते हैं और अनकुहिम के स्थान में मधिल सर्विक्स (Cervix )-१०। शब्द का, जो अधिक उपयुह एवं यथार्थ है। शनका aanakab-अ० मत्स्यभेद, एक प्रकार ! __ नोट-डॉक्टरी में अनरिह म या गर्भाशयको की मछली । ( A sort of fish ). नोवा के अर्थ में रकवतुरिह म को सर्विक्स युटराइ अनकर aanaqar-० मर्जनाश | See. (Corvix Uteri) पोर मविल या श्रन्दाम Marzanjosh. निहानी अर्थात् योनि के अर्थ में अनरिह म को शनकलो Jangali-यु० सलजम । वेजाइना ( Vagina) कहते हैं। देखो-योनि । शनकलीमन lmagaliimina-यु. बहार | जिसको हिन्दी में पाया कहते हैं। यह बाबू ना | अनकद ana-quda-फा०, तु. काली तुलसी । गाव का एक छटा भेद है । लु० क०। ममाम | लु० क.। अनकद aana-ludi -० गबु शो । एक पौधा अनकवानकस an-qavinlisa-यु० मरी. है। लु० क०। हहू या दोक । गाजर का बीज अथवा करप्स कोहोका बीज । लु० फ०! अनकन ana-quna-यु० सदा गुलाब । लु० अनकिजल maqilasil-यु० मसूर सहश एक क.। बूटी है जो उच्या प्रदेशों में उगती है । तु. क०। अनकूस una-qusa-यु० नाशपाती लु० ३०॥ अनकोली aana-jili-यु. सलजम | ( Pyrus communis ). अनक रिहम aanaqurrihm-१०) ( Va. अनकंप ana-kenpa-हिं० संज्ञा पु० देनामह बिल fah-bil-१० अर्कप। gina) यद्यपि [अनक-ग्रीवा+रहिम-गर्भाशय धनक कालिक anak-kalika--वृश्चिपग्री। का शाब्दिक अर्थ गर्भाशय की प्रीवा है, तो भी अनगना Hnagana-है. संज्ञा पू. गर्भ का प्राचीन तिव्बी परिभाषा में यह योनि के लिए पाठवाँ महीना। प्रयुक्त होता था। जरायु के साथ इस नाली अनग्ना amagna-२० स्त्री० ( योनि ) का सम्बन्ध वैसा ही है जैसा कि अनग्निका anāgnika सं० ओ० कपास सुराही का उसकी ग्रीवा के साथ 1 इसीलिए | -हिं०। कार्पासी-सं०। ( Gossypinm प्राचीन यूनानी चिकित्सकों ने इसको अनक रिहम | _herbace tum, Linu.) ई० मे० मे । नाम से अभिहित किया। उक्र नाली के वहिार | अनघः anaghah-सं०प० । र (छिद्र) या दरार को फर्ज और उन नाली | अनघ anaghu-हिं०संजाप सफद सरसों मनिया नामनिटानी करते है। -हिं० । गौर सर्षप-सं०। ( Brassica नक हिम और रकबतुर्रिहम का juncea ) रा. नि० व० १६ । भेद हिं० वि० पवित्र, शुद्ध । उपयुक दोनों शब्दों का अर्थ 'गर्भाशय की | अनघुल amaghula-हिं० वि० अविलेय ( Inप्रीवा' है । परन्तु, अनरिह म तो योनि के लिए ___soluble ). प्रयोग में प्राता है, पर रक्यतुर्रिहम अपने अनघ्नः anaghnah-सं० पु० श्वेतसरसों-हिं० । वास्तविक अर्थों में गर्भाशय की प्रीवा के लिए गौर सर्षप-सं०। ( Brassica juncea) प्रयुक्त होता है। | वै० निघ० । For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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