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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अतिसारकी २५.५ क्षीण हो गए हों तथा ग्राम भी जाता हो तो उसे क्रमशः स्तम्भित कर देना उचित है। जिस रोगो को थोड़ा थोड़ा धा हुआ शूल सहित दस्त प्राते हो ऐसे रोगी को हड़ और पिप्पली की चटनी द्वारा लघु विरेचन देना चाहिए। चक द० अते चि० । अतिसारको ati-sataki-० श्रि० ) - ० अतिसारी ati-sari अतिसार रोगी ( Dysenteric, afflicted with dysentery; Cathartic ) चं० श० । अतिसारकुठारः atisárakutharah-सं० पु० बड़ी इलायची, बच्छनाग, धतूर के बीज, सुहागा, इन्द्रजी, जीरा, सोंठ, ग्रहिफेन, नागभस्म, धत्रपुध, तीस, करज के बीज प्रत्येक समान भाग चूल कर धर के पत्र के रस में घोटकर सुखाकर चूर्ण कर लें। मात्रा - १-३ रती । श्रनुवान शहद | यह शिवजी का कहा योग है। बा० । श्रतिसारनः atisaraghnah सं० पुं० क्षेत्र पापड़ा, खेतपापड़ा, दन पापड़ा - हिं० क्षेत्र पर्यटक-सं० | (Oldewlandia biflora, Ror%. ) वे० श० 1 श्रतिसारो atisaraghui-io स्त्री० प्रतिसार नाशक औषध, श्रतीस ( Aconitum heterophyllum, Wall.) fa. प्रतिसार दलनोररूः atisáradalano-Tasahi--सं० पु० (1) पारा, गंधक, बच्छनाग प्रत्येक समान भाग ले चित्रक के काव्य के साथ पीलें, फिर इसे कौड़ियों के भीतर भरें। उन कौड़ियों के मुखों को पिसे हुए भिलावों की लुगड़ी से करके हाँडी में र उनका मुख बन्द कर और इस तरह जंगल कंडों में पका । इसी तरह तीन पुट देने से सिद्ध होता है। मात्रा - ३ रत्ती । गुण- अतिसार, संग्रहणी, शूल और मन्दाग्नि को नष्ट करता है। अनुपान - भाँग और जीरा | र०या० सा० 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रतिसाविदारणम् (२) तूतिया, पारा, वच्छभाग, गंधक, शंख भस्न, अकरम, अफीम और धतूरवीज प्रत्येक समान भाग लें । फिर भोंग के रस और समुद्रशोष से पृथक पृथक सात सात भावना दें। मात्रा१ रती । गुण-सम्पूर्ण श्रुतिसारों को दूर करता है । रसायन सं० प्रतिसाराधिकारे । अतिहि रः atisara-nrisinharasah--रुः० पृ० शुद्ध यहिफेन २ तां०, शुद्ध पारद १०, शुद्ध व १ लो० प्रथम पारद, गंधक की कली कर पुनः अहिफेन भित्ति कर भंग के रस से मर्दन करें। इसी तरह धत्तूर के रस से मर्दन कर १ रत्ती प्रमाण गालियाँ बनाएँ । इसे जायफल के साथ देने से घोर प्रतिसार दूर होता है । वृ० रसरा० सु० । अतिसार भेषजम् atisára-bhosha.jam - सं० को ० ( १ ) लोध - हिं० 1 लोध्र--सं० । ( Symplocos racemosa ) । (२) तोगनिवारक औषध । अतिसारघ्न, अतिसार नाशक औषध ! (Anti lysenteric ). अतिसार भैखinst atisara bhairavivati-सं० स्त्रो० जावित्री, लवंग, सोंठ, शीततीनी, चन्दन, केशर, पीपल, अकरकरा प्रत्येक समान भाग लें, फिर चूरा कर पुनः पारा भस्म, श्रहिफेन जावित्री के बराबर ७ जिला कर १ प्रहर तक खरल कर ३ रत्ती प्रमाण की गोलियाँ बनाएँ । अनुपान-चावल का पानी । गुण-यह सम्पूर्ण प्रतिसारों को नष्ट करती है । ० ८०सु० प्रतिसारे । frencacy: ati-sá ca-várana-rasah - सं० पु० तितार में प्रयुक्रहोने वाला रम । सिंगरफ, पक रत कपूर, नागरमोथा, इंद्रयव इनकी तुल्य भाग लेकर कशी अफीम के पानी की ७ भावना है। इसको यथायोग्य अनुपान और उचित मात्रानुसार सेवन करने से हर प्रकार के अतिसार नष्ट होते हैं । ० सा० सं० अति चि० । प० । अतिसार विदारणम् atisara-vidàragam - सं० पु० जायफल, धत्तूर भीज, सोंठ, अतीस, For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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