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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भण्डसत्व अण्डहानिकर. करता, यातकेन्द्रीय क्रिया शक्रि पर श्राधारीभूत पोह लस स्टेरिलाइज्ड सोलूशन का १५ मिसम्पर्ण कार्यो का विशेष रूप से सुधार करता, निम (बुद) की मात्रा में रकाल्पता, वातनवस्ति पर सुषुम्णाकाण्ड की शक्रि की विशेष | बल्य, उन्माद (पागलपन), शीघ्रपतन, यक्ष्मा, वृद्धि करता और प्रान्त पर शैथिल्यजनक प्रभाव चाल का लड़खड़ाना (Ataxy ), बिचर्चिका उत्पन्न करता है। (IPsoriasis), बहुमूत्र रोग और बहुसंख्यक, रोगों में अन्तः क्षेप करते हैं । दैनिक अन्तः क्षेप औषधीय उपयोग-अण्ड द्वारा स्रावित | के हिसाब से १२ बा १४ दिवस के चिकित्सा (secreted) शुक्र में ऐसे पदार्थ होते हैं। क्रम में प्रागुक्र सम्पूर्ण रोगों के लाभ के प्रज्वलित जो शोषण क्रिया द्वारा रत में प्रवेशित होकर वर्णन प्रकाशित हप हैं और यह हृच्छूल तथा वातसंस्थान तथा अन्य भागों को शनि प्रदान अन्य हार्दिक वात विकारी (Cardiac cilकरने में अपना सब से आवश्यक उपयोग रखते Toses) को मूल्यवान औषध कही गई है। हैं। इस पदार्थ (वा पदार्था) में महान गतिजनक इसका शरीर परिवर्तन क्रम अर्थात् अपवर्तन 'शक्रि है जिसके लिए रक मुष्क का ऋणी है । यह । (Metabolism) पर प्रगट प्रभाव होता है। बात इस घटने से प्रमाणित होती है कि साना (हिट्ला) गिक निर्वलता तथा मानसिक वा शारीरिक स्फूर्ति के अभाव ही नपुसक के स्वभाव कहलाते हैं। इन्हें कामोद्दीपक रूप से व्यवहार करते हैं और इस बात से भी कि अप्राकृतिक वा हस्त तथा वातनैवल्य, लइखड़ानी चाल और एक्समैथुन द्वारा मनुष्य के शरीर वा मन ( विशेष कर अाफथैल्मिक गाइटर में वर्तते हैं। शुम अन्धियों के अपनी पूर्ण शक्रि प्राप्ति करने श्रण्डसित inda-sitiu-हिं० वि० (Albumसे पूर्व या अधिक अवस्था के कारण जय शक्ति का ameous ) अंडश्वेतकीय, अंडलाल सम्बन्धी । हास हो रहा हो उस समय ) कितने विकृत हो । quan trei anda-sita padártha जाते हैं। इसके अतिरिक्त यह भली भाँति ज्ञात है __-हिं० संज्ञा पु० ( Albumlneous कि शुक्रक्षय चाहे वह किसी कारण उत्पन्न हुया. matter) अण्डश्वेतकीय वस्तु । हो शारीरिक वा मानसिक निर्बलता उत्पन्न क. रता है। (डॉ. बाउन सीकार्ड) अण्डस् andasu-सं० वि०, हिं० वि० (Ovi. parous ) अण्डज। अएड सत्व के उपयुक्र इन्द्रियव्यापारिक कार्य अण्ड स्कन्दः andaskandlh-सं० पु. घोड़े एवं गुण से यह सिद्ध है कि यह रोगीकी सामान्य : के अण्ड में स्कन्द सदृश एक रोग होता है । दशा को स्पष्ट रूपसे सुधारता है। इसके सिवा . जयदत्त ५० अ०। बात संस्थान पर इसका उत्तेजक श्रीर बल्य प्रभाव श्रण्डहस्ता andt-hasti-सं० पु. बँकवड़, अन्य सब प्रभावों की अपेहा अधिकतर होता है। HET ( Cassia Tora, Linn.) यह विबंध को दूर करता तथा मूत्रविरेचक है। ग. नि. च०५। इन अन्तःक्षेपों से सिबा स्थानिक किञ्चित् सूचम . अल्प समयक वेदना के कोई और अप्रिय सहा- अण्डहानिकर andahanikar हिं० वि०, यक साानिक या स्थानिक दृश्य उपस्थित नहीं मुज़िर्गात् उपायन-श्र० । अरहु को हानि होता । इनसे स्थानिक प्रदाह धा पूय उत्पन्न नहीं पहुँचाने वाले संज्ञा पुबे द्रव्य जो 'अंड को होता । पेपर फिल्टर के स्थान में पास्चर्स फिल्टर हानि पहुँचाएँ । वे निम्न हैं--- से उक तरल को छानकर व्यवहार में लाने से इकलीलुल-मलिक, शेज़ीदान, तुम खधार यह वेदानाएँ एवं अन्य कुप्रभाव भी किसी भाँति (खीरा के बीज ), अतसी, जाबशीर, हुल्बह, कम प्रतीत होते हैं। (डॉ. पाटोकी) (मेथी ) और फायून । For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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