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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भण्डम्बरबूजा १८ है) में विशेष रूप से लाभदायक होता है। "पी० पी० एम०"। २ से ३ ग्रेन की मात्रा में अजीर्ण, पुरातन प्रामायिक प्रदाह तथा प्रामाशयिक प्रण (अल्सर ) वा सान या मांसा. बुद (कैन्सर) में शुद्ध पेपीन द्वारा उत्पन्न मूल्यवान प्रभाव से लेखक को अत्यन्त सन्तुष्टि हुई। वे निम्नलिखित पेपीन मिति योग के विषय में लिखते हैं कि बहुत से भामाशयिक विकारों में इससे उत्तम प्रभावकारी कोई अन्य योग नहीं। योग-पीन ३ ग्रेन, सोडाबाईकाई ३० ग्रेन मैग कम् पॉण्ड (विचूर्णित मैग्नेशिया कार्ब) २० ग्रेन, विम्युधाई कार्य १० ग्रेन, मॉर्फीई हाइयोकोर -प्रेन, यह वटी रूप में सोया के साथ अथवा विना सोडा के और किसी शकि के ग्लीसराहनम् पेपीन रूप में दिया जा सकता है। इसके भामाशयिक प्रभाव में क्रियोजट से कोई साधा उपस्थिन नहीं होती है। "हिट. मे० मे."। (क) बालकों का पुरातन आमाशयिक प्रतिश्याय-वालकोंके उस पैसिक विकारमें जिसमें सुधा का नष्ट हो जाना, मालस्य, चेहरे के रंग का पीला हो जाना, रात्रि में निद्रा का न थाना, दिन में शीघ्र क्रोधित होना, प्रायः शिरः शूल का होना, चूना जैसा मूत्र शाना इत्यादि लक्षण होते हैं । (जब यह दशा कुछकाल लगातार रहती है तब इससे बालक दुर्बल हो जाता है एवम् विकृतरलेप्मा श्रामाशय तथा प्रांत्र की भीतरी पृष्ठ को प्रारछादित करलेसी है जिससे पाहार रस उचित मात्रा में अभिशोषित नहीं होता। ऐसी निर्बलता की दशाओं में जो । साधारणतः कॉडलिबर मोहल (कोड मत्स्य यकृतैल) तथा सिरप फोस्फॉस कम्पाउणादि औषधे म्यवहार में जाई जाती हैं, उनका अत्मीकरण नहीं होता। किसी किसी समय कास विकास पाता है जिसमें बालक को प्रारम्भिक यस्मा से ग्रस्त कहा जाता है । डा. हर्शल ( Dr. Herschell) ने उन दशाओं में निम्न योग से बहुत लाम होते हुए पाया__ योग-पीन (फिलर) प्राधा से एक प्रेन, सैकरम् लैक्टेट १ प्रेन, सोडा बाई कार्ब इनकी एक गोली बनाएँ। इसे प्रत्येक खाने के बाद सेवन करना चाहिए। थोड़े जल के साथ , या दो बुक टिनक्स वॉमिका भोजन केक पहिले देने से भी लाभ होता है । बालकों को उ.व हरे रंग के दस्त और दूध के यमन होते है जैसा कि दन्तोद काल में प्रातः होता है तब उक्र अवस्था में निम्नलिखित योग लाभदायक सिद्ध होते हैं। पेपीन ' ग्रेन, पल्ब, डोधराई (डोवर्स पाउ. डर ) ४ प्रेन, सोडा बाईकाई १० ग्रेन, इसकी १२ मात्रा बनाकर १-१ मात्रा प्रातः साये सेवन कराएँ । पपीता स्वरस के किचित् को-मृदु कर प्रभाव के कारण अतिसार की अवस्था में डॉ. हशिसन ( Dr. Hutchison) पीन को उससे उत्तम खयाल करते हैं। (ख) अम्लाजीर्ण-( Acid Dyspepsia) इस प्रकार के अजीर्ण में पेपोन अत्यन्त लाभप्रद सिद्ध होता है। कि यह क्षारकी विचमानता में भी उतना ही उसमतापूर्वक प्रभाव प्रगट करता है, आमाशयस्थ अम्माधिक्यता को न्युट्रलाइज (उदासीन )करने के लिए पर्याप्त परिमाणमें बाइकाबानेट श्रोत सोडा देना चाहिए। यह अपने ऐण्टिसेप्टिक (पचननिवारक )प्रभाव द्वारा प्राध्मानजन्य अस्वाभाविक संधान (अभिपब ) को रोकता है । उक अवस्था में निम्न योग उसम प्रमाणित होते हैं। १-पीन २ प्रेन, सैकरम् लैक्टेट (दुग्धोज) प्रेन | इसकी एक मात्रा बनाकर भेनिन के एक घंटा पश्चात् निम्न मिश्रण के साथ सेवन करें। मिश्रण-सोडाबाईकार्ब १५ ग्रेन, ग्लीसरीन, एसिड कार्बोलिक मिक्सचर ८, स्पिरिट एमोनिया ऐरोम्युटिक मिक्सचर २० जल , ग्राउंस For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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