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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अडूसा २०E अडूसा घृत, अवलेह, चूर्ण और वटिका (साधारण मात्रा ! ६ मा.)। डॉक्टर लोग शसेको द्रवसत्व, स्वरस और रिचर रूप से उपयोग में लाते हैं। प्रतिनिधि-इसके समान गुणधर्म की यूरोपीय श्रीपधि मिनीगा (Senega) है। स्वाद-फीका और कुछ मीठा । प्रसाति-- गरम और रूक्ष तथा फूल 1 कता में डा है । हानिकर्ता-मैथुन शक्ति को | दप-शहद शुद्ध और कालीमिर्च । गुणधर्म व प्रयोग श्रायुर्वेदीय मतके अनुसारवासा तिता कटुः शीता कासानी रजापित्त जित् । । कामला कफ वैकल्य ज्वर श्वास यापहा ॥ (रा०नि० २०.४) भापा---अडूसा तिक, कटु, शीतल है, तथा खाँसी, रकरित्त, क.मला, कफ, विकलता, ज्वर, । श्वास और इय रोग को नष्ट करता है। बाटरूपः शीतकीयों लघुझ्यः कटु स्मृतः । सिक्रः सवर्यः कास.हस्ता काम ला रक्रपित्त हा॥ विवर्णता-ज्वर-पवास-कफ-मेह-क्षयापहः । कुलाचि सपा कान्तिनाशकः परिकीर्तितः ॥ (वैद्यक) वासकस्य = पुष्पाणि बङ्गसेनस्य वाह ! कटपाकानि तिक्रानि कास दय हराणिच ॥ । राज० ३ चिकित्सालार संग्रहकार । वृष तु वमि कासनं कपित्त हरं परम् । (वा० सू० अ०६) वासको बात कृत्स्वर्यः क.फ पिसाननाशनः । तिक्रस्तुवरको हृयो लघुशीतस्तृ उर्तिहत् ॥ कास श्वास ज्यर छदि मेह कुष्ठ क्षयापहः ।। (वृ.नि. २०)। भाषा-अडूसा शीत वीर्य, लधु, हृदय को हितकारी, तिक, स्वर के लिए उत्तम, कासन, कामला तथा रक्रपित्तनाशक है । विवर्णता,ज्वर,श्वास, कफ, प्रमेह तथा हय, कोद, अरुचि, प्यास और वमन को नष्ट करता है। वैद्यक । असा और अगस्तिया के फूल तिक, पाक में कटु एवं खाँसी और क्ष्य को हरण करने वाले हैं। राज० ३२० । अङ्कमा बमन, खाँसी और रवित्त को दूर करता है। वा० स० अ० ६ । असा वातकारक स्वर के लिए उत्तम, तिक, कला, हृदय को हितकारी, लबु, शीतल, कफपित्त, रवि कार तृपा की पीड़ा का हरण करने वाला तथा श्वास कास, ज्वर, वनन, प्रमेह और सय को नाश करता है। वृ०नि० र०। युनानी मत के अनुसार अडूसे के गुणधर्म व प्रयोग भारतीय द्रव्यगुणशास्त्र के नरसी लेखक हिन्दुस्तानी नाम असा के नाम से उक्र श्रोषधि का वर्णन करते हैं। अतः जीरमुहम्मदहुसेम महोदय ने स्वरचित "मजनुल अवियह" नामक वृहद् ग्रंथम इस पौधेका वर्णन किया है। उनके कथनानुसार अडसे का फूल यक्मा, रक्रपित्त श्रर्थात् रक्रोमा और प्रमेह में लाभदायी और पित्तनाशक है। अडसे की जद खाँसी, श्वास, ज्यर और प्रमेह, बलग़मी और सफ्रान्ती ( पित्त को )मतली, यमन, पाण्डु, मूत्रदाह, सूजाक और राजयरमा को नाश करती है। बच्चों को शीत लगने या खाँसी से पचाने के लिए कभी कभी अड़से के बीज को उनके गले में लटकाते हैं। अडहरे के विभिन्न अवयवों के परीक्षित प्रयोग मूल---अडसा पत्र और मूल दोनों साज्य श्लेष्मानिस्सारक ( Stinalaint expecrant) और आक्षेप शामक (antispas. modic )हैं। इसीलिए अधिकतर इसकी जड़का सीनीगा (Senega) के स्थान में पुरातन कास, श्वास में उपयोग करते हैं। अडुमा की जड़ का काथ बच्चोंकी कुकर खोसी तथा साधारण ज्वर में लाभ करता है। __ अडूसा की जड़ पुरातन खाँसी, सफेद क्षग, कोढ़ और सूजाक के लिए लाभदायी है। यदि असा मूल स्वचा को चोचीनी के क्वाथ में एक सप्ताह तक भिगो रक्खें । पुनः निकाल शुष्क कर चूर्ण करलें । इसमें से १ माशा प्रति दिवस खाएँ तो पुरातन उपदंश से मुक्ति प्राप्त हो। For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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