SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 221
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भानम् अञ्जनम् सुरमा को इससे खरल कर के चने बराबर गोली बनाएँ। गुण-अर्श तथा असाध्य नासूर के लिए रामबाण है। १ गोली से ४ गोली तक१० दिन मक्खन में खाते रहें। और उन प्रोधियों को जो रस निकालने के पश्चात् बच रहें, बारीक करके जंगली बेर के बराबर वटिका बनाएँ और सुबह शाम १-२ गोलियाँ खाते रहें। ३ सप्ताह में ही रोग को जब-मूल से नष्ट कर देगा ! (मनह.) (३) काला सुरमा, जलाए हुए नील के बीज, प्रत्येक १ तो०, फिटकरी ( भुनी हुई) अनविध मोती प्रत्येक १ मा०, यशद भस्म २ मा०, चाँदीके वर्क ५ इनको ५ दिन मेंहदी और गुलाब के रस में खरल करके रख दें। गुण-उक औषध अम्जन रूप से नेत्र रोगों विशेषकर मोतियाबिन्द की प्रारम्भिक अवस्था, जाला और रक्रबिन्दु के लिए परीक्षित है। (मनह) (४) सुहागा शुद्ध, नौसादर, समुद्र झाग, कलमी शोरा, संगमसरी, फिटकरी का लावा, । पलाश की जड़ की गुद्दी, राई की गिरी, प्रत्येक | अर्ध तोला और काला सुरमा १० तोला को | खरल में नीबू का रस डालकर ३ घंटे तक भली भाँति घोटकर मिलाएँ । शीशी में रखने से पूर्व | इसे साया में मुखा कर खूब बारीक कर लें। · गुण इसको अञ्जन रूप से उपयोग में लाने | से यह गत दृष्टिशकि, अाँख पाने, नेग्रकण्डु, । नेत्ररक्रता, खराश और नेत्र द्वारा जलस्राव प्रभृति | के लिए अत्यन्त लाभप्रद है। संक्षेप में यह अनेक नेत्र रोगों की अचूक औषध है। __ (पं० जे० एल० दुबे जो) (५) सुरमा श्वेत को ताजी इन्द्रायन में अष्ठ प्रहर डालकर रख दें। पुनः उक्र शुद्ध सुरमा को कुक्टारडत्वक भस्म तथा मोती की सीपी की भस्म प्रत्येक १-१ तो. के साथ मिलाकर एक दो दिन खरल करके रख दे।। ''गुण-यह सुरमा पढ़वाल के लिए एजाज़ मसीही के समान और सदैव का परीक्षित है। (मनह ) (६) सुरमहे असाहानी २ तो०, मोती ६ मा०, प्रवाल ॥ मा०, शादनह, अदसी मरसूल (धोया हुआ) ४ मा० पृथक पृथक बारीक करके मिला लें और गुलाब में हल करके संगबसरी ६ मा० बढ़ाएँ तथा बारीक करके रख लें। गुण-यह सुरमा दृष्टि को निर्बलता तथा जाले का लाभदायक और आँख पाने में जो जलस्राव होता है उसका शोषणकर्ता है। (शरीफ) (७)काला सुरमा, यशद भस्म प्रत्यक २०मा०,समुद्र झाग,ज़गार,केशर, प्रत्येक १ तो०, सफेदा और अफीम प्रत्येक ३ मा० बारीक कर लें। गुण-दृष्टि को निर्थलता अर्थात् दृष्टिमाय के लिए सर्वोत्तम औषध है। इसे चतुओं में लगाया करें। (इ० सद०) (८ , सफेद सुरमे को अग्निमें तपा तपा कर सातबार हरड़, बहेडे तथा प्रामले अर्थात् त्रिफला के रसमें ढाल कर बुझाएँ, फिर तपा तपा कर सात बार स्त्रीके दूधमै बुझाएँ । पुनः उक्र सुरमे का चूर्ण करके नित्य नेत्रों में आँजें तो नेत्रों को हितकारी होता है और नेत्र सम्बन्धी सम्पूर्ण विकारों का निःसन्देह नाश होता है। मा० । सुरमे की भस्म. (३) तबकदार श्वेत सुरमे को १० दिवस पेठा के रस में खरल करके टिकिया बना लें और एक पेश में डालकर भली भाँति कपरौटी करें। गण-ज्वर की उन्मत्तावस्था में इसे १ रसी की मात्रा में श्रर्क सौंफ तथा श्रर्क केवड़ा के साथ तीन बार खिलाने से लाभ होता है। नपेमुह रिकासफरावो (अांत्रिक ज्वर)मूत्रदाह, यकृ दोमा, नवीन सूजाक के लिए उपयुक शर्बतों के साथ व्यवहार में लानेसे लाभ होता हैं। चक्षुत्रों में लगाने से दृष्टिवक और नेत्र स्वक्षकारक है। (कु० रही०) (२) श्वेत सुर्मा को हरे लम्बे कद्दू की गर्दन में रखकर कपरीटी करें और बहुत सी अग्नि दें, भस्म होगी। इसमें सम भाग नीले बंशलोचन मिलाकर अर्क बेदमुश्क व केवड़ा में १ सप्ताह खरल करके रख दें। For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy