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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अजवाइ (य) न स्वगरानी अजवाइ (य)न खुपसानी कि धस्तूरीन ( Atropine) द्वारा विषाक्रम निद्रा में व्यतीत हो जाता है। शिशुजनन काल रोगी में देखा जाता है, बिरला ही उत्पन्न होता में इससे “गोधूली निद्रा" उत्पा होगी। (५० है। ऐट्रोपीन के समान यह तरकाल व बलपूर्वक मे० मे०) नेत्र-कनी नका को प्रसरित कर देता है और इसका ! निद्वाजनक रूप से ज्वर सहित तीवोन्माद यह प्रभाव एट्रोपीन से ४-५ गुणा अधिक होता। समन्धी रोगियों में यह गुणदायक पाया गया है। इससे इस्ट्राआक्युलर टेन्शन ( नेत्र पिण्ड है। इससे किसी प्रकार की हामि की सम्भावना का तनाव) स्पष्ट रूप से नहीं बढ़ता। नहीं । वृधिकार में जहाँ अफीमसत्व (मार्फिया) डॉक्टर क्रॉस (Crauss) के वर्णना सर्वधा वर्जनीय है और जब सम्पूर्ण अवसादक मुसार इसके उपयोग करने के पश्चात् उन्मत्तता घोषधियाँ निष्फल सिद्ध होती हैं, उस समय विद्युताघात के समान तत्क्षण स्थिरता को प्राप्त . इसका उपयोग निर्भयतापूर्वक किया जाता है। होती है और रोगी की प्यग्रता शीघ्र शान्तिमय ।। हायोसीन के हाइड्रोनोमेट, हाइड्रोक्रोरेट तथा निद्रा में परिवर्तित हो जाती है। परन्तु यह म्या-: हाइदियोडेट शुक्रमेह में लाभदायक पाए गए। पक वातग्रस्तता रूपी स्थिरता धीरे धीरे होती है। (40 वो० एम०). मघोन्माद ( डेलीरियम ट्रीमन्स ), प्रसूतिको- हायोसाइमीन ( Hyoseyamine). न्माद (प्योरल मेनिया) एव विविध भाँति के यह रचनामें धत्तरीन (ऐट्रोपीन ) के समान अनिद्रा विकारों में यह गुणदायक सिद्ध हुआ है। होता है तथा हायोसीन व हायोसिनिक एसिड उस अनिद्रा रोग में जिसमें पागलपन का छिपा में विश्लेषित किया जा सकता है। यह स्फटिकवत् हुमा माद्दा हो, यह सर्वोत्कृष्ट निद्राजनक औषध एवं विकृताकार दोनों रूपों में पाया जाता है। प्रमाणित हुश्रा है । डाक्टर ब्रस (Bruce ) के इसके सूक्ष्म श्वेत रके होते है या यह श्यामधूसर अनुभव के अनुसार यह वृक्ष रोगों में अच्छा। वर्ण का सत्व सदृश पदार्थ होता है। प्रभाव करता है। इच्छुल (प्राइना पेक्टोरिस)। ___हायोसायमीनी सरफ़ास में इसका उपयोग कर सकते हैं। Hyoscyawina sulphas. दमा, वीर्यस्त्राव तथा राजयरमा रोगी में स्वेद पर्याय-हायोसायमीन सल्फेट (Hyo. स्राव को रोकने के लिए और अफीम सव seyamine sulphate )-501 (Morphia) तथा कोकोन के अभ्यासियों रासायनिक संकेत (C17 H.23 NO3)2, की चिकित्सा में यह उपयोगी सिद्ध हुआ है। । H2 504 2H2 0. जर्मनी के प्रसिद्ध डॉक्टर शनोडरलोन! (Schneiderlein) जेनरल अनस्थेसिया ऑफशल ( Official ). (ज्यापकायसन्नता) उत्पन्न करने के लिए स्की ___ यह पारसीकयमानी पत्र तथा अन्य सोलेपंलेमीन तथा मीन को मिलाकर प्रयोग करना नेसोई पौधों में पाए जाने वाले एक ऐलकलाहर लाभदायक ख़्याल करते हैं। अस्तु, वे भऑपरेशन (चारीय सत्व) का गन्धेत ( सस्फेट) है। की पूर्व संध्या को लगभग १ से १. ग्रेन लक्षण- यह एक पीत या पीत श्वेतवर्ण का स्फटिकवत् व गन्धरहित चूर्ण है जो वायु में से स्कोपोलेमीन तथा चौथाई ग्रेन मॉर्फीनको परस्पर नमी को अभिशोषित करता है। संयुक्त कर इसका स्वचा के भीतर अन्तः क्षेप स्वाद-तिक एवं चरपरा । करते हैं । आवश्यकतानुसार प्रापरेशन की सुबह नोट-इसको वायु विशेषकर तर वायु से को इसे अधिक मात्रा में दोहराया जाता है। सुरक्षित गहरे अम्बरी रग के मज़बून डाट वाले इससे रोगी को गम्भीर निद्रा प्राजाती है और बोतलों में रखना चाहिए। वह ग्रॉपरेशन के पश्चात् कई धरटों तक सोता लयशीलता--यह २ भाग, एक भाग जन में रहता है। इस प्रकार वह दुःख व वेदना काल | और : भाग ४॥ भाग हली (१० प्रतिशत) १०० २० For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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