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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अजवाइन प्रधाइन रोग, लोहा, गुल्म, इन्ज रोग और आमवात को नाश करती है। (रा०नि० . अर्क अजवान-अजवायन का अर्क-ह. द.। . अजोबान Ajowan, एका राइकोटिस Agua Ptychotis-ले०। प्रोमम् वाटर Onum watar-इं०। श्रीमत्ति-नीर-ता०। श्रीमद्राव. कम् ते०। अजवायन के अर्क के गुण-अजवायन का अर्क पाचक, रुचिकारक, दीपन तथा शुक्रनाशक एवं शूल नाराक है। यूनानो मतानुसार अजवायनके गुण धर्म | व प्रयाग-स्वरूप-अनीV के समान कालापन लिए भूरी । स्वाद-कडुवास लिए तीखी ! और तीचया गंधयुक्र है। प्रकृति--३ कक्षा में गरम और रूद है। हानिकर्ता-उष्ण प्रकृति को, शिरः पीडाप्रद और स्तनों के दुग्ध की ! हासकर्ता । दर्पनाशक-उमार, धनियों, खाँड । तथा स्निग्ध व शीतल द्रव्य । प्रतिनिधिकलौंजी और काला जीरा । मात्रा-६ मा० से १ तोला तक। गुण, कर्म, प्रयोग-अजवायन विशेष कर समस्त अवयवों की वेदना को शमन करने वाली शोथों के लय करने वाली तथा कामोद्दीपक है। यह पाता शोषक, कोष्ट मृदुकारी, वायु : लय कर्ता तथा अगद शनि से संयुक्र होती है, अजवायन को शर्बत लकवा, कम्पनवायु तथा : शैथिल्य को लाभदायक है। इसके क्वाथ द्वारा प्रॉम्ख धोने से नेत्र स्वच्छ होते हैं। इसे कान में : डालने से वधिरता को लाभ होता है, यह वक्षःस्थवेदना तथा रतूबतों को नष्ट करने के लिए उसम है और रोधउद्धाटक, कोष्ट मृद्धकारक, यकृत एवं नीहा की करता को लयकर्ता, हिचकी, वमन, मतली, दुर्गन्धियुक्त डकार, बदहज़मी, उदर में शब्द होना, मूत्रावरोध तथा प्रश्मरी प्रभृति के लिए गुणादायक है। कामोही : पक है तथा यकृत, श्रामाशय, वृक तथा वस्ति । को उष्णता प्रदान करती एवं शक्ति देती है । यह । सूत्र, प्रातव, दुग्ध तथा स्वेद की प्रवर्तक है।। जलोदर के लिए गुणदायक है और हर प्रकार के केचुत्रों को निकालती है। लेमू (नीबू) के रसमें यदि इसे सातबार डुधोकर शुष्क कर लें तो यह नपुसकता के लिए अत्यस्त गुण दायक हो। इसका शर्बत श्लैष्मिक ज्वरों में विशेषकर चातुर्थिक बर के लिए अत्यन्त लाभदायक है तथा ज़हरों को नष्ट करने में अगद है। अण्डशोथ के लिये इसका लेप उत्तम है। शाहद के साथ मिलाकर उपयोग में लाने से यह सम्पूर्ण श्रावयविक वेदना तथा शोथ के लिए लाभदायक है । म. प्र.। (निर्विषैल, परन्तु अधिक मात्रा में विषैल है।) एलोपैथिक मेटोरिया मेडिका तथा अजवाइन । यमानो तेल-अजोवान प्रालियम् (Ajo. wan Oleum)-ले. ! अजोवान श्राइल ( A.jowan oil ), टिकोटिस प्राइल (Ptychotis oil )-10 रोगने नाम्खाह -फा० । अजवाय (इ) न का तैल-हिं०, उ० । यवानीर तैल-बं०। ऑफिशल (Official.) लक्षण-यह एक वर्णरहित तथा उदनशील तैल है जो अजवायन के फल द्वारा परिश्रुत करके प्रस्तुत किया जाता है। इसका स्वाद तथा गंध अजवायन के समान होती है। इसका प्रापेक्षिक गुरुत्व ११७ से १३. तक होती है। ३२० फारनहाइट पर इसे शीतल करने से इसमें से ४० प्रतिशत थाइमोल पाया जाता है। नोट - थाइमोल को भारतवर्ष में अजवायन का फूल और पञ्जाब में अजवायन का सत कहते हैं और मध्य भारत के किसी किसी स्थान में इसको बनाते हैं। पहाड़ी पुदीना जिसे अरबी में हाशा और सातर तथा यूनानी में थाइमस (Thymus) कहते हैं और प्राचीन अरबों ने जिसका उच्चारण सोमस किया है। वस्तुतः उसके जौहर या सत को अंगरेजी में थाइमोल ( Thymol ) कहते हैं । परन्तु उपरोक वर्णनानुसार ग्रह जौहर For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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