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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अगरी शराब प्रति विकारों में व्यवहत होती है, सात्तम एवं ! किशमिश - विविध ग्वं इमोदकादि में व्यव. अतिग्राम अनुपान है। हत होता है। शवंत निर्माण-विधि--पक द्वाजा स्वरस (मे० मे० ई०२ य शा० १३७ पृ.) १ सेर, जल १॥ सेर, शुद्ध स्वच्छ शकरा २ सेर । । मुकर्जी-किशमिश शीतल तथा मृटुभेदक सर्व प्रथम शर्करा को जल में डाल कर अग्नि पर स्याल किया जाता है और खाँसी, प्रतिध्याय रखकर धोलें, पुनः अंगुर स्वरस मिलाएँ ।। तथा पांडुरोग में व्यवहृत होता है। तत्पश्चात् सम्पूर्ण द्रव को मधुर अग्नि द्वारा यहाँ हि. संज्ञा पुं० [सं० अंकुर ] (२) मांस तक पकाएं कि वह रह जाए । मात्रा-प्राधा से । के छोटे छोटे लाल दाने जो घाव भरते समय १ फ्लुइड श्राउंस ( २४ घंटे में ५-६ बार )। दिवाई पड़ने हैं । (३) अंकुर, अंग्वुअा। डाइमक-प्रया अगर स्वरस को अरबी में श्रपरका मड़वा anguri-ka-mastvā-हिं० हम रम, फ़ारसी में ग़रह, अंग्रेज़ा में वरजूस . संज्ञा पु. अंगूर की बेल को चढ़ने और फैलने (Varjiivs) तथा रूमी में अग्रेस्टो के लिए बॉस की धज्जियों का बना हुआ मण्डप । (Angr'sto) कहते हैं। वह इटली में श्रय : श्रङ्गर की टट्टी tiguru-ki-tatti-हिं० तक कंठरोगों में व्यवहृत होता है । वसंत ऋतु में संज्ञा स्त्रा० अंगूर का मड़वा। अंगूर की शाखाओं को काटने से उनमें से अधि- अगर को शकरा amgirit-ki-shutkula कता के साथ रस निकलना है। यह त्वचा रोगों हि संज्ञा स्त्री० दादीज, द्राक्षा खंड, दाख में व्यवहृत होता है । अब भी यूठा में चतु प्र... की शर्करा | (iyap; Sigity' (Dextrose, दाह के लिए यह एक प्रसिद्ध श्रीपथ है। glucost.) इसका पत्ता संकोचक है, तथा अतिसार में श्रार शेका ligurashifa-हिं० संज्ञा प. उपयोग किया जाता है । [फा०] (Dulcaman) एक जड़ी जो भार० एन० खंरो-औषधार्थ प्रयाग करने । हिमालय पर शिमले से लेकर काश्मीर तक होती से पूर्व अंगूर के बीज एवं छिलका नर कर देने है । इस स'ग अंगूर, सूची, जवराज तथा गिर बूटी भी कहते हैं। इसकी जड़ और पत्तियां दमे चाहिए। मुनका महर, स्निग्ध, शीन तथा : मृदुरेचक है। इसको प्रायः ग्रीषध को मधुर और वायु के दर्द को दूर करती हैं। देखाकरने के लिए प्रयोग में लाते हैं। यह ज्वर की अंगरे शिफ़ा। पिपासा, प्रदाहमुलक पीड़ा एवं कोयन्द्र रोग में अङ्ग Tanguri--हिं० वि० [फा० अंगूर+ई] सेवनीय है। पत्र-कपेल्ला है और अतिसार रोग (1) अंगूर से बना दुा । (२) अंगूरी रंग में व्यवहृत होता हैं। का । काठ की भस्म-अश्मरी रोग के पूर्वरूप में संज्ञा पुं० कपड़ा रंगने का हलका हरा रंग एवं भावीरोगोत्पादनानुकल अवस्था में शरीर में जो नील और टेसू के फूल को मिलाकर बनाया युरिक एसिड सञ्चय हेतु अनागनव्याधि प्रतिषेधक : जाता है। रूप से अर्थात् भावी व्याधि उत्पन्न न हो; इस अङ्गरी शकर anguri-sha kart-फा--हिं लिए इसका उपयोग करते हैं। एतद्देशीय लोग संज्ञा प. द्राक्षीज, द्राक्षखंड, अंगूर की शर्करा कोष्ठ वृद्धि रोग एवं अर्श में इसका प्रलेप (Dextroso) करते हैं। अङ्गग शराब anguri-shariba-हिं०, द० कपिलद्राक्षा ( भूरीदाख ) साधारणतः । द्राक्षासव, मथ । खम्र, शराष-अ० । मै, बादह, रेचक मिश्रणों में उपादान रूप से व्यवहृत होती मुल-फा | शाइयाम-ता० । द्राक्षसारायि, । द्राक्ष रसम्-ते० । मुन्तिरिट ङप पज़म-चारायम For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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