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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्रङ्गर १६७ करमकि ( करौदे के सह ) दाख में भी पर्वतोत्पन्न दाख के सदा गुण हैं । भा० द्राक्षा २० । दाख मधुर, खट्टी, करौली है और किसी चार के साथ पित्त, बात और कफ का नाश करती है, उत्तम है तथा रुधिर रोग, दाह, शोष, मूर्च्छा, ज्वर, श्वास (श्वसन ) और खाँसी को दूर करती है। जो दाख विपाक में कषैली व म्ल ( कपायाल ) होती है वह कफ में दिन है श्रत्रि० १७ श्र० । 1 शीतल, नक्षीण, दाख मधुर, स्निग्ध, वीर्यवद्ध के, मतभेदक, बलकारक एवं वृष्य हैं तथा बाव और पित्त का नाश करती है । रा० नि० । दा मधुर, खट्टी, शीतल, पित्तनिवारक, दाहनाशक, सूत्रदोषहारक रुचिकारक, वृष्य और तृप्तिकारक है । रा० नि० । कच्ची दाख कटु, उष्ण, विशद, रकपित्तकारक है । मध्यम अवस्था की दाख खट्टी, रुचिकारक और अग्नि है । पक्की दाख, मधुर, खट्टी, नृनाशक और रकपितनाशक है । पक कर सूख गई हुई दाख श्रमनाशक तृप्तिकारक और पुष्टिजनक है। धातु के शोषनाशक, प्यास को हरनेबाली, धान को दूर करने वाली, वगन रोग : नाशक, पचने में अम्ल, सुरस, मधुर, शीतवीर्य, ज्वर और कफ को हरने वाली, सूत्र और मल को शोधने वाली । गोस्तनी दाख शीतल, हृदय को हितकारी, कानुलोमक, स्निग्ध, और हर्षजनक है तथा श्रम, दाह, मुर्च्छा, श्वास, खाँसी, कफ, पित, ज्वर, रुचिरविकार, तृषा, वार और हृदय की व्यथा को हरने वाली है । किशमिश मधुर, शीतल, वीर्यवर्धक, रुचिप्रद, हा रसाल है तथा श्वास, खाँसी, ज्वर, हृदय की पीड़ा, पित्त, सतवयं, स्वरभेद, कृपा वात, पित्त और मुख के कड़वेपन को दूर करता है | द्राक्षा रस में मधुर, स्निग्ध, शीतल, हृद्य ! Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रङ्गर और स्वयं है तथा रकपित, ज्वर, श्वास, तृष्णा और दाह का नाश करने वाली है 1 मृद्रका मधुर, स्निग्ध, शीतल, वृष्य और अनुलोमक हैं तथा रक, पत, श्वास, कास, श्रम, कृष्णा और ज्वर का नाश करने वाली है । धन्वन्तरीय निघण्टु | गोस्तनी - मधुर, शीतल, हृद्य और मदहर्षिणी है तथा दाह, मूच्छां, ज्वर, श्वास, तृषा और हल्लास को नाश करने वाली तथा शीतल और मनुष्यों को प्रिय है । द्राक्षा के विशेष गुणदावा 'वालफल' कटु, उष्ण, विषदोष जनक और rafter को करने वाली है। 'मध्य' और रसान्तर को प्राप्त अम्लरस युक्र रुचिकारक और अग्निजनक है । 'प' और मधुर तथा अम्लरम सहित तृष्णा और पित्त को दूर करने वाली है। "क" अत्यन्त सुखी हुई श्रमजनित पीड़ा को शमन करने वाली, संतर्पण और पुष्टिदायक शीतल तथा पित्त और रक के दोषों को शमन करती है । एवं मधुर, स्निग्धपाकी शोर श्रत्यन्त रुचिकारक है । चतुष्य, श्वाल, कास, श्रम तथा वमन को शमन करने वाली, सूजन, तृष्णा और उवर का नाश करने वाली है एवं श्राध्मान, दाह तथा श्रम आदि को हरण करनी और परम तर्पण है। द्वाता जीस श्रीर्थ वाले को भी मदनकला केलि में दक्ष बनाती है । रा० नि० । तृष्णा, दाह, अब, श्वास, रकपित्त, न वा क्षय, वात, पित्त, उदावर्त, स्वरभेद, मदात्यय, मुँह का कड़वापन, मुखशोप और काम को दूर करती है | मुद्रीका बृंहण, वृष्य, मधुर, स्निग्ध, और शीतल है । चरक फ० ० । द्वाचा दस्तावर, स्वर्य, मधुर, स्निग्ध और शीतल तथा रकपित्त, उजर, श्वास, तृष्णा, दाह श्रौर क्षय का नाश करने वाली है । सुश्रुत | द्राक्षा के वैद्यकीय व्यवहार सुश्रुत-मूत्रावरोधज उदावतं अर्थात् मूत्रवेग के धारण से उदावर्त रोग होनेपर द्राक्षा का का प्रस्तुत कर पिलाना चाहिये । ( उ० ५५ ० ) For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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