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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अडोला ६४ अकोल प्रथम दस्त होकर कोप्ट शुद्धि होती है फिर दे एकदम बन्द हो जाते हैं। अंकोल के पत्ते पीस कर पुल्टिस बांधने मे गाया का दईदर हो जाता है पत्तों को पीस कर टिकिया बना लें और । . सरसों के तेल के साथ कड़ाही में डालकर भाग । पर रख जला लें । जब जज जाग तो थोड़ी स्थाह मिर्च का चूर्ण डाल कर मरहम तयार करें। इसको उपयोग में लाने से प्रत्येक भांति के व्रण, खुजली सरवा प्रभति अच्छे हो जाते हैं ।।। । पत्नी को जलाकर उसकी राख १ तो. ले।। फिर इसमें काली मिर्च २५ नग, सूतिया भुनी ३ मा०, हरताल । ना० मिलाकर खूब स्वरल करें । पाद को तिल का तेल जिसमें मोन मिलाया गया हो इसमें खरल करके मरहम तैयार कर लें। इसके लगाने से बवासीर के मस्से सूख कर निकल जाते हैं। श्रराजवृद्धि-ग्रंकोल पत्र उबालकर बांधने | से जल निकलता है। अंकोलकी लकड़ी-नासूरमै इसकी लकड़ी | की राख भरनी चाहिए। इससे नासूर परछा हो। जाता है। ___ इसकी लकड़ी का चूर्ण बनाकर इसे पियारॉगा, काराजी नीबू के बीज तथा दरियाई मारि. यल प्रानि उपयुक औषधियों के साथ मिलाकर निशूचिका रोगी को खिलाने से लाभ होता है। अंकोल की लकड़ी का फर्श बनाकर यदि इस पर सोया जाए तो कोई कीड़ा मकोड़ा पास न ग्राएगा। अंफाल पुष्प-इसके पुष्प मधुर, शीतल, कफ नाक, वीर्यवर्धक, वलकारक, दस्ताघर एवं वात, पित्त, दाह संधिर विकारों को दूर करते हैं। अंकालके फल-इसका फल शारीरिक दाह, राजयस्मा और रपित को लाभ पहुचाता है। शारीरिक दाह में फलों को पीस कर लेप करने से लाभ होता है। रक्रपिस में फल को मिकी के साथ पीस कर पीने से मुंह प्रादि द्वारा रखाव बन्द होजाता है। अतिसार में इसके फल के गूदे को शहद में | मिलाकर चावल के धोवन के साथ उपयोग में लाने से लाभ होता है। ___ फलों के गूदे और तिलों के द्वार को शहद में मिलाकर देने से सूजाक दूर होता है। वर्षा ऋतु में जो फुड़ियां बगल के नीचे तथा गले में प्रायः हो जाया करती हैं, जिनसे अक्सर रोगी मर जाते हैं, प्रारम्भ ही में सबेरे के समय यदि इसका एक फल खिलाया जाए और एक फल का पानी निकाल कर गिल्टियों पर मल दिया जाए तो दर्द को तुरन्त लाभ होगा और रोगी बच जाएगा। अंकोल-तैल निकालने की विधि-एक प्याले के मुहको कासे बांध दें और अंकोल के बीज की गिरी को कूट कर इस पर बिछा दें और एक टुकड़ा अभ्रक का इस पर रखकर कोयलो की भाग करें, इसकी गरमी से तैल टपककर प्याले में पाएगा इसी को व्यवहार में लें। यदि किसी धारदार शस्त्र से क्षत हो जाय तो अंकोल तैल में रुई भिगोकर पट्टी बांध दें तो अहता हुअा रक भी रुक जाता है और घाव भी शीघ्र सूख जाता है। __ अंकोल तेल १ पाव, मोन १ छटांक अग्नि पर जलाकर रख दो, २ मा० भुनी तूतिया मिला को, श्रीरांडा होने पर भली प्रकार मिलाकर किसी बर्तन में रख दो। यह मलहम दाह, खुजली, भगन्दर, नासूर, सत, फोड़ा, फुन्सी प्रभृति समस्त स्वचा सम्बन्धी रोगों को नष्ट करता है। ५ वूद तैल मिश्री में मिलाकर विशूचिका रोगी का उपयोग कराने से उसे लाभ होता है। ५ से १५ द तक तैल उण दुग्ध में मिला कर भिश्री अलका प्रति दिन पीना शरीर को बलवान बनाता है। और प्रमेह, निर्बलता, शरीर में चकर पाना तथा आंखों में अंधेरा पाना शादि को दूर करता है। ३॥ मा० तेल उष्ण जन्ल से पीना खूब दस्त लाता है और पेट के दर्द व बदहज़मी को दूर करता है। For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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