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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ उत्तरार्धम् ] होतो है ? (गोयमा ! जहएणेण अंतोमुहुरा उनोसेण तिरिण वासहस्साई,) हे गौतम ! जघन्य स्थिति अन्तमुहूर्त की और उत्कृष्ट तीन हजार वर्ष की होती है, (इ.पजत्तगवादरवाउकाइयाण पुच्छा, ) हे भगवन् ! अपर्याप्त बादर वायुकाय के जीवों की स्थिति कितने काल की प्रतिपादन की गई है ? (गीयमा ! जहणणेणवि अंतोमुहुरा उक्कोसंरणवि अंतीमुहु तं,) हे गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट कंवल चन्तर्मुहूर्त की ही स्थिति होती है, (पजत्तगबादरवाउकाइयाणं पुच्छा,) हे भगवन् ! पर्याप्त बादरवायु काय के जीवों की स्थिति कितने काल की होती है ? (गायना! जहएणण अंतोमुहुरा उकासे तिरिण वाससहस्साई अंतोमु त णाई,) भो गौतम ! जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूत्त की और उत्कृष्ट अन्तमुहूर्त न्यून तोन हजार वष की होती है, (वणसइकाइयाणं पुच्छा,) हे भगवन् ! वनस्पतिकाय के जीवों की स्थिति कितनं काल को होता है? (गोयमा ! जहएणणं अंगोमुहुरा उछोरंगणं दस वाससहस्साई) हे गौतम ! जघन्य स्थिति अन्त मुंहूत की और उत्कृष्ट दस हजार वष का होती है, अोर ( सुहुनब : सइकाइया । आहियाणं अपज्जतगाणं पाण्य तिए,वि जहरणे अन्तोनुहुक्तं कोलणवि अंतीमुहुतं,) सुक्ष्मवनस्पतिकाय के प्रोविक, अपर्याप्त, और पर्याप्त इन तीनों की जघन्य और उत्कृष्ट, स्थिति केवल अतमुहूत्त की हो प्रतिपादन को गई है, तथा-(वादरवण स्लइकाइयाण महरणेणं अंतोमुहुरा कातण दस वाससह स...) बादर बनस्पति काय के जीवों की जघन्य स्थिति अंतर्मुहूर्त को और उत्कृष्ट दस हजार वर्ष की होती है, (अपज्जत वादरवण सइकाइयाणं पुच्छा,) हे भगवन् ! अपयोप्त बादर बनस्पति काय के जीवोंको स्थिति कितने काल की होती है ? गोयमा ! जहरणेणवि अन्तामुहुर. उक्कोसेणवि अमुहुरा,) भी गोतम ! जघन्य से भी अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट से भी केवल अन्तर्मुहूर्त की ही होती है, (पजत्तगवादरवणसइकाइयाणं पुच्छा.) हे भगवन् ! पर्याप्त बादर बनस्पतिकाय के जीवों की स्थिति कितने काल की प्रति पादन को है ? (नीयमा ! जहणणे अंतीमुहुरा उकोसेण दम वास सहम्साई अतोमुहुत्त गा) भो गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त को और उत्कृष्ट से अन्त मुहूर्त न्यून दस हजार वर्ष तक को स्थिति प्रति पादन को गई है क्योंकि अपर्याप्त काल को पृथक् कर दिया गया है। ___ भावार्थ - पांच स्थावर सूक्ष्म, सभी अपर्याप्त, और औधिक इन सभी की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति सिर्फ अंतर्मुहर्त की है, लेकिन जो बादर पर्याप्त है उनके अपर्याप्त काल की स्थिति पृथक् करके शेष श्रायु निम्न लिखितानुसार जानना चाहिये For Private and Personal Use Only
SR No.020052
Book TitleAnuyogdwar Sutram Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherMurarilalji Charndasji Jain
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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