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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [श्रीमदनुयोगद्वारसूत्रम् ] ग्रथ रस प्रमाण विषय | से किं तं रसमाप्रमाणे ? धन्नमाणप्पमाणओ चउभागविवडिए भित्तर सिहाजुत्ते रसमाण पमाणे विहिज्जइ तं जहा - चउसट्टिया ४, बत्तीसिया ८, सोलसिया १६, अट्टभाइया ३२, चउभाइया ६४, श्रद्धमाणी १२८, माणी २५६, दो चउसट्टियाउ बत्तीसिया, दो बत्तीसियाओ सोलसिया, दो सोलसियाओ अभाइया, दो अट्टभाइयाश्रो चउभाइया, दो चउभाइयाश्रो श्रद्धमाणी, दो अद्धमाणीश्र माणी। एएणं रसमाणप्यमाणेणं किं पत्रोय ? एएणं रसमाणप्पमाणेणं वारक १, घडक २, करक ३, कलस ४, कक्करिय५, दइय६, कुंडिए ७ करोड ८, संसियां रसागं रसमारगप्पमाणनिव्वत्तिलक्खणं भवइ । से तं रसमाप्यमाणे, से तं भाणे | पदार्थ - ( से किराया ? ) रसमान प्रमाण किसे कहते हैं ? जैसे ( धत्रमण्यमाणशी ) धान्यमान प्रमाण से ( चरमा वेव) चतुर भाग अधिक और (त्रिसिहाजु भवइ ) अभ्यन्तर शिखा युक्त होता है क्योंकि रसमान प्रमाण द्रवीभूत होने से अभ्यन्तर शिखा युक्त ही होता है । इसको बाहर शिखा नहीं होती वह (रसमाणप्पमाणे) रस मान प्रमाण से चतुर्भागाधिक अभ्यन्तर शिखायुक्त होता है जैसे कि -- ( चउट्टिया ४ ) चार पल प्रमाण 'चतुष्वष्ठिका होती है (बत्तीसिया ८ :) आठ पल प्रमाण 'द्वात्रिंशिका' होती है ( सोलसिया १६ ) सोलह पल प्रमाण ' षोडशिका' और ( भाइया) द्वात्रिंशत् पल प्रमाण 'अष्ठभागिका' होती है ( चउभाइया ) चौंसठ पल प्रमाण 'चतुर्भागिका' ( श्रमणी ) एक सौ अट्ठाईस पल प्रमाण 'अर्द्धमानी' होती है और दो सौ छप्पन पल प्रमाण 'माणी' होती है । ( दो चउसट्ठियाम बत्तीसिया ) दो चतुःषष्टिका से एक 'बत्तीसी' होती है अर्थात् माणी का बत्तीसवां भाग होता है ( दो बत्तीसियाओ ) दो बत्तीसियों से ( सोलसिया ) मारणी का सोलहवां भाग होता है और ( दो सोलसिया श्री राभाइया) दो षोडशिकाओं से माणी For Private and Personal Use Only
SR No.020052
Book TitleAnuyogdwar Sutram Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherMurarilalji Charndasji Jain
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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