SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ उत्तरार्धम् ] उक्कोसेणं गाउयपुहुत्तं; खहयरपंचिंदिय तिरिक्खजोणियाणं पुच्छा, गोयमा ! जहरणेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेगं धणुपुहुत्तं; संमुच्छिमखहयराणं जहा भुजारिसप्पसमुच्छिमाणं तिसुवि गमेसु तहा भाणियन्त्र; गम्भवति याणं पुच्छा, गोयमा ! जह. गणेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभार्ग, उक्कोसेणं धणुपुहत्तं; अपज्जत्तयाणं पुच्छा, गोयमा ! जहरणेणं अंगुलस्त असंखेज्जइभाग, उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेज्जइभाग; पज्जत्तयाणं गब्भवतियखहयर. (च्छा, गोयमा ! जहएणणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेणं धणु पहत्तं । तत्थ णं संगहणिगाहाओ भांति । तंजहा-"जोयण सहस्स गाउयपुहुत्तं तत्तो अजोयणहुत्तं । दोण्हंतु धणुपुहुत्तं समुच्छिमे होइ उच्चित्तं ॥ १ ॥ जोयणसहस्स छग्गाउयाई तत्तो य जोयणसहस्सं । गाउयपुहुत्त भुयगे, पक्खीसु भवे धणु पहुत्तं ॥ २ ॥ __ पदार्थ-(चेदियतिरिक्वजाणियाणं भंते ! के महानिया सरीगेगाहणा परणता ?) हे भगवन् ! फचेन्द्रिय तिर्यक् योनियों के शरीरों को अवगाहना कितनी बड़ी प्रतिपादन की गई है ? (गोरमा ! जहरणेणं अंगुलस्स असंखेजइभाग) भो गौतम ! जघन्य अंगुल के असंख्यात भाग प्रमाण अवगाहना होती है (उकोसेणं जो रणसहस्सं) उत्कृष्ट सहस्र योजन प्रमाण होती है ( जलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा,) हे भगवन् ! जलचर पञ्चेन्द्रिय तियक योनियों के शरीर की कितनी बड़ी अवगाहना होती है ? (गोयमा ! एवं चेत्र) भो गौतम ! जवन्य अगुल के असंख्यात भाग प्रमाण और उत्कृष्ट एक हजार योजन प्रमाण होती है । ( संमु.छपज तयरपंचिंदियतिरिक्त जोणियाणं पुछा,) For Private and Personal Use Only
SR No.020052
Book TitleAnuyogdwar Sutram Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherMurarilalji Charndasji Jain
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy