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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ उत्तरार्धम् ] अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं चत्तारि गाउयाइं; अपज्जत्तयाणं जहएणणं उक्कोसेणं अंगुलस्स असंखेजइभागं; पजत्तयाणं जहएणणं अंगुलस्स असंखेजइभार्ग, उकोसेणं चत्तारि गाउयाइं ॥ __ पदार्थ-(एवं वईदियाणं पुन्छा) द्वीन्द्रिय जीवों की हे भगवन् ! कितनी अव. गाहना होतो है ? (गोयभा ! जहणणेणं अंगुलम्स असंज्जइभागं, वेणं वापस जोगाई) भो गौतम ! जघन्य अंगुल के असंख्यात भाग प्रमाण और उत्कृष्ट बारह योजन प्रमाण अवगाहना होती है (अपजत्तयाणं जहएणणं अंगुलस्स असंखेजइभाग, उकोसेण वि* अंगुलस्म असंखेजाइभागं ) अपर्याप्त द्वीन्द्रियों की जघन्य तथा उत्कृष्ट दोनों प्रकार की अवगाहनाएँ अंगुल के असंख्यातभाग प्रमाण होती हैं । (पजत्तयाग जाहश गोगां गार लस्स असंखेजनभाग, उक्कोसेणं बारस जोयणाई) पर्याप्त द्वीन्द्रिय जीवों की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यात भाग प्रमाण और उत्कृष्ट बारह योजन प्रमाण है। । (तेदियाणं पुच्छा) हे भगवन् ! त्रीन्द्रिय जीवों की कितनी अवगाहना होती है ? (.यमा ! जहरणे... अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेण तिरिण गाउयाई) भो गौतम ! जघन्य अंगुल के असंख्यातभाग प्रमाण और उत्कृष्ट तीन कोस प्रमाण होती है [यह भी बाहर के द्वीप समुद्रों में जाननी चाहिये ] (अपज्जत्तयाण जहरणेण अंगुलस्स असं इभाग, क्वो. सेण वि अंगुलरस असंखे जइभा) अपर्याप्त त्रीन्द्रिय जीवों की अवगाहना जघन्य और उत्कृष्ट दोनों ही अंगुल के असंख्यात भाग प्रमाण होतो हैं । ( पज्जत्तयाण अंगुलस्स असंखेज्जइभा , उकको पेण तिरिण गाउ गाई ) पर्याप्त जोवों की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यात भाग प्रमाण और उत्कृष्ट तीन कोस प्रमाण होती है (चरिंदियाण पुच्छा ) चतुरिन्द्रिय जोवों की अवगाहना हे भगवन् ! कितनी होती है ? (गोयमा ! जहएणेण अंगुलस्स असंखेज्जइमागं, उक्कोसेण चत्तारि गाव्याई) भो गौतम ! जघन्य अंगुल के असंख्यात भाग प्रमाण और उत्कृष्ट चार कोस प्रमाण होती है (अपजत्तरारण जहाणेण अंगुलरस असंखेज्जइभाग, उक्कोसेण वि अंतःस असंखेाग) और अपर्याप्त जीवों को अवगाहना जघन्य और उत्कृष्ट दोनों ही अंगुल के असंख्यात भाग प्रमाण है (इज्जत्तयाणं जहरणेण अंगुलस्स असंवेज्जइभाग, उक्कोसेण चत्तारि गाउयाई)पर्याप्त * यहां पर 'ति'-'अपि' शब्द परस्परापेक्षार्थ में है। + यह कथन स्वयंभूरमण समुद्र में शंखादि जीवों को अपेक्षा से है । For Private and Personal Use Only
SR No.020052
Book TitleAnuyogdwar Sutram Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherMurarilalji Charndasji Jain
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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