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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org धन्यवाद । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir --:: 'श्री श्वेताम्बर - स्थानकवासी - श्राल इण्डिया जैन कान्फ्रेन्स' के सिकन्दराबाद वाले अधिवेशन में स्वर्गीय राजाबहादुर लालाजी श्रीमान् सुखदेवसहायजी ने जैन सिद्धान्तों को प्रकाशित करने के लिए 'कान्फ्रेन्स' को जिस समय एक प्रेस दिलाया था उस समय 'कान्फन्स' की सूवनानुसार जैनमुनि उपाध्याय श्री आत्मारामजी महाराज ने श्रीमद्नुयोगद्वार सूत्र का हिन्दी अनुवाद करके 'कान्फरेन्स' को समर्पण किया था । 'कान्फ्रेन्स' ने उस का कुछ हिस्सा 'पूर्वार्ध' के नाम से प्रकाशित करके 'कान्फेन्स प्रकाश' के ग्राहकों को उपहार में वितरण किया और उस का शेष भाग यही रख छोड़ा। इस बात को १३-१४ वर्ष होने आये । सूत्र के अप्रकाशित भाग को 'कान्फ्रेन्स' से हम ने मँगा लिया। लेकिन वह हमारे पास भी बहुत समय तक यों ही रक्खा रहा । एक अवसर पर इस के प्रका शक महोदय ने इस को प्रकाशित करने के लिए ५००) रुपयों की उदारता दिखाई. थी । लेकिन इतना बड़ा काम इतने से रुपयों में होना अशक्य था । श्रतएव उस समय भी हमें ठहरना पड़ा । एक समय आगरा निवासी श्रीयुत बाबू पद्मसिंहजा जैन, अध्यक्ष - 'श्रीमज्जैनशास्त्रो द्वार प्रिंटिंग प्रेस' और प्रकाशक- 'श्रीजैनपथ-प्रदर्शक' 'आगरा महाराज श्री के दर्शनों के लिए यहाँ आए। महाराजजी ने यह बात उन के सामने रक्खी। घर का प्रेस होते के कारण आप ने इस कार्य को शीघ्र पूरा प्रकाशित कर सकने का वचन दिया । तदनुसार उक्त ग्रन्थ आप को दिया गया और आप ने तत्काल कार्य आरम्भ कर दिया. 1. लेकिन थोड़े ही दिनों बाद आप पर भी कई कठिनाइयाँ ऐसी आन पड़ीं कि जिन के कारण ग्रन्थ के प्रकाशित होने में फिर भी विलम्ब हो गया । श्रीयुत बाबू पद्मसिंहजी को जिस समय यह प्रन्थ छापने के लिए दिया गया था उस समय इसे लगभग ३०-३२ फार्म का समझा गया था परन्तु छपने पर यह ४० फार्म का बैठा । लेकिन फिर भी उक्त महानुभाव ने अपने वचनानुसार इसे पूर्ण ही छाप कर प्रकाशित किया । एतदर्थ आप को धन्यवाद है । For Private and Personal Use Only
SR No.020052
Book TitleAnuyogdwar Sutram Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherMurarilalji Charndasji Jain
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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