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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४ [श्रीमदनुयोगद्वारसूत्रम् ] गाहना कितनी बड़ी प्रतिपादन की गई है ? भोगौतम ! उनकी शरीरावगाहना दो प्रकार से प्रतिपादन की गई है। जैसे कि भवधारणीया और उत्तरवैक्रिया (तत्थ णं जासा भवधारणिजा सा जहरणेणं अंगुलस्स असंखेजइभाग, उक्कोसेणं सत्त रयणीयो) उन दोनों में जो भवधारणीया है, वह जघन्य अंगुल के असंख्यात भाग प्रमाण और उत्कृष्ट ७ हाथ प्रमाण होती है तथा जो (तस्थ णं जा सा उत्तर वेउब्विया सा जहरणेण अंगुलस्स संखेज्जइभागं, उक्कोसेणं जोयणसयसहस्स) उन दोनों में जो उत्तरवैक्रिया है वह जघन्य अंगुल के संख्यात भाग प्रमाण और उत्कृष्ट १००००० योजन प्रमाण शरीर को अवगोहना है । (एवं असुरकुमारगमेणं जाव थणियकुमाराणं ताव भाणिय ) इसी प्रकार असुरकुमार से लेकर स्तनितकुमार पर्यन्त स्वरूप जानना चाहिये । भावार्थ-नारकियों की तरह दश भवनपतियों की भी अवगाहना दो प्रकार की है । एक भवधारणीया, दूसरी उत्तरवैक्रिया। भवधारणीया जघन्य अंगल के असंख्यातवें भाग :माण और उत्कृष्ट ७ हाथ प्रमाण होती है । उत्तर वैक्रिया अवगाहना जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग प्रमाण और उत्कृष्ट १००००० योजन प्रमाण होती है। अथ पंचरथावर-प्रवणाहना का विषय । पुढविकाइयाणं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणणेगअंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेज्जइभाग; एवं सुहुमाण ओहियाण, अपज्जत्तयाण, पज्जत्तयाण, बादराण भाणियव्वा । एवं जाव बादरवाउकाइयाण पज्जत्तयाण भाणिथव्वं । वणस्सइकाइयाणं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णता ? गोयमा ! जहरणेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेणं साइरेगं जोयणसहस्स, सुहमाणं वणस्सइकाइयाणं ओहियाणं अपज्जन्तयाणं पज्जत्तयाणं तिरह For Private and Personal Use Only
SR No.020052
Book TitleAnuyogdwar Sutram Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherMurarilalji Charndasji Jain
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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