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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२ [ श्रीमदनुयोगद्वासूत्रम् ] उक्कोसेां एकतीसं धणूइं इक्करयणी अ ) उन में से जो उत्तरवैक्रिया नाम की अवगाहना है, वह जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग प्रमाण है और उत्कृष्ट ३१ धनुष और १ हाथ प्रमाण है || २ || ( बालु अप्पापुढवीए रइयाणं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुबिहा पण्णत्ता, तं जहा - भववारणिजा य उत्तरवेउवित्रा य) बालुकाप्रभा पृथ्वी के नारकियों की हे भगवन् ! कितनी बड़ी अवगाहना होती है ? भो गौतम ! वह दो प्रकार से प्रतिपादन की गई है। जैसे कि भवधारणीया और उत्तरक्रिया ( तत्थ जसा भवारणिजा सा जहां गुलस्स असंखेजइभागं, उक्को से एकतीसं धयूई इक्करयणी श्र) उन में से जो भवधारणीया है, वह न्यून से न्यून अंगुल के असंख्यात भाग प्रमाण होती है, उत्कृष्ट ३१ धनुष्, १ हाथ प्रमाण होती है । (तत्थ खं जा सा उत्तरवे उव्त्रिया सा जहरणेणं अंगुलस्स संखेज्जइभागं, उक्को वासट्ठि धणूई दो रयणीओ ) उन में से जो उत्तरवैक्रिया है, वह जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग प्रमाण है और उत्कृष्ट ६२ धनुष और २ हाथ प्रमाण है । उत्तरखैक्रिया भवधारणीया से दूनी है ॥ ३ ॥ ( एवं सव्वासिं पुढवीणं पुच्छा भाणियव्या) इसी प्रकार सर्व पृथ्वियों के विषय में प्रश्न कर लेना चाहिये । ( पंकव्वहाएपुढत्रीए भवचारणिजा जहां श्रं गुलस्स असंखेज्जइभागं उकोसे वासट्टि घणूई दोरयणीय) पंकप्रभा नाम की पृथ्वी के नारकियों की भवधारणीया शरीरावगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण और उत्कृष्ट ६२ धनुष और २हाथ प्रमाण है ( उत्तरवेउन्त्रिया जहणणेां श्रंगुलस्स संखेज्जइभागं, कोसेणं पणवीसं धणूसयं ) उत्तरवैकिया जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग प्रमाण और उत्कृष्ट १२५ धनुष प्रमाण है || ४ || ( धूमप्पहा ए भवधारणिज्जा जहणणेणां श्रंगुलस्त असंखेज्जइभागं, उक्कासं पणवीसं घणूस ) धूमप्रभा के नारकियों की अवधारणीया श्रवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है। और उत्कृष्ट १२५ धनुष प्रमाण है । ( उत्तरवेव्विश्री जहां अंगुलस संखेज्जइमागं, उक्कोसेणं अड्डाइज्जाइं धणूसयाई, उत्तरवैक्रिया अवगाहना जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग प्रमाण और उत्कृष्ट २५० धनुष प्रमाण होती है ||५|| ( तमाए भवधारणिज्जा जहणणे गुलस्स श्रसंखेज्जइभागं, उक्को से श्रड्डाइज्जाई धणूसयाई ) तमः प्रभा नाम की पृथ्वी के नारकियों की भवधारणीया शरीर की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण और उत्कृष्ट २५० धनुष प्रमाण है । ( उत्तरवेव्विया जहां अंगुलस्स संखेज्ज भागं, उक्कोसेणं पंच धणू सया ) उत्तर वैक्रिया शरीर की अवगाहना जघन्य अंगुल के संख्यात भाग प्रमाण, उत्कृष्ट ५०० धनुष प्रमाण है ।। ६ ।। ( तमतमाए पुढवीए रयाणं भंते ! के महालिया सरीरोगाहया परयता ? गोयमा ! दुविधा पण्णत्ता, तं जहा - भवधारणिजा उत्तरवेउब्विाय, तत्थ गंजा सा भवधारणिजा सा जहरणेणं अंगुलस्स श्रसंखेज्जइभागं, " For Private and Personal Use Only
SR No.020052
Book TitleAnuyogdwar Sutram Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherMurarilalji Charndasji Jain
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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