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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८४ [ श्रीमदनुयोगद्वारसूत्रम् ] (से कि त दव्वझवणा ?) द्रव्य क्षपणा किसे कहते हैं ? (दव्वझवणा) द्रव्यक्षप. णा (दुविहा परणत्ता,) दो प्रकार से प्रतिपादन की गई है, (तं जहा-) जैसे कि-(भागम ओ य) आगम से और (नोभागमश्री य । ) नोआगम से । (से किं तं श्रागमश्रो दबज्झवणा १ ) आगम से द्रव्य क्षपणा किसे कहते हैं ? (श्रागमश्रो दव्वज्झवणा ) आगम से द्रव्य क्षपणा उसे कहते हैं कि ( जस्स णं) जिसने (झवणेत्तिपर) क्षपणा रूप पद को (सिक्खि) सीख लिया हो या ठिय) हृदय में स्थित कर लिया हो वा (जिर) अनुक्रम से पढ़ भी लिया हो अथवा (मयं) अक्षों को परिमाण भी जानता हो या (परिजि) अननुक्रम से पढ़ लिया हो (जाव) यावत् (से तं आगमओ दव्यज्झवणा) यही आगम से द्रव्य चपणा है। (से कि तंगोत्रागमो दवझवणा ?) नोभागम से द्रव्य क्षपणा किसे कहते हैं ? (नोआगममो दव्वज्झवणा ) नोआगम से द्रव्य क्षपणा (तिविहा पगणता,) तीन प्रकार से प्रतिपादन की गई है, (तं जहा.) जैसे कि-( जाणयप्तगीरदव्वझवणा ) ज्ञशरीर द्रव्य दपणा, (भवियसरीरदव्वज्झवणा) भव्यशरीर द्रव्य क्षपणा, (नाणय सरीरभवियप्तरीरवइरित्ता दव्वझवणा) ज्ञशरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्त द्रव्य क्षपणा । (से किं तं जाण यसरीरदबझवणा ? ) ज्ञशरीर द्रव्य क्षपणा किसे कहते हैं ? (जाणयसरीरदब्वझवणे ) ज्ञशरीर द्रव्य क्षपणा उसे कहते हैं कि-(झवणापयत्याहिगारजाण यस्स) क्षपणा पदार्थाधिकार जानने वाले का (जं सरीर) शरीर, जो कि( ववगय ) चेतना से रहित हुआ हो या चु ) श्वासोच्छासादि से रहित हुआ हो अथवा (चाविय) जव दस्ती दश प्राणों से अलग हुआ हा या चत्तदेह) त्यक्तशरीर हो (नेस) शेष (जहा दव्वज्झवणे,) द्रव्य अध्ययन जैसे, अर्थात् शेष स्वरूप द्रव्य अध्ययनानुसार जानना चाहिये, (गव) यावत् ( से तं जाण यसरीरदव्वझवणा ।) यही ज्ञशरीर द्रव्य क्षपणा है। (पे किं तं भवियसरीरदव्यज्झरणा ?' भव्यशरीर द्रव्य क्षपणा किसे कहते हैं ? (भवियसरीग्दवज्झवणा) भव्य शरीर द्रव्य क्षपणा उसे कहते हैं कि-(जे जीवे) जो जीव (जोणिजम्मक्खिं ) योनि से निकल कर जन्म को प्राप्त हुआ, (सेसं जहा दब्वझवणे.) शेष वर्णन द्रव्य अध्ययनरत जानना (जाव) यावत (से तं भविसरीरदवझवणा ।) यही भव्य शरीर ,व्य क्षपणा है। (मे किं तं जाणयसरीरभविश्रमगंग्व त्तिा दव्वज्झवणा ?) शगेर भव्यशरोर व्यतिरिक्त द्रव्य क्षपणा किसे कहते हैं ? ( जाणयसरीरभविप्रसरीरबारिचा इव्वझवण) For Private and Personal Use Only
SR No.020052
Book TitleAnuyogdwar Sutram Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherMurarilalji Charndasji Jain
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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