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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ श्रीमदनुयोगद्वारसूत्रम् । चत्तदेह) व्यपगत, जीव से च्युत, त्यागा, त्यक्तदेह हो, ( जहा दबझीणे ) जैसा द्रव्य अध्ययन में वर्णन किया गया है ( तहा भाणिग्रव्वं ) उसी प्रकार कथन करना चाहिये, (जात्र) यावत् (से तं जाणयसरीरदबन्झीणे ।) यही ज्ञशरीर द्रव्याक्षीण है। (से कि तं भविग्रसरीरदव्यज्झोणे ?) भव्यशरीर द्रव्याक्षीण किसे कहते हैं ? ( भविसरीरदबझीणे ) भव्यशरीर द्रव्याक्षोण उसे कहते हैं कि-(जे जीवे) जो जीव ( जोणिजन्मणनिक्खंते ) योनि से निकल कर जन्म को प्राप्त हुआ, (जहा दबझयणे,) जैसे द्रव्य अध्ययन अर्थात् शेष स्वरूप द्रव्य अध्ययनवत् जानना चाहिये । (जाव) यावत् (से तं भविग्रसरीरदव्यज्झोणे ।) यही भव्यशरोर द्रव्याक्षीण है। (से किं तं जाणयसरीरभविग्रसरीरवइरित्तं ? ) ज्ञशरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्त द्रव्याक्षीण किसे कहते हैं ? ( जाणय. ) ज्ञशरोर भव्यशरीर व्यतिरिक्त द्रव्य अक्षीण उस कहते है, कि --, सव्यागाससंदी) लोकालोकाकाश के सब श्रेणियों से प्रदेशों का अपहरण किया जाय ता भी क्षाण नहीं हो सकते, (से तं जापय० ) यही ज्ञशरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्त द्रव्या जाणता है । ( से तं नोग्रागमी दवज्झीणं । ) यही नो आगम से द्रव्याक्षोण है । (से तं दव्वज्झोणे ।) यही द्रब्याक्षीण है। (से किं तं भावउझीणे ? ) भाव अक्षीण किसे कहते हैं ? (भावझीण) जो भाव से क्षोण न हो उसे भाव अक्षोण कहते हैं, और वह ( दुविहे पण्णत्ते, ) दो प्रकार से प्रतिपादन किया गया है, (तं जहा.) जैसे कि-- आगमी य) आगम से और (नोग्रागमयो य ।) नो आगम से । (से कि तं आगमनी भावज्झीणे ? ) आगम से भाव अक्षीण किसे कहते हैं ? (आगमओ भावज्झीणे) आगमसे भावाक्षाण उसे कहते हैं कि-(माणए उवउत्ते) जो अक्षीण के अर्थ को * उपयोग पूर्वक जानता हो, ( से तं अागमश्रो ) यही आगम से (भावज्झ णे ।) भाव अक्षोण है। (ते किं तं नोागमा भावझीण ?) नोभागम से भाव अक्षीण किसे कहते हैं ? * अत्र वा व्याचक्षते -यस्माचतुदशपूर्वविदः भागमापयुक्तस्यान्तमुहर्तमात्रोपयोगकाले ये ऽथोपलम्भोपयोगपर्यायास्ते प्रांतसमयमकैकापहारंणानन्ताभिर प्युत्सपिण्यवसर्पिणीभिनापहियन्ते, अतो भावाक्षोणतेहावसेया। चदुर्दश पूर्व जानने वाले के उपयोग मात्र एक अन्तमु हत्त काल में जितने पर्याय होते हैं वे अनन्त काल चक्रो से भी अपहरण नहीं हो सकते, क्योंकि वे अनन्त हैं। यही भावाक्षीणता यहां पर जानना चाहिये। For Private and Personal Use Only
SR No.020052
Book TitleAnuyogdwar Sutram Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherMurarilalji Charndasji Jain
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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