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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३४ [श्रामद्नुयोगद्वारसूत्रम् ] भावार्थ-जिसके द्वारा पदार्थों का स्वरूप जाना जाता है उसे शान कहते हैं और जिसमें उसकी संख्या का परिमाण हो उसे शान संख्या कहते हैं । जैसे कि जो शब्द को जानता है वही शाब्दिक है, जो गणित को जानता है वही गणित है, जो निमित्त को जानता है वही नैमित्तिक है, जो काल [ भूत, भविष्यत् और वत्त मान आदि को जो जानता है वही कालशानी है, जो वैद्यक जानता है वही वैद्य है। इसी को ज्ञान संख्या कहते हैं। इसके अनन्तर अब गणना संख्या का स्वरूप जानना चाहिये गणाना संख्या से कि तं गणणाशंखा ? एको गणणं न उवेइ, दुप्पभिइ संखा, तं जहा-संखेजए १, असंखेज्जए २, अणंतए ३, से कि तं संखेज्जए ? तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-जहगणए उक्कोसए अजहण्णमणुक्कोसए । से किं तं असंखेज्जए ? तिविहे पण्णत्ते, ते जहापरित्तासंखेज्जए जुत्तासंखजए असंखेज्जासंखेज्जए । से किं तं परित्तासंखेजए ? तिविहे पण्णते, तं जहाजहण्णए उक्कोसए अजहएणमणुक्कोसए । से किं तं जुत्तासंखजए ? तिविहे पण्णत्ते, तं जहाजहण्णए उक्कोसए अनहराणमणुकोसए । से कि तं असंखेज्जासंखेज्जए ? तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-जहण्णए उक्कोसए अजहण्णमणुक्कोसए । से कि तं अणंतए ? तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-परिताणंतए जुत्ताणंतए अणंताणंतए । से कि तं परित्ताणंतए ? तिविहे पण्णत्ते, तं जहाजहण्णए उकोसए अजहण्णमणुकोसए । For Private and Personal Use Only
SR No.020052
Book TitleAnuyogdwar Sutram Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherMurarilalji Charndasji Jain
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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